कैसे भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमि धर्मनिरपेक्षता से अलग है?

आधुनिक राज्य : 1947 ई. से वर्तमान तक
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कैसे भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमि धर्मनिरपेक्षता से अलग है?
वर्तमान में मनुष्य ने अत्यधिक उन्नति की है जिससे धर्म का परिक्षेत्र भी अछूता नहीं है। आज अनेक देशों में धार्मिक रूढ़िवादिता की वजह से विकास प्रभावित हो रहा है साथ ही साथ वैश्वीकरण एवं भूमंडलीकरण की वजह से विश्व सिमट कर रह गया है, तथा एक देश से दूसरे देशों में सांस्कृतिक एवं धार्मिक विभिन्‍नता में वृद्धि हुई है। ऐसे वातावरण में धार्मिक सहिष्णुता का पालन करना बहुत आवश्यक हो जाता है। यदि कोई देश किसी धर्म विशेष को संरक्षण प्रदान करेगा तो धार्मिक असहिष्णुता का वातावरण उपस्थित होगा ही, जिस कारण देश का विकास बाधित हो सकता है, और विभिन्‍न धर्मों के बीच टकराव उत्पन्न हो सकता है। उपरोक्त परिस्थितियों से बचने के लिये सेक्युलरिज्म (secularism) या धर्म-निरपेक्षता एक आदर्श राजनीतिक सिद्धान्त है। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो व्यक्ति की आज़ादी के सिद्धांत से उत्पन्न हुआ है। राज्य और धर्म के बीच किसी प्रकार का संबंध न होना ही धर्म-निरपेक्षता की सामान्य परिभाषा स्वीकार की जाती है। किसी भी धर्म पर आधारित न होना ही धर्म निरपेक्षता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी धर्म एक समान समझे जाते हैं और भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है। 42वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया है। भारत की धर्मनिरपेक्षता पाश्चात्य (Western) देशों में लागू धर्म-निरपेक्षता से अलग है। इसलिए हम यहाँ पर धर्म-निरपेक्षता की दोनों अवधारणाओं को समझने की कोशिश करेंगे और दोनों के बीच क्या अंतर है वो जानेंगे।

धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल (European model) या पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता :-
पश्चिमी देशों (Western countries) में धार्मिक वर्चस्ववाद की वजह से एक अलग तरह की धर्मनिरपेक्षता का पालन किया जाता है। इन देशों में एक बात सामान्य है वे न तो धर्मतांत्रिक है न किसी खास धर्म की स्थापना करते है। पश्चिमी देशों में धर्म तथा राज्य सत्ता के सम्पूर्ण संबंध विच्छेद को धर्मनिरपेक्षता के लिये आवश्यक माना जाता है। राज्य धर्म के किसी भी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा और इसी प्रकार धर्म भी राज्य के मामलों में दखल नहीं देगा। पश्चिमी मॉडल में धर्मनिरपेक्षता से आशय ऐसी व्यवस्था से है जहाँ धर्म और राज्यों का एक-दूसरे के मामले मे हस्तक्षेप न हो, व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्व दिया जाए। धर्म तथा राज्य दोनों के अपने-अपने अलग-अलग क्षेत्र है, तथा अलग-अलग सीमायें भी है।
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल :-
पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के विपरीत भारत में प्राचीन काल से ही विभिन्न विचारधाराओं को स्थान दिया जाता आ रहा है। यहाँ धर्म को जिंदगी का एक तरीका, आचरण संहिता तथा व्यक्ति की सामाजिक पहचान माना जाता रहा है। भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है, न ही किसी धर्म विशेष को तवज्जों दिया जाता है। यहाँ सभी धर्म समान है तथा व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता संविधान के द्वारा दी गयी है। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म के अनुसार आचरण कर सकता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता के अर्न्तगत विभिन्‍न धार्मिक समुदायों के अधिकारों का राज्य संरक्षण करता है। साथ ही अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया जाता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता के तहत गांधी जी की अवधारणा पर ज्यादा बल दिया गया है, जिसके अनुसार सभी धर्मों को समान और सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित करने की बात की गई है।
भारत में हमेशा से ही धार्मिक सहिष्णुता रही है। अशोक ने लगभग 2200 साल पहले, हर्ष ने लगभग 1400 साल पहले विभिन्न धर्मों को स्वीकार और संरक्षण दिया था। अकबर ने भी भारत के अन्य धर्मों के बीच समानता को स्वीकार किया था। औपनिवेशिक काल में 1857 के विद्रोह में भी मुस्लिम और हिंदू एकजुट हो कर लड़े थे। भारत में धर्मनिरपेक्षता का सार विभिन्न सामाजिक समूहों के आवास में निहित है और किसी भी समाज के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने वाली प्रवृत्तियों को दूर करता है। प्राचीन भारत से ही भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने कई धर्मों, संप्रदायों, समुदायों को सहिष्णुता सिखाई है, जिससे सामाजिक सहिष्णुता के साथ एक सहिष्णु राष्ट्र बन सके।
कभी-कभी यह कहा जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की नकल भर है। लेकिन संविधान को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि ऐसा नहीं है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है। जिसका जिक्र निम्न बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-

इस प्रकार भारत की धर्मनिरपेक्षता न तो पूरी तरह धर्म के साथ जुड़ी है और न ही इससे पूरी तरह तटस्थ है। यदि हम केवल मेरठ की बात करे तो यह जिले का मुख्यालय है, जिसमें 1,025 गाँव भी सम्मिलित हैं। हालांकि मेरठ भारत में बहुत बड़ा शहर नहीं है, लेकिन यहां कई धर्मों के लोग रहते हैं और अपने धर्म का खुलकर पालन करते हैं। 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार मेरठ शहरी क्षेत्र (जिसमें नगर निगम एवं छावनी परिषद के अंतर्गत आते क्षेत्र सम्मिलित हैं) की जनसंख्या 13,05,429 थी। जिनमें से पुरुष और महिला क्रमशः 688,118 और 617,311 हैं। मेरठ में, सर्वाधिक हिंदू जनसंख्या है, यह 61.15% अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म बहुसंख्यक है। लगभग 36.05% के साथ इस्लाम यहां का दूसरा सबसे लोकप्रिय धर्म है। यहां की ईसाई जनसंख्या (0.41%) भी ठीक ठाक है। शहर में, जैन धर्म के 0.92% अनुयायी है, सिख धर्म के 0.60%, बौद्ध धर्म के 0.60% और लगभग 0.01% किसी अन्य धर्म के अनुयायी है, लगभग 0.77% लोगों का कहना है कि वे किसी विशेष धर्म का पालन नहीं करते है। इतनी विविधा होने के बाद भी यहां के लोग एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करते है और सभी को अपने-अपने धर्म का पालन करने की समान स्वतंत्रता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3s0McHm
https://bit.ly/2NqJ0Wp
https://bit.ly/2Nr7dfn
https://bit.ly/3cKkdp1
https://bit.ly/3lqRcSY
चित्र संदर्भ: मुख्य चित्र भारत में धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है। (ensembleias.com) दूसरी तस्वीर पश्चिमी समाज राज्य और धर्म में धर्मनिरपेक्षता को दर्शाती है। (न्यूयॉर्कटाइम्स) तीसरी तस्वीर भारत में धर्मनिरपेक्षता को दिखाती है। (kartavyasadhana.in)