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महात्मा गांधी का जीवन न केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व और पूरी मानवता के लिए प्रेरणा का संदेश देता है। गांधी जी का जन्म व विवाह एक संपन्न गुजराती परिवार में हुआ था और उनके पिता राजकोट राजवाड़ा (रियासत) के दीवान थे और राजा उन्हें अच्छी तरह से जानते थे। वे अपने संपूर्ण जीवनकाल में भारत और भारत के बाहर (इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में) रहे थे। युवा अवस्था में वे विश्व भर में यात्रा कर सरल, संयम व सादगी का जीवन व्यतीत करते थे, जिस कारण कई बार उनके परिवार को काफी तकलीफ का सामना करना पड़ता था किन्तु वे अपने इस पथ पर अडिग रहते थे। उनके सरल व सादगी भरे जीवन का उदाहरण, भारत के साबरमती और सेवाग्राम के आश्रम और दक्षिण अफ्रीका में टॉल्स्टोई (Tolstoi) खेत में देखने को मिल सकते हैं।
साबरमती नदी के तट पर महात्मा गांधी के एकान्त स्थान पर मौजूद कुटिया के अंदर सिर्फ बहुत जरूरी सामान (एक खटिया और एक मेज) मिलते हैं, जिससे हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि गांधी जी के लिए भौतिक संपत्ति बहुत कम मायने रखती थी। ईंटों और लकड़ी से बनी इन कुटियों में गांधी जी और उनके अनुयायियों के निवास, ध्यान केंद्र, विशाल सम्मेलन कक्ष और भोजन कक्ष के रूप में कार्य किया जाता था। यह लगभग 30 वर्षों के लिए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का उपरिकेंद्र रहा था। यह आश्रम गांधी जी और उनके अनुयायियों के दिनचर्या के बाद नैतिक अनुशासन, आत्म-सहायता, न्यूनतम व्यक्तिगत आवश्यकताओं और अहिंसा पर जोर देता है। 1920 के दशक में इस आश्रम से गांधी जी ने सत्याग्रह (सच्चाई पर जोर देना) के विचार का पूर्ण विवरण किया था।
यहाँ मौजूद कुटियों में एक कमरे में चरखा रखा हुआ है। गांधी जी ने भारतीय कपड़ों पर ब्रिटिश द्वारा लगाए गए शुल्क से मुक्ति और आत्मनिर्भरता के रूप में चरखे पर जोर दिया था। परिसर की मुख्य इमारत के अंदर उद्धरणों से ढकी एक दीवार पर, गांधी जी ने साबरमती में एकान्त स्थान को चुनने के पीछे का अपना कारण बताते हुए कहा कि गुजरात के मूल निवासी के रूप में वह राज्य और स्थानीय भाषा को बढ़ावा देना चाहते थे। एक अन्य में, गांधी जी कहते हैं कि क्योंकि शहर में हाथ से बुने कपड़े की प्राचीन परंपरा थी, इसलिए आश्रम भारतीय-निर्मित सामग्री के लिए एक मार्ग बनाएगा, जिसे उन्होंने समर्थकों के लिए प्रस्तावित किया था। तीसरे में, उन्होंने बताया कि उन्हें यह भी विश्वास था कि कुलीन गुजराती व्यापारी वर्ग सामने आकर उनके प्रयासों का समर्थन करेंगे।
गुजरात के सौराष्ट्र भाग में एक बंदरगाह शहर पोरबंदर को गांधी जी की जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है, उनका पैतृक घर अब जनता के लिए खुला है। यहाँ न केवल वह कमरा है, जहां वे पैदा हुए थे, बल्कि इसमें प्राचीन काल के घरों की झलक दिखाई देती है। घर के बगल में, गांधी जी और कस्तूरबा को समर्पित कीर्ति मंदिर नामक एक विशाल मंदिर भी है। यहाँ मौजूद एक चित्रशाला में गांधी जी के बचपन से लेकर उनके धोती पहनने वाले दिनों तक की तस्वीरों के माध्यम से गांधी जी के जीवन को दर्शाया गया है। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सौराष्ट्र क्षेत्र के प्रमुख शहर, राजकोट में प्राप्त की थी। स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण और उपयोग का समर्थन करने के लिए गांधी जी ने एक ऐसा स्थान खोजा, जहां पूरे भारत की जनता बुनाई जैसे बुनियादी कौशल सीखने आ सकें और इस तरह ब्रिटिश सामानों से स्वतंत्रता मिल सकें। आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और लोगों को एक साथ काम करने के लिए उनकी प्रमुख परियोजना आज अहमदाबाद में साबरमती नदी के पश्चिमी तट पर है।
जब भारतीयों द्वारा ब्रिटिश शासन का विरोध किया जाने लगा तो भारतीय प्रतिरोध की कमर तोड़ने के लिए, अंग्रेजों ने नमक अधिनियम पेश कर दिया उनके द्वारा नमक की खरीद पर कर (Tax) लगाया गया, जिससे आम भारतीयों के लिए दैनिक वस्तु महंगी हो गई। इसके विरोध में गांधीजी, हजारों अनुयायियों के साथ, नवसारी शहर के पास साबरमती आश्रम से दांडी समुद्र तट तक 240 मील (384 किमी) पैदल चले और दांडी पहुंचने पर, गांधीजी ने समुद्र से एक मुट्ठी नमक उठाया और अनुयायियों को कहा की ये नमक हमारा है और हम कर का भुगतान किए बिना इसका संपूर्ण रूप से उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने भारतीयों को समुद्र से अपने स्वयं के नमक का खनन करने के लिए प्रोत्साहित किया, इस प्रकार ब्रिटिश-विक्रय नमक का बहिष्कार किया गया।
1930 के बाद गांधीजी ने वर्धा में एक आश्रम की स्थापना की। इसका नाम ग्रामीण वैज्ञानिक और उनके मित्र मगन गांधी के नाम पर रखा गया था। यहाँ ऑल इंडिया विलेज इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (All India Village Industries Association) द्वारा ग्रामीण और लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया गया था। जैसा कि हमने पहले ही बताया कि गांधी जी ने कई स्थानों की यात्रा करी थी, मुंबई में, रेवाशंकर जगजीवन झावेरी का बंगला उनका घर बन गया। यहाँ से, उन्होंने 1942 में अगस्त क्रांति मैदान में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया और रोलेट एक्ट (Rowlatt Act) के खिलाफ आंदोलन किया। वही नई दिल्ली में तीस जनवरी मार्ग पर स्थित, गांधी स्मृति या बिड़ला हाउस वह जगह है, जहाँ गांधीजी ने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे, यहीं पर उन्होंने 'हे राम' कहते हुए अंतिम सांस ली। यह बिड़ला परिवार से संबंधित था और 1928 में घनश्यामदास बिड़ला द्वारा बनवाया गया था और अब यह एक बहुमाध्यम संग्रहालय है। राज घाट समाधि उनसे जुड़ा अंतिम स्थान है।