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उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के सभी हिस्सों से हजारों पुरुष बरसाना नामक गाँव के राधा रानी मंदिर में आते हैं। एक छोटे से अनुष्ठान समारोह के बाद, हर कोई मंदिर परिसर और उसके सामने बनी प्रसिद्ध 'रंग रंगीली गली' में एकत्रित होता है। सबसे पहले महिलाओं द्वारा पुरुषों पर रंग लगाया जाता है। ग्रामीणों द्वारा लोक गीत गाए जाते हैं, तथा महिलाओं द्वारा नृत्य किया जाता है। मिठाई की दुकानों पर भांग से बनी ठंडाई को सबको परोसा जाता है। अगले दिन, पुरुष फिर से बरसाना पहुंचते हैं, और इस बार वे गाँव की महिलाओं पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। फिर, महिलाएं लाठियां लेती हैं और पुरुषों को पीटने की कोशिश करती हैं तथा पुरूष खुद को ढाल से बचाने की कोशिश करते हैं। यह सब मजाक में किया जाता है और हर कोई इकट्ठा होकर इस मजाक में भाग लेता है। इस परंपरा को निभाने का कारण भगवान कृष्ण और राधा से जुड़ा हुआ है। किवदंती के अनुसार भगवान कृष्ण नंदगांव से राधा की नगरी बरसाना में आया करते तथा राधा और उनकी सहेलियों को छेड़ा करते। परिणामस्वरूप उन्हें बरसाना से निकाल दिया जाता। इस प्रकार हर साल जब भी नंदगांव से पुरूष बरसाना जाते, तब उन पर महिलाओं द्वारा लाठियों से प्रहार किया जाता। पुरुष खुद को बचाने की कोशिश करते, लेकिन जो बचने में असफल हो जाते, उन्हें महिलाओं द्वारा पकड़ लिया जाता तथा महिला का परिधान पहनाकर सार्वजनिक रूप से नृत्य करवाया जाता। तब से इस परंपरा को मथुरा जिले में निभाया जा रहा है। जबकि, होली के कुछ दिन पहले मनायी जाने वाली लठमार होली से लगभग सभी लोग परिचित हैं, वहीं मथुरा के निकट दाऊजी मंदिर में हुरंगा उत्सव की जानकारी कम ही लोगों को है। होली के एक दिन बाद मनाया जाने वाला हुरंगा उत्सव एक विचित्र अनुष्ठान है। दाऊजी मंदिर में सुबह के दर्शन के तुरंत बाद, बलदेव और पड़ोसी गांवों के लगभग 10,000 भक्त मंदिर प्रांगण में इकट्ठा होते हैं। इसके दो घंटे बाद मंदिर परिसर लड़ाई का मैदान बन जाता है। पुरुष महिलाओं पर केसरी रंग का पानी डालते हैं, तथा बदले में महिलाएं पुरुषों की कमीज फाड़कर उन्हें उससे पीटती हैं। सामान्य रूप से यह खेल देवर और भाभी के बीच खेला जाता है। होली की एक अन्य विचित्र परंपरा इटावा जिले की ताखा तहसील के सौंथाना गाँव में भी देखने को मिलती है, जहां लोग होली के अवसर पर बिच्छुओं के साथ खेलते हैं तथा उनकी पूजा करते हैं। अनुष्ठान के दौरान, लोग भाईसन (Bhaisan) देवी टीला में इकट्ठा होते हैं, तथा ढोल बजाकर 'फाग' (लोकगीत) गाते हैं। वे भाईसन देवी टीला की चट्टानों से बिच्छू पकड़ते हैं तथा उन्हें अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर डालते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है, कि बिच्छू उन्हें काटते नहीं हैं। माना जाता है कि, होली के दिन 'फाग' सुनने पर, बिच्छू अपने आप झाड़ियों से निकलकर टीले में आ जाते हैं। फाग गाने के बाद, बिच्छुओं को वापस उसी स्थान पर छोड़ दिया जाता है।
राजस्थान में इस मस्ती भरी होली को हाथियों के साथ मनाया जाता है। जयपुर शहर में, हाथियों के लिए एक सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। यहां हाथियों की शोभायात्रा निकाली जाती है, तथा उनके बीच रस्साकशी का खेल भी आयोजित किया जाता है। पंजाब में सिख इस त्यौहार को एक योद्धा शैली में मनाते हैं। वे आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला नामक एक प्रदर्शनी आयोजित करते हैं, जिसमें मार्शल आर्ट (Martial arts), कुश्ती, तलवार-बाजी आदि का प्रदर्शन किया जाता है। वाराणसी में, होली के मौके पर श्मशान घाट की राख को रंगों के साथ मिलाया जाता है तथा उससे होली खेली जाती है। वे ऐसा इसलिए करते हैं, क्यों कि, उनका मानना है, कि मृत्यु मोक्ष का मार्ग है और हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। इसी प्रकार की विचित्र परंपराओं का अनुसरण देश के विभिन्न हिस्सों में किया जा रहा है।