समय - सीमा 277
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1034
मानव और उनके आविष्कार 813
भूगोल 249
जीव-जंतु 303
| Post Viewership from Post Date to 13- Apr-2021 (5th day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2453 | 0 | 2453 | ||
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
अप्रैल और मई के बीच फसल ऋण चुकाया जाता है, और नए सत्र की शुरुआत में नया ऋण दिया जाता है। फसलों के मूल्य में आयी गिरावट किसानों को होने वाले भारी नुकसान को इंगित करती है, लेकिन जिन किसानों पर पहले से ही भारी ऋण मौजूद है, उनके लिए ऋण चुकाना और भी कठिन हो गया है। कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए हुई तालाबंदी के कारण खेतों पर होने वाले कार्य को रोक दिया गया। हालांकि, सरकार द्वारा आर्थिक पैकेज (Package) की भी घोषणा की गयी, लेकिन यह राहत केवल उन्हीं किसानों के लिए थी, जिनके पास अपनी कृषि भूमि है। भूमिहीन मजदूरों को इस दौरान आय नुकसान का अत्यधिक सामना करना पड़ा। इस स्थिति से निपटने के लिए मजदूरों को भोजन के सेवन में कटौती जैसे कठोर उपायों को अपनाना पड़ा। 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के अनुसार, भारत की 51% ग्रामीण आबादी भूमिहीन है। भूमिहीन मजदूरों के लिए खेती का काम ही उनकी आय का मुख्य स्रोत होता है, लेकिन चूंकि खेतों पर काम बंद हो गया था, इसलिए उनकी आय का स्रोत अत्यधिक प्रभावित हुआ। हालांकि सरकार द्वारा कृषि गतिविधियों को तालाबंदी से कुछ छूट दी गई थी, लेकिन फिर भी भूमिहीन किसानों को खेतों पर काम के लिए नहीं बुलाया गया। विभिन्न राज्यों की सरकार द्वारा राशन कार्ड धारकों को राहत मूल्य और अनाज वितरित करने की घोषणा की गयी, लेकिन यह राहत पर्याप्त नहीं थी। जन धन योजना के तहत जो सहायता महिलाओं को दी जा रही थी, वह भी कई लोगों तक नहीं पहुंची। तालाबंदी के बाद जो अन्य समस्या किसानों के सामने आयी, वह फसल की कटाई के बाद उसे बेचने से सम्बंधित थी। ऐसे किसान जो अन्य क्षेत्रों में जाकर खेतों में काम करते हैं, तालाबंदी के बाद अनेकों किलोमीटर चलकर अपने घर वापस जाने को मजबूर हुए। जो किसान अपने खेतों की फसल काटने के लिए अन्य मजदूरों को काम पर रखते थे, उन्होंने भी इस दौरान अपनी फसल खुद काटने का निर्णय लिया। इस प्रकार अनेकों किसानों को इस दौरान रोजगार और आय का भारी नुकसान झेलना पड़ा। कोरोना के दौरान बड़े पैमाने पर फसल पैटर्न (Patterns) में बदलाव हुए, जो वाणिज्यिक फसलों की कीमत में संभावित वृद्धि को और भी अधिक बढ़ा सकता है, इसलिए सरकार को इसके लिए चिंतित और सतर्क होने की आवश्यकता है। चूंकि, कोरोना महामारी के दौरान फसलों की कटाई में कमी आयी है, इसलिए खाद्यान्न की कमी की संभावना भी बढ़ सकती है। यदि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता है, तो वे उस मौसम में दूसरी फसल उगाने को मजबूर होंगे, जिससे खाद्य आपूर्ति की गतिशीलता में काफी बदलाव आएगा और उत्पादों की कीमतों में वृद्धि होगी। इस प्रकार इसका प्रभाव खाद्य मुद्रास्फीति पर भी पड़ सकता है।
कोरोना महामारी के दौर में कृषि तथा कृषि से जुड़े लोगों को राहत प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा अनेकों उपाय किये गए। राष्ट्रव्यापी तालाबंदी की घोषणा के तुरंत बाद, भारतीय वित्त मंत्री ने कमजोर वर्गों (किसानों सहित) को राहत पहुंचाने के लिए 1700 अरब (1.7 Trillion) का पैकेज घोषित किया। प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत किसानों के बैंक खातों में रुपये 2000 की राशि पहले ही डाल दी गयी। सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी मजदूरी गारंटी योजना ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ के तहत लगे श्रमिकों के लिए मजदूरी दर बढ़ाने की भी घोषणा की। कमजोर आबादी की देखभाल के लिए विशेष योजना के तहत, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की घोषणा की गई। तालाबंदी की शुरूआत के बाद अगले तीन महिनों के लिए पंजीकृत लाभार्थियों को अतिरिक्त अनाज आवंटन भी किया गया। अनौपचारिक क्षेत्र (ज्यादातर प्रवासी मजदूरों) में लगे व्यक्तियों को नकद रुपये और भोजन सहायता की भी घोषणा की गई, जिसके लिए प्रधान मंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति के लिए राहत (PM-CARES) कोष बनाया गया। कृषि वस्तुओं हेतु मांग को बनाए रखने के लिए कृषि भंडारण और उसके संरक्षण में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए। इसके अलावा, उपयुक्त नीतियों और प्रोत्साहनों के साथ ई-कॉमर्स (E-commerce) और डिलीवरी कंपनियों (Delivery companies) और स्टार्ट-अप (Start-ups) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। कृषि से कच्चा माल प्राप्त करने वाले छोटे और मध्यम उद्यमों पर भी सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था असंतुलित न हो।