भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों का उपयुक्त मिश्रण है, मुगल पेंटिग्स

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
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भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों का उपयुक्त मिश्रण है, मुगल पेंटिग्स

मुगल पेंटिग्स ने भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों के सही मिश्रण के कारण हमेशा कला प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।मुगल पेंटिंग्स की उत्पत्ति हुमायूं के शासन के दौरान हुई, खासकर तब,जब वह दो फारसी कलाकारों मीर-सैय्यद अली और अब्द-उस- समद को भारत लाए।धीरे-धीरे उनकी शैली प्रभावित हुई और उन्होंने चित्रकला की मुगल शैली को जन्म दिया जो कई संस्कृतियों का संगम थी। चित्रों के विषय ज्यादातर शिकार, वन्य जीवन, तसवीर और शाही दृश्यों जैसे दरबार आदि हुआ करते थे। अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ जैसे कई अन्य सम्राटों ने मुगल पेंटिंग्स को अपने चरम पर विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बादशाह अकबर के समय में दो फारसी कलाकारों के निर्देशन में सैकड़ों कलाकारों को पेंटिंग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। चूँकि अकबर को पौराणिक कथाओं का बहुत शौक था, इसलिए उन्होंने महाभारत, रामायण और कई फारसी महाकाव्यों की पेंटिंग्स को प्रोत्साहित किया।हालाँकि, जहाँगीर के शासन के दौरान, जहाँगीर के जीवन से सम्बंधित,चित्रों, फूलों, पक्षियों और घटनाओं की पेंटिग बनाई जाने लगी।इसका सबसे अच्छा उदाहरण सम्राट जहांगीर की जीवनी जहांगीर-नामा से प्राप्त होता है।शाहजहाँ और बाद में औरंगज़ेब के शासन के दौरान, चित्रों ने अधिक कठोर और निरूत्साही रूप धारण किया। अब पेंटिंग्स के विषय मुख्य रूप से बगीचे, बरामदे आदि थे। धीरे-धीरेबाद के सम्राटों की मुगल चित्रों में रुचि कम होने लगी और मुगल पेंटिंग को लेकर उनके सहयोग में कमी आने लगी। जब तक सम्राट शाह आलम द्वितीय सत्ता में आया, मुगल पेंटिंग लगभग विलुप्त हो चुकी थीं, जिससे कला के एक नए स्कूल “राजपूत पेंटिंग” का मार्ग प्रशस्त हुआ।मुगल पेंटिंग हिंदू, बौद्ध और जैन प्रभावों के साथ लघु चित्रकला के फारसी स्कूल से विकसित हुई है। उस समय यह कला रूप इतना लोकप्रिय हो गया था कि अंततः इसका उपयोग कई अन्य भारतीय दरबारों में भी किया जाने लगा। लंदन (London) में विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय (Victoria and Albert Museum) में मुगल पेंटिंग्स का एक बड़ा और प्रभावशाली संग्रह मौजूद है।मुग़ल बादशाह हुमायूँ द्वारा दो प्रख्यात फ़ारसी कलाकारों मीर सैय्यद अली और अब्द अल-समद को साथ लाने के बाद हुमायूँ के निर्देशों के आधार पर, इन फ़ारसी कलाकारों ने 'निज़ामी के खामसा' (Khamsa of Nizami)सहित कई प्रसिद्ध चित्रों का निर्माण किया। ये पेंटिग्स फ़ारसी कला की पारंपरिक शैली से भिन्न थी,और इसलिए 'मुगल पेंटिंग' नामक कला की एक नई शैली का जन्म हुआ।
