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गणेश‚ जिन्हें गणपति और विनायक के नाम से भी जाना जाता है‚ हिन्दूओं में सबसे प्रसिद्ध
और सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। उनकी छवि पूरे भारत (India)‚ नेपाल
(Nepal)‚ श्रीलंका (Sri Lanka)‚ थाईलैंड (Thailand)‚ इंडोनेशिया (Indonesia)‚ मलेशिया
(Malaysia)‚ फिलीपींस (Philippines)‚ बांग्लादेश (Bangladesh)‚ फिजी (Fiji)‚ मॉरीशस
(Mauritius)‚ त्रिनिदाद (Trinidad) और टोबैगो (Tobago) सहित बड़ी जातीय भारतीय आबादी
वाले देशों में भी पाई जाती है। गणेश की व्यापक रूप से फैली हुई भक्ति में जैन और बौद्ध भी
शामिल हैं।
हाथी के सर से सुशोभित गणेश जी को कई व्यापक रूपों में पूजा जाता है‚ विशेष रूप से‚
बाधाओं को दूर करने और सौभाग्य लाने के लिए। किसी भी संस्कार या समारोह की शुरूआत में
सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। कई ग्रंथों में उनके जन्म तथा कार्यों से जुड़े पौराणिक
उपाख्यानों का वर्णन देखने को मिलता है।
हिंदू को हाल ही में धर्म के रूप में गढ़ा गया था लेकिन इसे प्राचीन काल से ही “सनातन धर्म”
के नाम से जाना जाता था। पुरातन काल में हिंदू विचारों की स्वीकृति आज भी विश्व धर्मों में
स्वीकार की जाती है। पृथ्वी पर होने वाली खुदाई से प्राप्त‚ भारतीय भगवान की मूर्तियों से पता
चलता है कि “सनातन धर्म” कुछ हज़ार साल पहले हर जगह फैला हुआ था।
भारत और हिंदू धर्म ने‚ वाणिज्यिक तथा सांस्कृतिक संपर्कों के माध्यम से दक्षिण एशिया
(South Asia)‚ पूर्वी एशिया (East Asia) और दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) के अन्य
हिस्सों में कई देशों को प्रभावित किया है। जिसके परिणामस्वरूप गणेश विदेशी भूमि पर पहुंचे।
नए युग के भारत से पहले‚ हिंदुओं द्वारा गणेश की पूजा से पता चलता है कि यह धर्म प्राचीन
है और दुनिया भर में इसका पालन किया जाता है। गणेश‚ विशेष रूप से व्यापारियों तथा बनियों
द्वारा पूजे जाने वाले देवता थे‚ जो अपने वाणिज्यिक उद्यमों की शुरुआत से पूर्व तथा यात्रा के
लिए भारत से बाहर जाने से पहले गणेश पूजन को शुभ मानते थे। दसवीं शताब्दी के बाद की
अवधि को‚ विनिमय के नए संघ के विकास‚ व्यापार संघों के गठन तथा धन परिसंचरण के
पुनरुत्थान द्वारा चिह्नित किया गया था‚ और इसी दौरान गणेश व्यापारियों के लिए प्रमुख
देवता के रूप में माने जाने लगे थे। व्यापारी समुदाय द्वारा ही सबसे पहला शिलालेख किया
गया था‚ जिसमें‚ अन्य देवताओं से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।
पहली शताब्दी ईसा पूर्व से‚ भारत-यूनानी (Indo-Greek) सिक्कों पर एक हाथी के सिर वाले
मानवरूपी आकृति को कुछ विद्वानों द्वारा “प्रारंभिक गणेश” के रूप में प्रस्तावित किया गया‚
जबकि आम युग में‚ मथुरा और भारत के बाहर पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आधार
पर अन्य विद्वानों ने सुझाव दिया कि गणेश दूसरी शताब्दी के आसपास भारत और दक्षिण-पूर्व
एशिया (Southeast Asia) में एक उभरते हुए देवता हो सकते हैं। गुप्त काल के दौरान‚ चौथी
और पांचवीं शताब्दी के सामान्य युग तक‚ गणेश अच्छी तरह से स्थापित हो गए थे और वैदिक
तथा पूर्व-वैदिक पूर्वजों से विरासत में मिले थे। हिंदू पौराणिक कथाओं में उन्हें देवी पार्वती के
पुनर्स्थापित पुत्र तथा शैववाद परंपरा के भगवान शिव के रूप में पहचाना जाता है‚ लेकिन वह
अपनी विभिन्न परंपराओं में पाए जाने वाले एक अखिल हिंदू देवता हैं।
हिंदू धर्म की गणपति परंपरा में‚ गणेश को सर्वोच्च देवता का स्थान दिया गया है। गणेश पर
आधारित ग्रंथों में‚ गणेश पुराण‚ मुदगला पुराण तथा गणपति अथर्वशीर्ष प्रमुख हैं। पौराणिक
शैली के अन्य दो पुराण‚ ब्रह्म पुराण तथा ब्रह्माण्ड पुराण विश्व कोश ग्रंथ हैं जो गणेश से
