लचीली भारतीय शिक्षा प्रणाली सुरक्षित कर सकती है हमारे शिक्षार्थियों का भविष्य इस महामारी में

दृष्टि II - अभिनय कला
26-08-2021 08:06 AM
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लचीली भारतीय शिक्षा प्रणाली सुरक्षित कर सकती है हमारे शिक्षार्थियों का भविष्य इस महामारी में

वर्तमान समय में कोरोना महामारी पूरे विश्व में फैली हुई है, तथा इसने विभिन्न क्षेत्रों पर अपने नकारात्मक प्रभाव दिखाए हैं।इन्हीं क्षेत्रों में से एक क्षेत्र शिक्षा का भी है, जो महामारी के प्रकोप का सामना कर रहा है।देश भर की राज्य सरकारों ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रभावी उपाय के तौर पर स्कूलों और कॉलेजों को अस्थायी रूप से बंद करना शुरू किया।भारत के साथ-साथ दुनिया के शिक्षा क्षेत्र भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।विश्वव्यापी तालाबंदी के कारण स्कूलों और कॉलेजों को बंद कर दिया गया जिसने छात्रों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डाला।इस दौरान भारत में लगभग 32 करोड़ शिक्षार्थियों का स्कूल या कॉलेज जाना बंद हो गया और उनकी सभी शैक्षणिक गतिविधियों को रोक दिया गया।
कोरोना महामारी के प्रकोप ने हमें सिखाया है कि परिवर्तन आवश्यक है। इसने शैक्षिक संस्थानों के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम किया है, कि वे प्रौद्योगिकियों के साथ नए प्लेटफार्मों का चयन करें,जिनका पहले कभी उपयोग नहीं किया गया था।शिक्षा क्षेत्र एक अलग दृष्टिकोण के साथ कोरोना संकट से बचने के लिए लड़ रहा है तथा शिक्षा जगत के सामने महामारी के कारण जो चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, उनका सामना करने के लिए शिक्षा का डिजिटलीकरण कर रहा है। अर्थात शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल माध्यम से शिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।
कोरोना महामारी का अधिक प्रभावी रूप उस समय देखने को मिला है, जो समय शिक्षा क्षेत्र के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए बोर्ड परीक्षाएं, नर्सरी स्कूल प्रवेश, विभिन्न विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाएं और प्रतियोगी परीक्षाएं,अन्य सभी इस अवधि के दौरान ही आयोजित की जाती हैं।शिक्षण और मूल्यांकन पद्धतियों सहित स्कूली शिक्षा और सीखने की संरचना, तालाबंदी से सबसे पहले प्रभावित हुई थी तथा गिने-चुने निजी स्कूल ही ऑनलाइन शिक्षण विधियों को अपना सके। जो शिक्षण संस्थान ऑनलाइन माध्यम से शिक्षण व्यवस्था सुनिश्चित कर पाने में अक्षम थे,वे पूरी तरह से बंद रहे। महामारी ने उच्च शिक्षा क्षेत्र को भी काफी हद तक बाधित किया है,जो देश के आर्थिक भविष्य का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है।बड़ी संख्या में भारतीय छात्र विदेशों के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं, लेकिन ऐसे में उन्हें इन देशों को छोड़ने से रोका गया।यदि महामारी के कारण स्थिति फिर से ऐसी बनती है, तो अंतरराष्ट्रीय उच्च शिक्षा की मांग में गिरावट आ सकती है।हालांकि, हर किसी के मन में सबसे बड़ी चिंता रोजगार दर पर बीमारी के प्रभाव को लेकर भी है। भारत में हाल के स्नातकों को मौजूदा स्थिति के कारण कॉरपोरेट्स से नौकरी के प्रस्ताव वापस लेने का डर है। भारत में कोरोना महामारी के कारण शिक्षा के सामने जो मुद्दे उत्पन्न हुए हैं,उनसे निपटने के लिए सरकार ने विभिन्न विधियां नियोजित की हैं।