विभिन्न सम्राटों के अधीन मुगल चित्रकला के विकास को देंखे तो खुद को दिलचस्प और शाही रूप में चित्रित कराने के विचार के कारण मुगल पेंटिंग जल्द ही शासकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुई।मुगल पेंटिंग्स शासकों की बहादुरी और उपलब्धियों को प्रदर्शित करने का एक महान कलात्मक माध्यम थी। हुमायूँ की मृत्यु के बाद, उनके बेटे अकबर ने अपने पिता के पुस्तकालय को संभाला और उसका विस्तार किया। उन्होंने कला में भी विशेष रुचि दिखाई और उनके शासनकाल का समय मुगल चित्रकला के विकास के लिए बहुत समृद्ध समय रहा।अकबर ने कई पेंटिंग बनाने का आदेश दिया और इन सभी कलाकृतियों के अंतिम आउटपुट पर भी पूरा ध्यान दिया गया। वह पेंटिंग्स के विवरण और इसमें शामिल कलात्मक तत्वों पर विशेष ध्यान देते थे।उनके दरबार में प्रभावशाली संख्या में चित्रकार मौजूद थे। 1560 और 1577 के बीच, उन्होंने कई बड़े पैमाने पर पेंटिंग परियोजनाओं को शुरू किया।अकबर द्वारा शुरू की गई सबसे शुरुआती पेंटिंग परियोजनाओं में से एक 'तूतिनामा' थी जिसका शाब्दिक अर्थ 'टेल्स ऑफ ए पैरट'(Tales of a Parrot)है।तूतिनामा एक प्रासंगिक फारसी कहानी है,जिसे 52 भागों में विभाजित किया गया है।अकबर ने 250 लघु चित्रों को बनाने का आदेश दिया,जिसमें कलात्मक तरीके से 'तूतिनामा' का वर्णन किया गया था। परियोजना को पूरा करने की जिम्मेदारी दो ईरानी कलाकारों,अब्दुस समद और मीर सैय्यद अली को दी गई थी और उन्हें 'तूतिनामा' को पूरा करने में लगभग पांच साल लगे थे।अकबर द्वारा शुरू की गई दूसरी बड़ी परियोजना 'हमज़ानामा' थी, जिसमें अमीर हमज़ा की कथा सुनाई गई थी।इस परियोजना में 1400 मुगल चित्र शामिल थे। इसके लिए 30 प्रमुख कलाकारों का उपयोग किया गया था और उनकी देखरेख पहले मीर सैय्यद अली द्वारा तथा बाद में अब्दुस समद द्वारा की गयी थी।अकबर द्वारा बनवाई गई अन्य प्रसिद्ध पेंटिंग्स में 'गुलिस्तान', 'दरब नामा', 'बहारिस्तान' आदि शामिल हैं।
बादशाह अकबर के बाद जहाँगीर ने मुगल पेंटिंग्स के विकास में विशेष भूमिका निभाई।वे काफी हद तक यूरोपीय चित्रकला से प्रभावित थे।उन्होंने यूरोपीय चित्रों का भी उपयोग किया था,जिसमें राजाओं और रानियों की छवियों को संदर्भ के रूप में चित्रित किया गया था।जहांगीर द्वारा बनवाए गए अधिकांश मुगल चित्रों में महीन ब्रश स्ट्रोक और हल्के रंगों का उपयोग किया गया था। उनके द्वारा शुरू की गई प्रमुख परियोजनाओं में से एक 'जहाँगीरनामा' थी। यह उनकी आत्मकथा थी, जिसमें कई पेंटिंग शामिल थीं। इन पेंटिग्स के विषय काफी असामान्य थे,जैसे कि मकड़ियों की लड़ाई। इसके अलावा उन्होंने अपने कई व्यक्तिगत चित्र भी बनवाए। यूं तो शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान भी मुगल चित्रकला का विस्तार जारी रहा, लेकिन दरबार में प्रदर्शित की जाने वाली पेंटिंग्स की प्रकृति कठोर और औपचारिक होती चली गई। उन्होंने बड़ी संख्या में पेंटिंग्स बनाने का आदेश दिया,जो उनका व्यक्तिगत संग्रह था। ये पेंटिंग उन बगीचों और चित्रों से भी सम्बंधित थी, जो बहुत ही सौंदर्य आनंद प्रदान करते थे।उनके शासनकाल के दौरान उत्पादित सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक 'पद्शनमा' था।