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दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा लगभग विगत 200 वर्षों से लगातार बढ़ी है। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के दौरान, मुख्य रूप से स्वच्छता, आवास और शिक्षा में सुधार से जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई थी, जिससे प्रारंभिक और मध्य जीवन मृत्यु दर में लगातार गिरावट आई, जो मुख्य रूप से संक्रमण के कारण हुआ करती थी। यह टीकों और फिर एंटीबायोटिक (antibiotic) दवाओं के विकास के कारण हुआ। एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में 1990 के बाद से जीवन-प्रत्याशा दर 17 वर्ष तक बढ़ गयी है, किंतु देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी असमानता देखने को मिलती है। जीवन प्रत्याशा उन वर्षों का माप है जो एक औसत व्यक्ति जीने की उम्मीद कर सकता है।
वर्ष 2014 के अनुसार भारत में राज्यवार जीवन प्रत्याशा दर:
रैंक | राज्य | जन्म से जीवन प्रत्याशा दर
1 केरल 74.9 69.2
2 दिल्ली 73.2 64.1
3 जम्मू और कश्मीर 72.6 -
4 उत्तराखंड 71.7 60.0
5 हिमाचल प्रदेश 71.6 67.0
6 पंजाब 71.6 69.4
7 महाराष्ट्र 71.6 67.2
8 तमिलनाडु 70.6 66.2
9 पश्चिम बंगाल 70.2 64.9
10 कर्नाटक 68.8 65.3
11 गुजरात 68.7 -
12 हरियाणा 68.6 -
13 आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) 68.5 64.4
14 बिहार 68.1 61.6
15 राजस्थान Rajasthan 67.7 62.0
16 झारखंड 66.6 58.0
17 ओडिशा 65.8 59.6
18 छत्तीसगढ़ 64.8 58.0
19 मध्य प्रदेश 64.2 58.0
20 उत्तर प्रदेश 64.1 60.0
21 असम 63.9 58.9
एक अध्ययन में 200 देशों में 286 मौत के कारणों 369 चोट और बीमारियों का अध्ययन किया गया। द लॅन्सेट (The Lancet) पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट (Report) के अनुसार भारत में जीवन प्रत्याशा 1990 में 59.6 साल से बढ़कर 2019 में 70.8 साल हो गई है, जिसमें केरल में 77.3 साल है और उत्तर प्रदेश में 66.9 साल तक है। किंतु यह जीवन प्रत्याशा एक स्वस्थ जीवन प्रत्याशा नहीं है। लोग अधिकांशत: बीमारियों और विकलांगता के साथ लंबे समय तक जी रहे हैं। पहले भारत में मातृ मृत्यू दर बहुत उच्च हुआ करती थी, जो अब घट गयी है, किंतु हृदय रोग जो पांचवे स्थान पर था, वह पहले स्थान पर आ गया है। इसके साथ ही कैंसर पीडि़तों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। कुछ देशों ने टीकाकरण और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से संक्रामक रोगों को रोक दिया है, किंतु कुछ आज भी इनसे जूझ रहे हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में कुल रोगों का 58% असंक्रमित रोगों के कारण है, जो 1990 तक 29% हुआ करता था। इसके कारण समय से पहले होने वाली मृत्यु 22% से बढ़कर 50% हो गयी है। पिछले 30 वर्षों में स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले असंक्रामक रोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है, जिसमें हृदय रोग, फेफड़ों से संबंधित रोग (सीओपीडी) , मधुमेह, आघात या स्ट्रोक(stroke), और मसक्यूलोस्केलेटल (musculoskeletal) विकार प्रमुख हैं। 2019 के एक शोध में कहा गया है कि भारत में मृत्यु के लिए शीर्ष पांच कारक वायु प्रदूषण (अनुमानित 1.67 मिलियन मौतों में योगदान), उच्च रक्तचाप (1.47 मिलियन), तम्बाकू उपयोग (1.23 मिलियन), खराब आहार (1.18 मिलियन) और उच्च रक्त शर्करा (1.12 मिलियन) हैं।
पुरानी बीमारी, मोटापा, उच्च रक्तचाप, वायु प्रदूषण जैसे कारकों ने कोविड-19 के माध्यम से होने वाली पुरानी में आग में घी का काम किया है। एक अध्ययन के अनुसार, जब तक COVID-19 का कोई उपचार नहीं मिलता है, तब तक यह गंभीर रूप से इससे (कोविड-19) प्रभावित क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा में अल्पकालिक गिरावट का कारण बन सकता है।
