सिनौली की खुदाई में क्या मिला कैसे टेराकोटा रोज़गार और संस्कृति दोनों को संरक्षित कर रहा है

स्पर्श - बनावट/वस्त्र
21-05-2021 11:15 AM
सिनौली की खुदाई में क्या मिला कैसे टेराकोटा रोज़गार और संस्कृति दोनों को संरक्षित कर रहा है

उत्तर प्रदेश में बागपत जिले के सिनौली गांव में खुदाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पहली बार 2000-1800 ईसा पूर्व "कांस्य युग" के एक रथ के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिसे तांबे की विभिन्न आकृतियों से सजाया गया है। इस खोज ने कांस्य युग के कई भेदों को खोलने में सहायता की है। मार्च 2018 में शुरू हुई खुदाई में आठ कब्रगाह और तीन ताबूतों सहित कई कलाकृतियां भी मिली हैं। एंटीना तलवारें, खंजर, कंघी, और गहने, और खासतौर पर रथ की खोज भारत को प्राचीन सभ्यताओं जैसे की मेसोपोटामिया (Mesopotamia), ग्रीस (Greece) आदि के समतुल्य खड़ी कर देती है: जिन सभ्यताओं कांस्य युग के दौरान में रथों का व्यापक इस्तेमाल किया जाता था। खुदाई के दौरान तलवार, खंजर भी मिले हैं, जो की इसका योद्धाओं की भूमि होने का साक्ष्य भी हैं। 2005 में, प्राचीन मिट्टी के बर्तनों के साथ ही मानव कंकाल के सामने आने के बाद, सिनौली एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित स्थान बन गया। बाद में, आगे की खुदाई से हड़प्पा काल (४००० साल पहले) की एक प्राचीन कब्रगाह भी खोजी गयी।
सिनौली की ही तर्ज पर मेरठ में भी बड़ी मात्रा में मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जो विभिन्न कलाओं और उनकी महानता का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां हस्तिनापुर से कई टेराकोटा (बर्तन, गहने, क्रॉकरी) और सिरेमिक कला और शिल्प भी विभिन्न उत्खनन के माध्यम से प्राप्त हुए हैं। टेराकोटा पूरी तरह से हस्तनिर्मित कला है, टेराकोटा शब्द का अर्थ है पकी हुई रेत। और जैसा कि नाम से पता चलता है, इसका उपयोग मिट्टी से बनी वस्तुओं को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। इसकी कलाकृतियां स्थानीय रूप से पाई जाने वाली मिट्टी से निर्मित की जाती हैं, मिट्टी को कारीगरों द्वारा निश्चित आकार दिया जाता है। और फिर इसे धूप में सुखाया जाता है, उसके बाद नक्काशी की जाती है। और फिर इसे चमकदार रूप देने के लिए पॉलिश किया जाता है। टेराकोटा कला भारत में सबसे प्रभावशाली कला के सबसे उत्कृष्ट रूपों में से एक है। इसका अपना ही एक विस्तृत इतिहास है, हम प्राचीन काल के कई मंदिरों और आस-पास की ढेरों संरचनाओं पर टेराकोटा कला रूपों को देख सकते हैं। अनेक सर्वेक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि प्रारंभिक सिंधु घाटी के नागरिकों को भी टेराकोटा कला के बारे में जानकारी थी। प्राचीन काल में मिट्टी के कारीगरों ने अपने हाथों से इस कला को मूर्त रूप दिया था। टेराकोटा कला भारतीय विरासत और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कला कार्य कुशलता की मांग करती है, इससे जुड़े उद्द्योग आज भी फल फूल रहे हैं। भारतीय कारीगर हजारों वर्षों से सुन्दर टेरीकोटा मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कर रहे हैं। यहां तक कि भारतीय कलाकार भी दुनिया में बिना शीशे के मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए विख्यात हैं। टेराकोटा शब्द आमतौर पर मिट्टी के बर्तनों में बनी मूर्तियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और विभिन्न व्यावहारिक उपयोगों के लिए भी जिसमें बर्तन, पानी और अपशिष्ट जल पाइप, छत की टाइलें, ईंटें, और भवन निर्माण शामिल हैं। यह निर्माण वस्तुएं प्रायः नारंगी रंग में होती हैं। इस कला को कारीगर पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ा रहे हैं, जिसने इसे आज भी एक जिवंत कला बनाये रखा है। वर्तमान में भारतीय कारीगर टेराकोटा की वस्तुएं जैसे मूर्तियाँ, दीवाली के तेल के दीपक, भित्ति चित्र और सजावटी लटकती घंटियाँ बनाते हैं।
टेराकोटा कलाकृतियां दुनिया भर में फैली हुई हैं। यूरोप इसके लिए खासा मशहूर है। जानकारों के अनुसार इसकी "मांग लगातार बढ़ रही है, और लोग अपने बगीचों और अंदरूनी हिस्सों को गहरे भूरे रंग की टेराकोटा कला से सजाना पसंद कर रहे हैं। इसका इस्तेमाल केवल सजावटी सामान जैसे लैंप, फूलदान, पेंटिंग और मूर्तियों तक सीमित न रहकर कटोरे, कप और तवे (फ्राइंग पैन) जैसे प्रतिदिन उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में भी किया जाता है। लोग इससे निर्मित तवो पर रोटियां पकाना पसंद करते हैं वे मानते हैं की “इन तवे पर आप जो चपाती पकाते हैं वह बहुत नरम होती है” और जिसका स्वाद एकदम अलग होता है। समय के साथ विलुप्त हो रहे अन्य पारंपरिक हस्तशिल्पों के विपरीत, टेराकोटा को एक उज्जवल भविष्य व्यवसायों में गिना जा सकता है। यह प्राकर्तिक है। इस कला को सरकार द्वारा अच्छा संरक्षण प्राप्त है। बाजार में इसकी इतनी अधिक मांग है, कि कलाकारों को लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए और अधिक कारीगरों की आवश्यकता पड़ रही है। इस शिल्प की मांग आमतौर से मौसमी है, अधिकतर बिक्री फसल उत्सव के दौरान नए मिट्टी के बर्तनों और त्योहारों के दौरान की मूर्तियों की होती है। इस शिल्प को रचना और विषय-वस्तु की एक मजबूत समझ के साथ-साथ एक कुशल कौशल की आवश्यकता होती है।

संदर्भ
https://bit.ly/3weXSI2
https://bit.ly/3tTWklh
https://bit.ly/2SLncqL
https://bit.ly/3olT4ho
https://bit.ly/3weY0Y2

चित्र संदर्भ
1. सिनौली गांव में खुदाई के दौरान मिले अवशेषों तथा टेरीकोटा के शिल्प का एक चित्रण (WIkimedia,flickr)
2. सिनौली गांव में खुदाई के दौरान मिले कब्र का चित्रण (Quora)
3. बोहेमियन; बस्ट; मूर्तिकला-चीनी मिट्टी के बरतन का एक चित्रण (wikimedia)