उदाहरण के लिए बच्चों की शिक्षा के लिए टेलीविजन और रेडियो के उपयोग को बढ़ावा दिया गया है। इसके अलावा ऑनलाइन पोर्टल का भी अत्यधिक उपयोग किया गया है।व्हाट्सएप,जूम,गूगल मीट,टेलीग्राम, यूट्यूब लाइव, फेसबुक लाइव आदि की मदद से शिक्षण कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इसके अलावा बच्चों पर पढ़ाई का अधिक जोर न पड़े, इसलिए पाठ्यचर्या में भी कटौती की गयी है। कोरोना महामारी के दौरान शैक्षणिक सत्र में जो परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं, उन्हें भी ऑनलाइन रूप दिया गया है।यह विधियां या रणनीतियां स्कूली शिक्षा प्रणाली को बदल सकती हैं और सीखने और सिखाने की प्रभावशीलता को बढ़ा सकती हैं, जिससे छात्रों और शिक्षकों को सीखने और सिखाने के लिए अनेकों विकल्प मिल जाते हैं।भारत में भले ही शिक्षा क्षेत्र को कोरोना महामारी के प्रभाव से बचाने के लिए अनेकों तरीकें अपनाए गए हैं, लेकिन जो एक मुख्य समस्या इसके साथ देखने को मिली है, वह इन सुविधाओं तक सभी बच्चों की पहुंच में असमानता से सम्बंधित है।ऑनलाइन शिक्षा और योजनाओं के प्रयास में ऐसे तीन प्रासंगिक मुद्दे हैं, जिन पर गंभीर विचार की आवश्यकता है।
पहला मुद्दा असमानता, दूसरा खराब शिक्षा से सम्बंधित शैक्षणिक मुद्दे, तथा तीसरा ऑनलाइन शिक्षा पर अनुचित जोर है। अक्सर यह देखा जाता है, कि जब कोई प्राकृतिक या मानव-निर्मित आपदा आती है, तो इसका सबसे बुरा असर सबसे कमजोर वर्ग के लोगों पर पड़ता है। यही दृश्य कोरोना महामारी के संदर्भ में भी देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए शिक्षण व्यवस्था को निरंतर संचालित करने के लिए जिस भी ऑनलाइन या डिजिटल शिक्षा का उपयोग किया जा रहा है, वह केवल उन बच्चों को ही प्राप्त हो पा रही है, जो आसानी से ऑनलाइन पहुँच प्राप्त कर सकते हैं। जिन बच्चों की पहुँच नहीं है, वे डिजिटल शिक्षण से वंचित हैं और उनकी शिक्षा गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। इसके अलावा ऑनलाइन शिक्षण की भी अपनी सीमाएं हैं। उदाहरण के लिए नेटवर्क सम्बंधित समस्याओं के कारण मोबाइल फोन पर व्याख्यान सुनने, बोर्ड पर जो लिखा गया है उसे कॉपी पर उतारने आदि में जो व्यवधान उत्पन्न होता है, वह बच्चे की वर्तमान समझ को अव्यवस्थित कर सकता है। संकट के प्रबंधन और लंबी अवधि में एक लचीली भारतीय शिक्षा प्रणाली के निर्माण के लिए एक बहु-आयामी रणनीति आवश्यक है।सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में सीखने की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल उपाय आवश्यक है, जिसके लिए ओपन-सोर्स डिजिटल लर्निंग सॉल्यूशंस (Open-source digital learning solutions) और लर्निंग मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर को अपनाया जाना चाहिए ताकि शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण का संचालन कर सकें।

संदर्भ:
https://bit.ly/3zd9RrJ
https://bit.ly/3j8OYZ8
https://bit.ly/3zd9Sfh

चित्र संदर्भ
1. स्कूली बच्चे 'ऑनलाइन क्लास' पसंद कर रहे हैं लेकिन क्लासरूम में पढ़ाई से चूक रहे हैं, जिसका का एक चित्रण (thestatesman)
2. कक्षा में ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करती बालिका का एक चित्रण (news18)
3. विद्यालय में जाकर ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करती छात्राओं का एक चित्रण (etimg)