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प्राचीन काल से ही मनुष्य प्रतीकों के रूप में विभिन्न वस्तुओं का उपयोग करता रहा है, जिनमें
से शंख भी एक है। शंख, समुद्री मोलस्क (Mollusks) द्वारा बनाया गया उसका खोल या
आवरण होता है, जो वायु की सहायता से बजने वाला एक वाद्य यंत्र है। शंख की सुंदरता
अद्वितीय होती है, इसलिए अलंकरण या सजावटी वस्तु के रूप में इसका इस्तेमाल पहली
सामग्री के तौर पर किया गया है। इस समय प्राकृतिक मोती शंख सबसे कीमती खजाने बन गए
थे। 17वीं शताब्दी की शुरुआत में, डच ईस्ट इंडिया (Dutch East India) कंपनी के जहाज
इंडोनेशिया (Indonesia), फिलीपींस (Philippines), भारत और अन्य आसपास के देशों से
मसालों और अन्य सामानों के साथ शानदार सुंदर शंख अपने साथ ले गए। पूरे यूरोप (Europe)
में यूरोपीय संग्राहकों के शंख प्राप्त करने के जुनून को कुन्स्ट कमेरास (Kunst Kameras) के
निर्माण से स्पष्ट किया जा सकता है, जहां अन्य विदेशी वस्तुओं के साथ शंख को शाही घरों
और निजी संग्रहालयों में मौजूद अमीरों की सम्पदा के रूप में प्रदर्शित किया गया था।
शंख के इतिहास की बात करें तो माना जाता है,कि यह 500 मिलियन से अधिक वर्ष पहले
विकसित हुए थे और हमारे समय की शुरुआत से ही मनुष्यों को चकित करते रहे हैं।हिंदू धर्म में
यह विश्वास है, कि शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है।संस्कृत में शंख का अर्थ है,एक ऐसा
आवरण जिसने पवित्र जल को धारण किया हुआ है। शंख के प्रारंभिक लिखित दस्तावेज वेदों
और अन्य पवित्र हिंदू ग्रंथों जैसे भगवद गीता से भी प्राप्त होते हैं। हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों
में शंख महत्वपूर्ण स्थान रखता है, चूंकि यह प्राचीन काल से एक धार्मिक वस्तु के रूप में
महत्वपूर्ण रहा है। हिंदू धर्म में शंख भगवान विष्णु का एक पवित्र प्रतीक है। पानी के प्रतीक के
रूप में, यह मादा उर्वरता और नागों से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में, शंख की ध्वनि पवित्र शब्दांश
'ओम' से जुड़ी होती है, जिसे सृष्टि की पहली ध्वनि माना जाता है। चूंकि भगवान विष्णु शंख
धारण करते हैं, इसलिए उन्हें ध्वनि के देवता के रूप में दर्शाया जाता है। ब्रह्म वैवर्त पुराण में
यह बताया गया है, कि शंख लक्ष्मी और विष्णु दोनों का निवास स्थल है। शंख के माध्यम से
जल से स्नान करना एक बार में सभी पवित्र जल से स्नान करने के समान माना जाता है। यह
पवित्रता, प्रतिभा और शुभता का प्रतीक है। यह किसी भी अच्छे काम की शुरुआत का
प्रतिनिधित्व करता है। शंख की ध्वनि को ध्वनि का शुद्धतम रूप माना जाता है जो ताजगी
और नई आशा का संचार करती है। शंख शब्द का शाब्दिक अर्थ है, अशुभ और अशुद्ध को शांत
करना या शुद्ध करना। इसलिए हिंदू धर्म में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत में और
यहां तक कि घर में किसी भी देवता की मूर्ति के आने पर भी शंख बजाया जाता है।
हिन्दू धर्म में शंख को धन के देवता कुबेर से भी जोड़ा जाता है। दाहिने हाथ के शंख को कई
लोग घर में रखते हैं क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि यह धन और समृद्धि लाता है। चूंकि शंख
पवित्रता का प्रतीक है, इसलिए हर हिंदू घर में एक शंख को बहुत सावधानी के साथ रखा जाता
है। इसे साफ लाल कपड़े या चांदी या मिट्टी के बर्तन पर रखा जाता है। लोग आमतौर पर शंख
में पानी रखते हैं जो पूजा अनुष्ठान करते समय छिड़का जाता है। यह माना जाता है कि शंख
ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपने भीतर धारण करता है, जो इसे बजाने पर उत्सर्जित होती है।
यदि हम पौराणिक कथाओं पर विश्वास नहीं करते तो भी शंख के प्रभाव से हम प्रभावित हो
