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मेरठ के पास हस्तिनापुर में 1000 ईसा पूर्व में काले और भूरे रंग के कांच के मोती और चूड़ियाँ मिली थीं, जिन्हें सोडा-लाइम-सिलिकेट (Soda-lime-silicate), पोटैशियम (Potassium) और लोहे के यौगिकों की अलग-अलग मात्रा के साथ बनाया गया था। तब से कांच के गहने और आभूषण बनाना एक लंबी प्रक्रिया बन गयी।
कांच का पहला उपयोग मोती और गहने तथा सजावट के छोटे टुकड़ों के रूप में किया गया था। मोती और गहने अभी भी कला में कांच के सबसे आम उपयोगों में से हैं। किंवदंती के अनुसार, मुनष्य को कांच का पता तब चला जब कुछ व्यापारियों ने सीरिया में फ़ीनीशिया (Phoenicia) के समुद्रतट किनारे पर भोजन के पात्र चढ़ाए। अग्नि के प्रज्वलित होने पर उन्हें द्रवित कांच की धारा बहती हुई दिखाई दी। यह कांच बालू और शोरे के संयोग से बन गया था। परंतु ऐतिहासिक दृष्टि से कांच का आविष्कार मिस्र या मैसोपोटामिया में लगभग 2500 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था। इसके साक्ष्य मैसोपोटामिया में कब्रिस्तान से प्राप्त कांच के मोती हैं, जो कि 2100 ईसा पूर्व के है। शुरु में इसका उपयोग साज-सज्जा के लिये किया गया था, फिर ईसा से लगभग 1500 साल पहले कांच के बर्तन बनने लगे, और समय बीतने के साथ साथ वेनिस (Venice) शहर उत्कृष्ट कांच की चीजें बनाने का केंद्र बन गया। हालांकि मैसोपोटामिया के साथ हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता का संपर्क था परंतु हड़प्पा संस्कृति की किसी भी साइट (Site) से कोई वास्तविक कांच के साक्ष्य नहीं मिलते है। हालांकि अशुद्ध कांच के मोती, चूड़ियां, आभूषण, बर्तन, आदि जैसे चमकीले पदार्थ कई साइटों पर पाए गए, जो ज्यादातर चीनी मिट्टी या अशुद्ध कांच से बने हुए थे। भारत में कई प्रदेशों में प्राचीन कांच के टुकड़े प्राप्त हुए हैं। खासतौर पर मेरठ के आस-पास के इलाकों में प्राचीन काल के कांच के अवशेष खुदाई में मिले। कांच आभूषणों या गहनों के अनेक प्रकार हैं, जैसे फ्युज्ड (Fused) कांच के आभूषण। मुख्य रूप से आभूषण जैसे झुमके, पेंडेंट (Pendant) आदि बनाया जाता है। इस तरह का कांच बनाने के लिए कांच के छोटे-छोटे रंगीन टुकड़ों को भट्टी में करीब 1,200 से 1,700 के तापमान पर गर्म किया जाता है, जिसके बाद इसे ठंडा करके विभिन्न आकार में ढाल लिया जाता है। कांच आभूषण का दूसरा प्रकार है, डाइक्रो-ग्लास (Dichroic-glass) जिसे फ्युज्ड कांच के गहने के समान ही बनाए जाते हैं किंतु इनका अपना एक अलग प्रकार होता है। इसमें कांच के अन्दर चमकीले टुकड़ों को मिलाया जाता है, जो कांच को झिलमिलाता हुआ परिवेश प्रदान करता है। इस कांच का प्रयोग सर्वप्रथम नासा ने अंतरिक्ष यात्रियों के चेहरे को ढकने के लिए किया था क्योंकि इसमें विभिन्न धातुओं की लगभग 50 सूक्ष्म और पतली परते होती हैं। कांच आभूषण का तीसरा प्रकार 'मनका' है।
कांच के मनके कंगन, हार, झुमके आदि बनाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं। इनको बनाने के लिए लैंपवर्क (Lampwork) तकनीक उपयोग की जाती है। इसे बनाने के लिए अलग-अलग तरह के कांच की छड़ों को एक नियत ताप पर मशाल की तरह पिघलाया जाता है। पिघलाते समय कांच पानी की बूँद की तरह रिसता है और इस तरह इसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। इनको मोतियों पर भी पिघलाया जाता है, जिससे कांच के मनके प्राप्त हो जाते हैं। कांच आभूषण का एक अन्य प्रकार 'मुरानो ग्लास' (Murano glass) भी है। इसे प्राचीन काल से वेनिस (Venice), इटली (Italy) में विकसित किया गया था। ये अत्यंत ही बहुमूल्य कांच होता है, जिसमें कांच के अन्दर कई छोटे-छोटे फूल बनाए जाते हैं। समुद्री कांच एक अन्य तरह का कांच है जिसमें आम कांच को समुद्र में फेंक दिया जाता है और उसे तब तक समुद्र में छोड़ कर रखा जाता है जब तक की वह लहर थपेड़ों आदि से घिस कर चिकना और अपारदर्श ना हो जाए। दक्षिण डेक्कन में मस्की (मस्की कर्नाटक के रायचूर जिला का एक ग्राम है। यह एक पुरातात्त्विक स्थल भी है) में भी कांच के मोती के कुछ पुरातात्विक सबूत मिलते हैं, यह पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत से भी पुराने है। भारत में सबसे पुराना कांच हरियाणा के उत्तरी राज्य में भगवानपुरा में पाया गया। br>
ऐसा माना जाता है कि ये लगभग 1200 ईसा पूर्व के पेंटेड ग्रे वेयर संस्कृति (Painted Grey Ware) और हड़प्पा संस्कृति की अवधि में उपयोग किए जाते थे। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, लगभग 30 पुरातात्विक खुदाई साइटों में, हरे, नीले, लाल, सफेद, नारंगी और कुछ अन्य रंगों में कई कांच की वस्तुएं पाई गई हैं। कुछ स्थानों पर तो कुछ टाइलें और बर्तनों के खंडित हिस्से भी पाये गये हैं। वर्तमान समय में कांच के आभूषण अत्यंत ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हैं, जिनका उपयोग पूरे विश्व भर में किया जा रहा है।