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मेरठ शहर का मां मंशा देवी मंदिर लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र है। लोग यहां दूर दूर से आकर मन्नतें मांगते हैं तथा नवरात्रों में यहां नौ दिनों तक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है। जिस स्थान पर मंदिर स्थित है, वहां कभी शमशान हुआ करता था तथा लोग यहां आने से डरते थे। लेकिन मां की कृपा से आज यहां आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है। मंदिर में रविवार को विशेष पूजा अर्चना का आयोजन होता है तथा इस दिन लोग दूर दराज से आकर मन्नतें मांगते हैं। जिन भक्तों की मन्नतें पूरी हो जाती हैं, वे रविवार के दिन यहां विशेष भंडारे का आयोजन करते हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां आने वाले भक्त कभी निराश नहीं होते। मंदिर से पहले इस स्थान पर यहां शमशान हुआ करता था, जिसमें आसपास के गांव के लोग अंतिम संस्कार करने पहुंचते थे। लोगों का मानना था कि यहां शमशान में भूतप्रेत वास करते हैं। मंदिर समिति के मुताबिक मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मंदिर साढ़े चार बीघा क्षेत्र में बना है तथा यहां मां मंशा देवी के अलावां करीब 25 अन्य मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए झुक कर ही जाना पड़ता है।
मंदिर परिसर में ही बाबा राम गिरि की समाधि भी बनी है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उनके दादा स्वर्गीय बाबा रामगिरि ने इस मंदिर की देखरेख का कार्य शुरू किया था। उनके बाद पिता चनवा गिरि ने मंदिर की देखरेख का कार्य शुरू किया। मंदिर की देखरेख का कार्य अब मां मंशा देवी मंदिर ट्रस्ट (Trust) कर रहा है, जिसकी स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी। ट्रस्ट की स्थापना होने के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। नवरात्र या आम दिनों में श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो इसके लिए उन्हें सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं। यह एक प्राचीन सिद्धिपीठ मंदिर है, दूर-दूर से भक्त लोग आकर हलवा प्रसाद का भोग लगाते हैं। जहां प्राचीनकाल से माता की आराधना कर जन-जन का आत्म कल्याण होता रहा है। यहां बड़ी संख्या में लोग उपस्थित होकर देवी-देवताओं की पूजा किया करते हैं। यह मंदिर आजादी से पहले का है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां से मां किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटने देती हैं। मंदिर में कई भक्त ऐसे आते हैं, जिनकी कामना पूरी होने के बाद वह सालों से यहां लगातार आते हैं। मंदिर के बारे में लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि यहां अपनी मुरादें लिखने से मां उनकी मुरादें सुनती हैं।
कोविड-19 प्रसार को रोकने के लिए मार्च में राष्ट्रव्यापी तालाबंदी की गई थी तथा मंदिर के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए गए थे। किंतु मंदिर को 9 जून को फिर से खोल दिया गया और अब केवल उन लोगों के लिए ही प्रवेश की अनुमति है, जो www.mansadevi.org.in पर अपना पंजीकरण कराते हैं। तालाबंदी खुलने के बाद जबकि ऑनलाइन (Online) पंजीकरण शुरू हो गया है तथा श्रद्धालुओं ने 9 जून को मंदिर का दौरा करना शुरू कर दिया है, लेकिन फिर भी उन्हें प्रसाद देने की अनुमति नहीं है। इस दौरान, मंदिर के रास्ते में प्रसाद बेचने वाली दुकानें तो स्थित हैं लेकिन कोई लेने वाला नहीं है। दुकानदारों के अनुसार उनकी बिक्री सीधे प्रसाद पर निर्भर है। उनका कहना है कि अनलॉक (Unlock) की यह अवधि लॉकडाउन (Lockdown) अवधि के समान है। कोई राहत उन्हें नहीं मिल पा रही है। प्रसाद बेचना यहाँ के 150 से अधिक लोगों की आजीविका का एकमात्र स्रोत था। उनके अनुसार ऐसा कभी नहीं हुआ जब भक्त प्रसाद नहीं चढ़ा सकते थे। अगर वे पैसे की पेशकश कर सकते हैं, तो प्रसाद क्यों नहीं? महामारी से पहले, विक्रेता करीब 5000 से लेकर 30,000 रुपये तक कमा लेते थे किंतु यह अब घटकर 50-100 रुपये प्रति दिन हो गया है। मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व प्रत्येक भक्त को चेहरे पर फेस (Face) आवरण पहनना होता है। हाथों और पैरों की समुचित स्वच्छता और थर्मल स्क्रीनिंग (Thermal screening) के बाद ही प्रवेश की अनुमति प्राप्त होती है।
मंदिर मुख्य रूप से अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला, नक्काशी और मूर्तियों के लिए जाना जाता है। यह कालियागढ़ी, जागृति विहार, मेरठ, उत्तर प्रदेश 250004, भारत में स्थित है। तीर्थयात्रियों के लिए, मनसा देवी मंदिर सप्ताह के सभी दिन खुला रहता है। भक्त किसी भी दिन सुबह से शाम तक तीर्थयात्रा कर सकते हैं। यहां पहुंचने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम है। अक्टूबर के महीने के साथ, मेरठ में सर्दियों का मौसम शुरू होता है। इस पूरे समय में, शहर में शांत और सुखद मौसम की स्थिति देखी जाती है जो यात्रियों को बिना किसी परेशानी के क्षेत्र का पता लगाने की अनुमति देती है।