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वास्तविक संचालित उड़ान भरने वाले चमगादड़ों की एक प्रजाति हमें भारत में भी देखने को मिलती है, वह है, इंडियन फ्लाइंग फॉक्स (Indian Flying Fox)। इंडियन फ्लाइंग फॉक्स को भारत के सबसे बड़े चमगादड़ के रूप में जाना जाता है, जो कि दुनिया के सबसे बड़े चमगादड़ों में से एक है। फ्रूट बैट (Fruit Bat) के नाम से जाना जाने वाला यह स्तनधारी फ्लाइंग फॉक्स (Flying fox) की एक प्रजाति है, जो कि भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। यह एशिया महाद्वीप के बांग्लादेश (Bangladesh), भूटान (Bhutan), भारत, तिब्बत (Tibet), मालदीव (Maldives), म्यांमार (Myanmar), नेपाल (Nepal), पाकिस्तान (Pakistan) और श्रीलंका (Sri Lankas) क्षेत्रों में पाया जाता है तथा खुले पेड़ की शाखाओं पर बड़े पैमाने पर स्थापित उपनिवेश में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में या मंदिरों में घूमता है तथा छोटे व्यास वाले ऊंचे पेड़ों पर बैठना पसंद करता है। इनका निवास स्थान भोजन की उपलब्धता पर अत्यधिक निर्भर करता है। शहरीकरण या सड़कों के चौड़ीकरण की वजह से इनकी आबादी काफी खतरे में है और मनुष्यों द्वारा पेड़ों को अत्यधिक काटने की वजह से इनके उपनिवेश बिखर जाते हैं।
इसे एक रोग वाहक के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह मनुष्यों में कई विषाणुओं को प्रसारित करने में सक्षम है। यह रात्रिचर है और मुख्य रूप से भोजन के लिए पके फलों जैसे कि आम, केले आदि पर निर्भर है। फलों की खेतों के प्रति विनाशकारी प्रवृत्ति के कारण इस प्रजाति को अक्सर हिंसक जीव के रूप में माना जाता है, लेकिन इसके परागण और बीज प्रसार के लाभ अक्सर इसके फल की खपत के प्रभावों को कम कर देते हैं। जैसा कि हम जानते ही हैं कि रोगवाहक होने की वजह से ये विभिन्न प्रकार के रोगजनकों वहन करते हैं और मनुष्यों को संक्रमित करने में सक्षम होते हैं। रेबीज (Rabies), निपाह (Nipah), हेंड्रा (Hendra), इबोला (Ebola) और मारबर्ग (Marburg) सभी चमगादड़ द्वारा धारण किये गए विषाणु हैं, जो मनुष्यों में गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। मारबर्ग और इबोला विषाणु के कुछ उपभेदों से संक्रमित मनुष्यों की 80-90% तक मौत हो सकती है। इन बीमारियों के प्रसार के लिए केवल चमगादड़ ही नहीं बल्कि मनुष्य भी उत्तरदायी है क्योंकि मनुष्यों ने चमगादड़ क्षेत्र पर कब्जा किया है, जिसके कारण इन जानवरों के संपर्क का खतरा बढ़ गया है।
तो अब सवाल यह उठता है कि ये खतरनाक रोगजनक स्वयं चमगादड़ को क्यों नहीं मारते हैं? वैज्ञानिकों को लगता है कि यह वास्तव में उड़ान भरने की उनकी क्षमता के कारण होता है। उड़ान भरने की वजह से उनका शरीर काफी ऊर्जा की खपत करता है, और जब चमगादड़ द्वारा अधिक ऊर्जा का उपयोग किया जाता है तो बहुत अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है। चमगादड़ के डीएनए (DNA) को नुकसान पहुंचाने वाले इस प्रतिक्रियाशील अपशिष्ट को रोकने के लिए, चमगादड़ों ने परिष्कृत रक्षा तंत्र विकसित किए हैं जो आसानी से चमगादड़ को बीमारी से बचाने में मदद करते हैं। अब आप सोच रहे होंगे- चमगादड़ में विषाणु कैसे जीवित रहते हैं? इसका उत्तर भी उनके उड़ान भरने की क्रिया से संबंधित है। विषाणु जीवाणुओं के विपरीत, पूरी तरह से मेजबान पर निर्भर होते हैं, और परिणामस्वरूप उन्हें काफी विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। जब चमगादड़ उड़ते हैं, तो उनका आंतरिक तापमान लगभग 40 डिग्री सेल्सियस (104 डिग्री फ़ारेनहाइट ) तक बढ़ जाता है, जो कई विषाणुओं के लिए बहुत गर्म होता है। यह चमगादड़ में बहुत सारे विषाणु को मार देता है, केवल उन शक्तिशाली विषाणु को छोड़कर, जो सहिष्णुता तंत्र विकसित कर चुके हैं। हमारे लिए दुर्भाग्य से, इसका मतलब यह भी है कि वे एक जलते हुए मानव बुखार को सहन कर सकते हैं। लेकिन इस वजह से चमगादड़ों से द्वेष न करें क्योंकि वे अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं और वे मच्छर भी खाते हैं।