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पृथ्वी पर पाये जाने वाले पेड़-पौधे मानव के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। पेड़-पौधे जहां, पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं, वहीं धरती को सौंदर्य से भी परिपूर्ण बनाते हैं। ऐसा ही एक पेड़ गुलमोहर का भी है, जो अपने सुंदर फूलों से सबको मोहित करता है। डेलोनिक्स रेजिया (Delonix Regia) उर्फ़ गुलमोहर, मेडागास्कर (Madagascar) के शुष्क पर्णपाती वनों की स्थानीय प्रजाति है, लेकिन दुनिया भर में इसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पेश किया गया है, जहां यह प्राकृतिक रूप से उगाया जाता है। यूं तो, वन्य क्षेत्रों में यह प्रजाति प्रायः लुप्त है, लेकिन इसे व्यापक रूप से उन बाहरी स्थानों में उगाया जा रहा है, जहां यह आसानी से वृद्धि करता है। इन क्षेत्रों में उत्तरी अमेरिका (North America), कैरेबियन (Caribbean) और मध्य अमेरिका (Central America), दक्षिण अमेरिका (South America), यूरोप (Europe) और मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया (Asia), दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया (Australia) आदि शामिल हैं।
गुलमोहर सजावटी फूलों का पेड़ है, जिसकी ऊंचाई 10-15 (अधिकतम 18) मीटर (meter) तक हो सकती है। इसका तना प्रायः लकड़ी वाला, सीधा, और मेहराब की आकृति जैसा होता है। पेड़ को मुख्य रूप से अपने लाल और नारंगी फूलों के लिए जाना जाता है। चार नारंगी-लाल पंखुड़ियों के साथ गुलमोहर के फूल बड़े होते हैं। इनकी ये चार पंखुड़ियां 8 सेंटीमीटर (centimeter) लंबी होती हैं तथा फूल की पांचवी सीधी पंखुड़ी, पीले और सफेद रंग के साथ अपेक्षाकृत थोड़ी बड़ी होती है। फूलों के लाल-नारंगी रंग की वजह से इसे जंगल की लौ के रूप में भी जाना जाता है। गुलमोहर की कुछ किस्मों (जैसे – फ्लाविडा - Flavida) में फूलों का रंग प्रायः पीला भी होता है। युवावस्था में इनकी फली या बीजकोष (Pods) हरी और नरम होती है, जो, बाद में गहरे भूरे और लकड़ी के समान संरचना में बदल जाती है। इनके बीजकोष 60 सेंटीमीटर लंबे और 5 सेंटीमीटर चौड़े हो सकते हैं। गुलमोहर में औसतन 0.4 ग्राम वजन के साथ बीजों का आकार प्रायः छोटा होता है। अपने सजावटी गुणों के साथ गुलमोहर कई औषधीय गुणों जैसे मधुमेह-रोधी, जीवाणु-रोधी, एंटी-डायरियल (Anti-Diarrheal), सूक्ष्मजीव-रोधी, सूजनरोधी आदि से भी युक्त है। यह विभिन्न क्षेत्रों में अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। भारतीय राज्य केरल के संत थॉमस (Saint Thomas) ईसाई मानते हैं कि, जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था, तब उनके क्रॉस (Cross) के पास गुलमोहर का एक छोटा पेड़ भी था। ईसा मसीह का खून जब इन फूलों पर पड़ा तो, इसके फूल चटक लाल रंग के हो गये। खिला हुआ गुलमोहर कैरेबियन (Caribbean) सागर के छोटे द्वीपों, सेंट किट्स (Kitts) और नेविस (Nevis) का राष्ट्रीय फूल भी है। वियतनाम (Vietnam) में, यह पेड़ एक प्रसिद्ध शहरी पेड़ के रूप में जाना जाता है तथा यहां इसके फूल मई-जुलाई (May-July) के दौरान खिलते हैं, जो स्कूल (school) वर्ष के अंत को भी इंगित करते हैं। इस कारण वियतनाम में इसे ‘पुपिल्स फ्लावर’ (Pupil's Flower) भी कहा जाता है।
जिस प्रकार से अपने सजावटी और औषधीय गुणों के कारण इस प्रजाति को बाहरी या अन्य क्षेत्रों में पेश किया गया है, ठीक वैसे ही अनेकों उद्देश्यों के लिए विभिन्न पेड़ों का उसके मूल स्थान से नए क्षेत्र में प्रवेश कराया जाता है। यह प्रक्रिया पादप प्रवेश (Plant Introduction) कहलाती है, जिसमें किसी विशिष्ट जीनोटाइप (Genotype) वाले पौधे को उसके स्वयं के वातावरण से एक नए वातावरण में लाया जाता है। इस प्रक्रिया के कई उद्देश्य हो सकते हैं, जिनमें कृषि, वानिकी और उद्योग में उपयोग, सौंदर्य-सम्बंधी उपयोग, जर्मप्लाज्म (Germplasm) संरक्षण, पेड़ों की उत्पत्ति और वितरण का अध्ययन आदि शामिल हैं। पादप प्रवेश के कई फायदे हैं, जैसे इसके द्वारा पौधों की बेहतर किस्मों को प्रत्यक्ष रूप से या चयन या संकरण के बाद नए क्षेत्र में पेश किया जा सकता है। जर्मप्लाज्म संग्रह, अनुवांशिक परिवर्तनशीलता का रखरखाव और संरक्षण आदि इस प्रक्रिया के द्वारा सम्भव हो जाते हैं। पादप प्रवेश जहां फसल सुधार का सबसे त्वरित और किफायती तरीका है, वहीं यह नए क्षेत्रों में विभिन्न किस्मों को पेश करके उन्हें कुछ बीमारियों से भी बचा सकता है। हालांकि लाभ के साथ-साथ पादप प्रवेश के कुछ नुकसान भी देखे गये हैं, जैसे, नयी किस्म के साथ खरपतवारों का प्रवेश भी अन्य देशों से नए क्षेत्रों में हो जाता है। भारत में पौधों में अनेकों फफूंद जनित बीमारियाँ जैसे - लेट ब्लाइट ऑफ़ पोटेटो (Late Blight Of Potato), फ़्लैट स्मट ऑफ़ व्हीट (Flat Smut Of Wheat) आदि पादप प्रवेश के कारण ही उत्पन्न हुई हैं। इसके अलावा पौधों में कीटों से होने वाली बीमारियां जैसे पोटेटो ट्यूबर मॉथ (Potato Tuber Moth), फ्लूटेड स्केल ऑफ़ सिट्रस (Fluted Scale Of Citrus) आदि भारत में अन्य क्षेत्रों से लाये गए पौधों के कारण ही हुई हैं। इस प्रकार पौधों का नए क्षेत्रों में प्रवेश न केवल फायदेमंद है, बल्कि हानिकारक भी है।