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भारत के पास आज भी कई ऐसी परंपराएँ और पैमाने हैं, जो बाकी की दुनिया से एकदम अलग हैं। उदाहरण
के तौर पर दुनियां के बाकी हिस्सों के विपरीत आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में ग्रेगोरियन कैलेंडर
(Gregorian calendar) के बजाय शक कैलेंडर अथवा शक संवत का प्रयोग किया जाता है। आज भी देश
के अधिकांश बुजुर्ग वर्ग जनवरी, फरवरी कहने के बजाय चैत, बैसाख से अपना महीना शुरू करना पसंद
करते हैं।
शक संवत जिसे शालिवाहन शक के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय आधिकारिक कैलेंडर है। संवत
एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग भारतीय कैलेंडर के माध्यम से वर्णित एक युग को संदर्भित करने के लिए
किया जाता है। भारत मे यह भारत का राजपत्र, आकाशवाणी द्वारा प्रसारित समाचार और भारत सरकार
द्वारा जारी संचार विज्ञप्तियों मे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ प्रयोग किया जाता है। शक कैलेंडर भारत का
राष्ट्रीय कैलेंडर भी है, जिसका प्रयोग मूल रूप से ऐतिहासिक इंडोनेशियाई हिंदुओं के बीच जावा और बाली
में भी किया जाता है। बाली में शक नव वर्ष को न्येपी, "मौन का दिन" के उत्सव के तौर पर भी मनाया जाता
है। पडोसी देश नेपाल का नेपाल संबत भी शक कैलेंडर से विकसित हुआ है। लगुना कॉपरप्लेट शिलालेख
से पता चलता है की शक कैलेंडर का उपयोग फिलीपींस के कई क्षेत्रों में भी किया गया था।
शक कैलेंडर के महीने आमतौर पर हिंदू और बौद्ध कैलेंडर के साथ उपयोग किए जाने वाले नाक्षत्र राशि के
बजाय उष्णकटिबंधीय राशि चक्र के संकेतों का पालन करते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रथम माह चैत्र
होता है। शक संवत अथवा राष्ट्रिय कैलेंडर की तिथियाँ ग्रेगोरियन कैलेंडर की तिथियों से स्थायी रूप से
मिलती-जुलती हैं। माह में दिनों की संख्या चन्द्रमा की कला (घटने व बढ़ने) के अनुसार निर्धारित होती है |
वर्ष के पहले महीने चैत्र मे 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है। कांतिवृत्त में सूरज की
धीमी गति के कारण वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते है। महीनों के नाम पुराने, हिन्दू
चन्द्र-सौर पंचांग से लिए गये हैं।
वर्ष 1957 में कैलेंडर सुधार समिति द्वारा शक पंचांग कैलेंडर को भारतीय पंचांग और समुद्री पंचांग के भाग
के रूप मे प्रस्तुत किया गया। इसमें अन्य खगोलीय आँकड़ों के साथ काल और सूत्र भी थे जिनके आधार पर
हिन्दू धार्मिक पंचांग तैयार किया जा सकता था। राष्ट्र में इसका आधिकारिक उपयोग 1 चैत्र, 1879 शक्
युग, या 22 मार्च 1957 से शुरू किया गया था।
शालिवाहन शक या शक संवत नामक हिंदू कैलेंडर, की शुरुआत वर्ष 78 के वसंत विषुव के आसपास हुई थी।
इसकी शुरुआती घटना के तौर पर एक प्रचलित कथा के अनुसार "राजा शालीवाहन सातवाहन राजवंश के
सबसे प्रतापी वा महान राजा थे, उनके शासन काल में यह राजवंश अपनी प्रगति की चरम सीमा पर था।
मत्स्य पुराण के अनुसार राजा शालीवाहन की मां गौतमी थी राजा शालीवाहन का जन्म आदिशेशान की
कृपा से हुआ था। राजा शालीवाहन का बचपन चुनौतीपूर्ण था किंतु राजा शालीवाहन को ईश्वर की घोर
तपस्या के फलस्वरूप अनेकों वरदान प्राप्त हुए, जिससे राजा सलीवाहन ने राजपाठ और युद्ध के क्षेत्र में
महारथ हासिल कर ली। परिणाम स्वरुप सातवाहन राजाओं ने 300 वर्षों तक शासन किया सातवाहन वंश