शोधकर्ताओं ने विभिन्न आयु वर्ग के लिए एक मॉडल बनाया, जिसमें उन्होंने एक वर्ष की अवधि में कोविड-19 से मरने वालों की संभावना और विभिन्न बीमारियों से मरने वालों की संभावना का आकलन किया। फिर इन्होंने दोनों परिस्थितियों में जीवन प्रत्याशाओं की गणना की, जिसमें इन्होंने पाया कि कोविड-19 का जीवन प्रत्याशा पर विशेष प्रभाव पड़ेगा। जिन देशों में कोविड-19 के विस्तार की दर 2% है और जीवन प्रत्याशा 80% है, वहां यह बीमारी जीवन प्रत्याशा में गिरावट का कारण बनेगी। उच्च जीवन प्रत्याशा दर और 10% कोविड-19 के विस्तार की दर वाले देशों जैसे अमेरिका, यूरोपीय देशों में यह 1 वर्ष घट जाएगी। 50% कोविड-19 के विस्तार की दर वाले विकासशील देशों में जीवन प्रत्याशा लगभग 3 वर्ष तक घट जाएगी। हालांकि संभावना जताई गयी है कि कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में, महामारी के समाप्त होने के बाद जीवन प्रत्याशा ठीक हो जाएगी।
अमेरिका में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) के निदेशक क्रिस्टोफर मुरे ने कहा, "इन बीमारियों के जोखिम कारकों में से अधिकांश रोकथाम योग्य और उपचार योग्य होते हैं, और इनके उपचार से भारी सामाजिक और आर्थिक लाभ हो सकता है।" मुरे आगे कहते हैं कि हम स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले व्यवहारों विशेष रूप से आहार की गुणवत्ता, कैलोरी सेवन और शारीरिक गतिविधि, को बदलने में असफल हो रहे हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य और व्यवहार संबंधी अनुसंधान के लिए अपर्याप्त नीतिगत ध्यान और वित्त पोषण में कमी इसके प्रमुख कारण हैं। मुरे ने एक बयान में कहा, "स्वास्थ्य प्रगति पर सामाजिक और आर्थिक विकास के अत्यधिक प्रभाव को देखते हुए, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और रणनीतियों को दोगुना करना होगा, स्कूली शिक्षा तक पहुंच और महिलाओं की स्थिति में सुधार करना हमारी सामूहिक प्राथमिकता होनी चाहिए।" स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक आर्थिक स्थिति और शिक्षा में सुधार हमारे स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं।
दुनिया भर में, जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या संभावना 2015 संशोधन के अनुसार 69 वर्ष (पुरुषों के लिए 67 वर्ष) थी, और 2010-2015 की अवधि में यह 71 वर्ष (पुरुषों के लिए 70 वर्ष और महिलाओं के लिए 72 वर्ष) थी। द वर्ल्ड फैक्टबुक (The World Factbook) के अनुसार 2016 में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 71.1 वर्ष थी। 2015 के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, सभी प्रमुख क्षेत्रों में और सभी व्यक्तिगत देशों में औसतन महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं। डब्ल्यूएचओ के प्रति सबसे कम समग्र जीवन प्रत्याशा वाले देश सिएरा लियोन, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, गिनी-बिसाऊ, लेसोथो, सोमालिया, एसावातिनी, अंगोला, चाड, माली, बुरुंडी, कैमरून और मोजाम्बिक हैं। उन देशों में से, 2011 में केवल लेसोथो, एसावातिनी, और मोजाम्बिक में 15-49 आयु वर्ग में 12 प्रतिशत से अधिक एचआईवी से पीड़ित थे।
2018 की रिपोर्ट के अनुसार 10 शीर्ष जीवन प्रत्याशा वाले देश (भारत का स्थान सूची में 130 वां (130th Rank) है
(Rank) देश और क्षेत्र
(Countries and Regions) जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (वर्षों में) जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (वर्षों में)
(Life expectancy at birth (in years))
कुल
(Overall) स्त्री
(Female) पुरुष
(Male)
1 हांग काग 84.7 87.6 81.8
2 जापान 84.5 87.5 81.1
3 सिंगापुर 83.8 85.8 81.5
4 ईटली 83.6 85.5 81.7
5 स्वीट्जरलैण्ड 83.4 85.3 81.1
6 स्पैन 83.4 86.1 80.7
7 ऑस्ट्रेलिया 83.3 85.3 81.3
8 आइसलैण्ड 82.9 84.4 81.3
9 दक्षिण कोरिया 82.8 85.8 79.7
10 इजराइल 82.8 84.4 81.1