बहुभाषावाद क्यों देना चाहिये - शिक्षा और समाज में बढ़ावा

ध्वनि II - भाषाएँ
22-02-2021 10:08 AM
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बहुभाषावाद क्यों देना चाहिये - शिक्षा और समाज में बढ़ावा
मनुष्य के जीवन में भाषा की एक अहम भूमिका है। भाषा के जरिये ही देश और विदेशों के साथ संवाद स्थापित किया जा सकता है। भाषा, मनुष्य की पहचान, संचार, सामाजिक एकीकरण, शिक्षा और विकास के लिए महत्वपूर्ण है। परंतु , वैश्वीकरण प्रक्रियाओं के कारण कई भाषाएं हैं जिनका अस्तित्व आज खतरे में पड़ गया है। कई भाषाएं तो पूरी तरह से गायब होने की कगार पर हैं। जब-जब भाषाएं लुप्त होती है तो उनके साथ दुनिया से सांस्कृतिक विविधता भी लुप्त होती है। कई परंपराएं, स्मृति, सोच और अभिव्यक्ति के अनूठे तरीके भी इसके साथ खो जाते हैं। दुनिया में हर दो हफ्ते में एक भाषा पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को अपने साथ ले जाती है। दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से कम से कम 43% लुप्तप्राय हैं। केवल कुछ सौ भाषाओं को शिक्षा प्रणाली और सार्वजनिक डोमेन (domain) में वास्तव में स्थान का गौरव दिया गया है, और सौ से कम भाषाओं को डिजिटल (digital) दुनिया में उपयोग किया जाता है। ये बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज अपनी भाषाओं के माध्यम से ही दुनिया में अस्तित्व में है, जो पारंपरिक ज्ञान और संस्कृतियों को एक स्थायी तरीके से संचारित और संरक्षित करते हैं। इसी भाषाई विविधता को संरक्षित करने और मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यूनेस्को (UNESCO) लगभग 20 वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस (International Mother Language Day) का जश्न मना रहा है।

इस अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के अंतर्गत शिक्षा और समाज में समावेश के लिए बहुभाषावाद को बढ़ावा दिया जाता है। इस दिन के पीछे का उद्देश्य दुनिया के लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देना है। यूनेस्को का मानना है कि मातृभाषा के आधार पर शिक्षा, बचपन के शुरुआती वर्षों से शुरू होनी चाहिए और शिक्षा सीखने की नींव है। इस वर्ष, यह दिन सभी नीतिविदों, शिक्षकों, विद्वानों और नीति निर्माताओं को बहुभाषी शिक्षा को उचित महत्व देने और शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए एक आह्वान है। विशेष रूप से कोविड 19 के बाद, जब दुनिया भर के छात्रों ने महत्वपूर्ण समय खो दिया है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के सामान्य सम्मेलन ने नवंबर 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस की घोषणा की। हालांकि, इसे औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) द्वारा 2002 में मान्यता दी गई थी। मातृभाषाओं के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए सभी कदम केवल भाषाई विविधता और बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भाषाई और सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में जागरूकता विकसित करने और वार्ता के आधार पर एकता को प्रेरित करने के लिए उठाये जाते हैं।
16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव A/RES/61/266 में अपने सदस्य राष्ट्रों से दुनिया भर के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने का आह्वान किया है। इसी संकल्प के द्वारा, महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसंस्कृतिवाद के माध्यम से विविधता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में एकता को बढ़ावा देने के लिए 2008 में अंतर्राष्ट्रीय भाषा दिवस की घोषणा की थी। हर वर्ष 21 फरवरी के दिन को "अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाये जाने का उद्देश्य विश्व भर में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषिता का प्रसार करना और दुनिया में विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरुकता लाना है। भारत में भी इस दिन को “मातृभाषा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में कोई भी एक भाषा ऐसी नहीं है जो पूरे देश में बोली जाती है या ऐसी एक भाषा नहीं है जिसे "राष्ट्रभाषा" घोषित किया गया हो। भारत में कुल 122 प्रमुख भाषाएं और 1599 अन्य भाषाएं हैं। केंद्र सरकार द्वारा हिंदी और अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है जबकि प्रत्येक राज्य को अपनी आधिकारिक भाषा चुनने की स्वतंत्रता है। भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं की सूची के अंदर 22 भाषाएं है। यहां तक की भारतीय मुद्रा में भी कई भाषाएँ और संस्कृतियां देखन को मिलती हैं। भारत में बोली जाने वाली भाषाएं कई भाषा परिवारों से संबंधित हैं, जिनमें प्रमुख हैं इंडो-आर्यन भाषाएं (Indo-Aryan languages) जो 70% भारतीयों द्वारा बोली जाती हैं, और द्रविड़ियन भाषाएँ (Dravidian languages) 20% भारतीयों द्वारा बोली जाती हैं। बाकि आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं ऑस्ट्रोएशियाटिक (Austro-Asiatic), सिनो-तिब्बती (Sino-Tibetan), ताई-कदाई (Tai–Kadai) और कुछ अन्य छोटी भाषा परिवारों से संबंधित हैं और अलग-थलग हैं। भारत में इस दिन का मकसद हमारे देश की भाषाई विविधता को चिन्हित करना, अन्य भारतीय भाषाओं के भी उपयोग को प्रोत्साहित करना, भारत में संस्कृतियों की विविधता और साहित्य, शिल्प, प्रदर्शन कला, लिपियों और रचनात्मक अभिव्यक्ति के अन्य रूपों को समझना और ध्यान आकर्षित करना है।

यूनेस्को ने भारत को बहु भाषाई देशों में से एक माना है, जिसमें 22 अनुसूचित भाषाएँ और सैकड़ों स्थानीय भाषाएँ और बोलियाँ हैं। ये भाषाएं केवल संचार का एक साधन नहीं है, बल्कि ये भारत की समृद्ध संस्कृति, विरासत और परंपराओं का प्रतीक हैं। आज हमें भाषाई विविधता को संरक्षित करने की आवश्यकता, यह हमारी सांस्कृतिक पहचान, सांस्कृतिक विविधता, और हमारे अतीत की झलक का आइना है। हाल के वर्षों में दुनिया भर में भाषा की विविधता खतरे में आ गई है क्योंकि विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले दुर्लभ होते जा रहे हैं। आज इस समस्या को सामाजिक स्तर पर संबोधित करने की आवश्यकता है। आज जरूरत इस बात की है कि हम अपने राष्ट्र की विविधता का सम्मान और रक्षा करें। हमें जरूरत है कि बहुभाषावाद को शिक्षा, प्रशासनिक प्रणाली, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और यहां तक कि साइबर स्पेस (cyber space) में स्वीकार किया जाये।

संदर्भ:
https://bit.ly/2ZCBIRS
https://bit.ly/3dzcyMo
https://bit.ly/3aCj9DQ
https://bit.ly/37zzEi9

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में बांग्लादेशी भाषा सीखने वाले बच्चों को दिखाया गया है। (यूनेस्को)
दूसरी तस्वीर यूनेस्को का लोगो दिखाती है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में भारतीय मानचित्र और कुछ बोली जाने वाली भाषा को दिखाया गया है।