की स्थापना 60 ईसा पूर्व राजा सिमुक ने की थी। अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण सातवाहन
राजवंश के द्वारा ही किया गया था। सातवाहन राजाओं ने कैलेंडर के साथ-साथ चांदी,तांबे,सीसे,पोटीन और
कांसे के सिक्कों का प्रचलन किया। वर्तमान में सातवाहन राजवंश की शाखाएं वराडिया
(महाराष्ट्र,आंध्र),वर्दीय या वरदिया(उत्तर प्रदेश,मध्य देश,राजिस्थान) सवांसोलकीया (मध्य प्रदेश) आदि
प्रमुख हैं।
शक युग की उत्पत्ति अत्यधिक विवादास्पद है। विद्वानों के उपयोग में दो शाका युग प्रणालियाँ हैं, एक को
पुराना शक युग कहा जाता है, दूसरे को 78 सीई का शक युग, या केवल शक युग कहा जाता है। यह प्रणाली
जो दक्षिणी भारत से पुरालेख साक्ष्य में आम है। एक समानांतर उत्तर भारत प्रणाली विक्रमा युग है, जिसका
उपयोग विक्रमादित्य से जुड़े विक्रमी कैलेंडर द्वारा किया जाता है।
शक संवत और विक्रम संवत में विभिन्न समताएं और भिन्नताएं देखी जा सकती हैं। उदाहरणतः शक
संवत और विक्रम संवत भारत में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले दो कैलेंडर हैं।
शक संवत को भारत द्वारा एक आधिकारिक नागरिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया है।
शक संवत 78 ईस्वी से शुरू होता है, जबकि विक्रम संवत 57 ईसा पूर्व से शुरू होता है।
शक संवत और विक्रम संवत चंद्र मास और सौर वर्ष पर आधारित हैं। हालांकि, पारंपरिक शाका संवत सौर
नाक्षत्र वर्षों का अनुसरण करता है, और आधुनिक शक संवत सौर उष्णकटिबंधीय वर्षों का अनुसरण करता
है।
दोनों चैत्र कैलेंडर वर्षों पर आधारित हैं जिनका नाम सौर महीनों के नाम पर रखा गया।
शक संवत 78 ईस्वी में शालिवाहन राजा की ताजपोशी के उत्सव पर आधारित है। इसका शून्य वर्ष 78
ईस्वी सन् के वसंत विषुव के निकट शुरू होता है। इस प्रकार शक वर्ष में 78 जोड़ने पर हमें ईसाई वर्ष प्राप्त
होता है। जैसे शक 1752 + 89 = ई. 1841 इस कैलेंडर में वर्ष 1 चैत्र से शुरू होता है, जिसका अर्थ सामान्य
ग्रेगोरियन कैलेंडर वर्षों में 22 मार्च और एक लीप ग्रेगोरियन वर्ष में 21 मार्च को होता है।
यह इंडोनेशिया में हिंदू धर्म के साथ जावा और बाली में भी प्रयोग किया जाता है।
विक्रम संवत अक्सर उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के साथ जुड़ा हुआ है और ऐसा माना जाता है कि यह
कैलेंडर 56 ईसा पूर्व में शक पर उनकी जीत का अनुसरण करता है। इस कैलेंडर में नया साल कार्तिक के
पहले दिन से शुरू होता है जो भारतीय त्योहार दीवाली के बाद आता है। विक्रम संवत तिथि के अनुरूप
ग्रेगोरियन तिथि प्राप्त करने के लिए विक्रम संवत तिथि से 57 वर्ष घटाना होगा। उदाहरण के लिए: 2067
VS = (2089 - 57) AD = 2032AD। इसका आधिकारिक तौर पर नेपाल में पालन किया जाता है और
भारत के पश्चिम और उत्तर पश्चिम भाग में भी इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3mvpJ4v
https://bit.ly/3Jg8KNu
https://bit.ly/3yUFXsV
https://en.wikipedia.org/wiki/Shaka_era
चित्र संदर्भ
1. गोरखा (बाद में नेपाल के) राजा पृथ्वी नारायण शाह के मोहर ने शक युग 1685 (ई. 1763) को दिनांकित किया जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. हिंदू चिर कैलेंडर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. सातवाहन वंश विस्तार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)