संबंधित हैं।
हम गणेश की उत्पत्ति हड़प्पा मुहरों पर पाए गए हाथी‚ या वेदों में गणपति जैसे शब्दों के लिए
करना चाहते हैं‚ लेकिन इन संदर्भों को साबित करने का कोई तरीका नहीं है कि आज हिन्दूओं
के लिए गणेश का क्या अर्थ है। इसी तरह‚ हम समकालीन जापानी बौद्ध मंदिरों (Japanese
Buddhist temples) में पाए जाने वाले‚ समृद्धि प्रदान करने वाला‚ हाथी सिर वाला‚ बिनायक-
दसतथा कांगी-दसकी उत्पत्ति का पता 8वीं शताब्दी के भारत के तांत्रिक गणेश से लगा सकते हैं।
लेकिन वे स्पष्ट रूप से आज भी एक अलग प्राच्य विचारधारा का प्रतीक हैं। धार्मिक कट्टरवाद
के समय में‚ हम इन्हें इतिहास और भूगोल पर हिंदू धर्म के प्रभाव के प्रमाण के रूप में देख
सकते हैं‚ जिसे पश्चिमी विद्वता द्वारा नकारा गया है। बौद्ध और जैनशिक्षा में भी गणेश और
वामन जैसे विकृत चर्बीयुक्त यक्ष‚ खजाने के रखवाले‚ के बीच दृश्य संबंध अचूक है।
यह गुप्त काल में एक विशिष्ट देवता के रूप में प्रकट होते हैं‚ जिसने पुराने वैदिक तरीकों के
पतन और नए पौराणिक तरीकों के उदय को देखा है। 1‚200 साल पहले‚ गणेश अपने स्वयं के
एक संप्रदाय के साथ एक प्रमुख देवता थे। इस समय के आसपास‚ तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली
में‚ पल्लव राजाओं के युग में‚ उनके लिए चट्टानों को काटकर एक मंदिर बनाया गया था। यहां
वे लोकप्रिय रूप से “पिल्लैयार” (Pillaiyar) के नाम से जाने जाते थे‚ जिसका अर्थ ‘आदरणीय
युवा हाथी’है। लगभग 500 साल पहले‚ गणपति संत‚ मोरया गोसावी ने महाराष्ट्र में गणेश की
पूजा को लोकप्रिय बनाया‚ जहां गणेश अंततः पेशवाओं के संरक्षक देवता बन गए।
गणेश को किसी एक विचार के संकेत-स्तंभ तक सीमित करना कठिन है। हाल ही में हुए एक
बाल साहित्य सम्मेलन में‚ एक माता-पिता ने बताया कि‚ कैसे उनके बेटे ने शिवद्वारा अपने ही
बेटे का सिर काटने की कहानी पर ध्यान दिया‚ जिसके अंत में हाथी के सिर वाले गणेश का
निर्माण हुआ। कुछ साल पहले‚ एक कठपुतली चलाने वाली ने बताया कि कैसे उसे एक
अंतरराष्ट्रीय उत्सव में यही कहानी सुनाने से रोका गया‚ क्योंकि आयोजकों को लगा कि कहानी
बहुत हिंसक है और इसमें नैतिकता की थोड़ी कमी है। इस मामले में समस्या पौराणिक कथाओं
को शाब्दिक रूप से पढ़ने की थी‚ जबकि‚ पौराणिक कथाएँ परियों की कहानियों का मात्र पर्याय
होती हैं। प्रतीकों से भरी पौराणिक कथाएं दुनिया के बारे में समुदाय की समझ को स्थापित
करती है। 21 वीं सदी में गणेश कई लोगों के लिए एक प्यारा और गले लगाने वाला प्रतीक हो
सकता है तथा एकेश्वरवादियों और नास्तिकों की नज़र में ‘मूर्तिपूजक’ पूजा की एक विदेशी वस्तु
हो सकती है। लेकिन इनकी प्रतिमा सदियों से विकसित होती आई है तथा एक पालिम्पेस्ट
(palimpsest) की तरह‚ सामूहिक ज्ञान की असंख्य परतों को अभिलेख करती है। गणेश की
व्याख्या करते समय इन सभी पर विचार करने की आवश्यकता है‚ क्योंकि मौखिक तथा
शाब्दिक परंपराओं की कहानियां सुसंगत नहीं होती हैं‚ जैसे गणेश को दक्षिण में अविवाहित के
रूप में जाना जाता है जबकि उत्तर में उन्हें दो पत्नियों के साथ जाना जाता है। इसके अलावा
गणेश को‚ विनायकीस्त्री के रूप में भी जाना जाता है जिसकी शायद कोई कहानी नहीं है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2YpeIbG
https://bit.ly/3zTw8Lk
https://bit.ly/3DUGvRt
https://bit.ly/3ySmt6q
चित्र संदर्भ
1. श्रीलंका में गणेश प्रतिमा का एक चित्रण (wikimedia)
2. उदयगिरि में गणेशगुम्फा (गुफा संख्या-10) का एक चित्रण (wikimedia)
3. गणेश, गुप्त काल (चौथी-छठी शताब्दी सीई), मथुरा की कला का एक चित्रण (wikimedia)
4. गणेश, होयसल-शैली, कर्नाटक की 13वीं शताब्दी की मूर्ति का एक चित्रण (wikimedia)