इसे भव्य दिखाने के लिए इसमें सोने की प्लेटिंग की गयी थी। इसमें राजा की उपलब्धियों का वर्णन था।शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान, मुगल चित्रकला के सौंदर्यशास्त्र को बरकरार रखा गया जिसने मुगल चित्रों के विकास में योगदान दिया। शाहजहाँ के नेतृत्व में निर्मित कई पेंटिंग अब दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों में रखी गई हैं।औरंगजेब के शासन काल के दौरान उनके द्वारा चित्रकला सहित किसी भी प्रकार की कला का समर्थन या प्रोत्साहन नहीं किया गया,लेकिन इस समय तक मुगल चित्रकला आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुकी थी तथा इसके कई संरक्षक भी मौजूद थे। हालांकि, कुछ बेहतरीन मुगल पेंटिंग्स औरंगजेब के शासनकाल में भी बनाई गई।इन पेंटिंग्स को बनाने का आदेश भले ही औरंगजेब द्वारा नहीं दिया गया था, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि अनुभवी चित्रकारों ने उन कार्यशालाओं में स्वयं कुछ पेंटिंग बनाईं जिनका रखरखाव पहले मुगल सम्राटों द्वारा किया जाता था। प्रत्येक पेंटिंग प्रोजेक्ट में कई कलाकार शामिल होते थे और प्रत्येक की एक विशिष्ट भूमिका थी। उनमें से कुछ पेंटिंग की रचना पर काम करते, कुछ वास्तविक पेंटिंग का ध्यान रखते तथा कुछ कलाकार कला के सूक्ष्म विवरणों पर ध्यान केंद्रित करते।
प्रारंभ में, मीर सैय्यद अली और अब्द अल-समद जैसे फारसी चित्रकारों ने भारत में मुगल चित्रों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन बाद में, 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान, दसवंत, बसावन, मिस्किन और लाल जैसे चित्रकारों ने मुगल दरबार में काम किया और इस कला को जीवित रखा।“जयपुर रज़्म- नामे”के कार्यों को कलाकार दसवंत द्वारा डिजाइन किया गया था,लेकिन इसे उनके सहयोगियों द्वारा चित्रित किया गया था। क्लीवलैंड म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (Cleveland Museum of Art) की पांडुलिपि तूतीनामा की एक लघु प्रति ही उनकी एकमात्र पेंटिंग है,जिस पर उन्होंने अकेले काम किया था। एक अन्य मुगल पेंटर दौलत द्वारा अकबर-नामे और बाबर-नामे में शानदार चित्रों का निष्पादन किया गया था।अकबर के शासनकाल के दौरान, केसु दास नाम के एक कलाकार ने मुगल चित्रों में यूरोपीय तकनीकों को लागू करना शुरू कर दिया था। मुगल काल के अन्य प्रमुख कलाकार कमाल, मुशफीक,फजल आदि थे। मुगल साम्राज्य का पतन शुरू होने पर भवानीदास और दलचंद सहित कई अन्य कलाकारों ने राजपूत दरबारों में भी काम करना शुरू कर किया।

संदर्भ:

https://bit.ly/3f7R6xD
https://bit.ly/3te250L
https://bit.ly/3ePoAjR
https://bit.ly/3JI98UV
https://bit.ly/3JHVqBB
https://bit.ly/3zv0d4z
https://bit.ly/3t2S85Y

चित्र संदर्भ   
1. इस्लामी चित्रकारी को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. युद्ध के दृश्य को दर्शाती एक चित्रण (prarang)
3. मुगल चित्रों में महीन ब्रश स्ट्रोक और हल्के रंगों का उपयोग किया गया था। जिसको संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)
4. रजा पुस्तकालय में स्थित पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (prarang)