सकते हैं, चूंकि जब शंख को कान के पास लाया जाता है, तो इसमें से समुद्र की लहरों की
गुनगुनाती आवाज सुनाई देती है। शंख भगवान विष्णु के पांच प्रमुख हथियारों में से एक है।
भगवान विष्णु के शंख को 'पंचजन्य' के रूप में जाना जाता है, जिसे शंखों में सबसे शक्तिशाली
माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसमें पांच तत्व अर्थात जल, अग्नि, पृथ्वी, आकाश और
वायु का समावेश है। जब शंख बजाया जाता है तो उससे निकलने वाली ध्वनि सृष्टि का प्रतीक
होती है।
शंख का महत्व बौद्ध और जैन धर्म में भी देखने को मिलता है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में
शंख को 8 शुभ प्रतीकों (जिन्हें अष्टमंगला के रूप में जाना जाता है) में से एक माना जाता है।
यह बुद्ध की मधुर आवाज का प्रतिनिधित्व करता है। तिब्बत में आज भी, इसका उपयोग
धार्मिक समारोहों के लिए, संगीत वाद्ययंत्र के रूप में और अनुष्ठानों के दौरान पवित्र जल रखने
के लिए एक पात्र के रूप में किया जाता है। यह धर्म की ध्वनि, बुद्ध की शिक्षाओं का
प्रतिनिधित्व करता है। धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए
अक्सर शंखों का इस्तेमाल तुरही के रूप में किया जाता था। साथ ही इसका उपयोग योद्धाओं
द्वारा युद्धों की घोषणा करने के लिए भी किया जाता था।माना जाता है कि जब शंख बजाया
जाता है,तो इसके ब्रह्मांडीय स्पंदन रोगों को ठीक कर सकते हैं। अभी भी यह मान्यता है,कि
शंख बजाने से पर्यावरण के सभी बुरे प्रभावों को नष्ट कर उसे शुद्ध किया जा सकता है। शंख
बजाने से सकारात्मक मनोवैज्ञानिक स्पंदन जैसे साहस, आशावाद और इच्छाशक्ति में वृद्धि
होती है।
शंख का जिक्र भगवत गीता में भी किया गया है। भगवद गीता में, पांडवों और कौरवों के
विभिन्न शंखों के नाम का उल्लेख है। इसमें भगवान कृष्ण के शंख को पंचजन्य जबकि भीम के
शंख को पौंड्रम बताया गया है। इसी प्रकार से युधिष्ठिर के शंख को अनंतविजय तथा नकुल और
सहदेव के शंख को क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक बताया गया है। आयुर्वेद में भी शंख को एक
विशेष स्थान दिया गया है।
पेट की समस्याओं के आयुर्वेदिक उपचार के रूप में शंख का पाउडर के रूप में लोकप्रिय रूप से
उपयोग किया जाता है। शंख भस्म को पेट के लिए बहुत अच्छा माना जाता है, क्यों कि इसमें
लोहा, कैल्शियम (Calcium) और मैग्नीशियम (Magnesium) होता है जिससे पाचन समस्याएं
दूर होती हैं।यूं तो शंख विभिन्न प्रकार के होते हैं, लेकिन कुंडली की दिशा के आधार पर मुख्य
रूप से दो प्रकार के शंखों का जिक्र अक्सर किया जाता है। एक वामावर्ती शंख जिसे बाएं हाथ से
बजाया जाता है, तथा दूसरा दक्षिणावर्ती शंख। हिंदू धर्म में दक्षिणावर्ती शंख का एक विशेष
महत्व है। यह हिंद महासागर में पाए जाने वाले एक बड़े समुद्री घोंघे, जिसे टर्बिनेला पाइरम
(Turbinellapyrum) कहा जाता है, का खोल है, जिसे लक्ष्मी शंख भी कहा जाता है। माना जाता
है कि लक्ष्मी शंख को रखने वाले व्यक्ति को सभी तरह का आशीर्वाद प्राप्त होता है, यह विशेष
रूप से भौतिक धन लाता है। उच्च सकारात्मक ऊर्जा देने वाले वास्तु उद्देश्य के लिए यह एक
अद्भुत वस्तु है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2XAdQkD
https://bit.ly/3js69EH
https://bit.ly/3jrsu5r
https://bit.ly/2XxVrVq
चित्र संदर्भ
1.नक्कासी किये हुए शंख का एक चित्रण (wikimedia)
2. पूजा के दौरान शंख बजाते हिंदू पुजारी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मंदिर, भक्तपुर नेपाल में दायीं ओर का शंख दत्तात्रेय विष्णु का प्रतीक है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4.शंख बजाते हुए साधू का एक चित्रण (wikimedia)