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भारत ने सामूहिक विनाश के लिए परमाणु और रासायनिक हथियारों के रूप में
काफी विनाशकारी हथियार विकसित किए हैं। हालांकि भारत ने अपने परमाणु
शस्त्रागार के आकार के विषय में कोई भी आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है‚
लेकिन फिर भी भारत को वर्तमान में बहुत ज्यादा मात्रा में परमाणु हथियार रखने
के लिए जाना जाता है। हाल के अनुमानों से पता चलता है कि भारत के पास
160 परमाणु हथियारों का संकलन है और उसने 200 परमाणु हथियारों के लिए
पर्याप्त हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम (weapons-Grade Plutonium) का उत्पादन
किया है। 1999 में भारत के पास 8‚300 किलोग्राम सिविलियन प्लूटोनियम
(civilian plutonium) के साथ साथ अलग से 800 किलोग्राम रिएक्टर-ग्रेड
प्लूटोनियम (reactor-Grade Plutonium) भी पाया गया था‚ जो लगभग 1‚000
परमाणु हथियारों के निर्माण के लिए पर्याप्त था।
भारत के पास पहले रासायनिक हथियार थे‚ लेकिन 2009 में भारत ने स्वेच्छा से
अपने पूरे रासायनिक भंडार को नष्ट कर दिया। भारत ने अपना परमाणु कार्यक्रम
मार्च 1944 में शुरू किया था। होमी जहांगीर भाभा (Homi Jahangir Baba) ने
परमाणु अनुसंधान केंद्र “टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च” (Tata Institute
of Fundamental Research) की स्थापना के साथ साथ प्रौद्योगिकी में इसके
तीन चरण के प्रयासों की स्थापना भी की थी।
भारत के भूमि-आधारित परमाणु हथियारों के अनुमानित 68 परमाणु हथियार
सामरिक बल कमान के नियंत्रण में हैं और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत कार्यवाही
के लिए तैनात हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार के वाहनों और लॉन्चिंग मिसाइलों को
सम्मिलित किया गया है। वे वर्तमान में छह अलग-अलग प्रकार की बैलिस्टिक
मिसाइलों (Ballistic Missile) से युक्त हैं‚ अग्नि-I‚ अग्नि-II‚ अग्नि-III‚ अग्नि-IV‚
अग्नि-V‚ अग्नि-पी और सेना के पृथ्वी मिसाइल परिवार के संस्करण पृथ्वी-I‚
हालाँकि पृथ्वी मिसाइलें परमाणु हथियार पहुंचाने के लिए कम उपयोगी हैं‚ क्योंकि
उनकी सीमा बहुत कम है। अग्नि मिसाइल श्रृंखला के अतिरिक्त रूपों को हाल ही
में शामिल किया गया है‚ जिसमें सबसे नई‚ अग्नि- IV और अग्नि-V शामिल हैं‚
जिन्हें वर्तमान में तैनात किया जा रहा है। अग्नि-VI भी विकसित होने की प्रतीक्षा
में है‚ जिसकी अनुमानित सीमा 8‚000-12‚000 किमी है और इसमें मल्टीपल
इंडिपेंडेंट टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल्स (Multiple independently targetable
reentry vehicle (MIRVs)) या मैन्युवेरेबल रीएंट्री व्हीकल (Maneuverable
reentry vehicle (MARVs)) जैसी विशेषताएं हैं। 18 दिसंबर 2021 को‚ भारत ने
अब्दुल कलाम द्वीप पर अपनी एकीकृत परीक्षण रेंज से अपनी नई अग्नि-पी
मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (Ballistic Missile) का परीक्षण किया। यह
इस मिसाइल का दूसरा परीक्षण था‚ पहला परीक्षण जून 2021 में किया गया था।
अग्नि-पी के दोनों प्रक्षेपणों के बाद‚ भारत सरकार ने इस मिसाइल को “नई पीढ़ी
परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल” के रूप में संदर्भित किया।
2016 में जब रक्षा
अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development
Organisation (DRDO)) ने पहली बार अग्नि-पी मिसाइल के विकास की घोषणा
की‚ तो डीआरडीओ (DRDO) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस मिसाइल की कुछ
विशेषताओं के बारे में बताया कि अग्नि-पी भारत की पहली छोटी दूरी की मिसाइल
है‚ जिसमें अब नई अग्नि-IV और V बैलिस्टिक मिसाइलों में पाई जाने वाली
तकनीकों को भी शामिल किया गया है‚ जिसमें अधिक उन्नत रॉकेट मोटर्स
(Rocket motors)‚ प्रणोदक (Propellants)‚ एवियोनिक्स (Avionics) और
नेविगेशन सिस्टम (Navigation systems) भी शामिल किए गए हैं।
नो फर्स्ट यूज (No-First Use‚ (NFU)) एक ऐसी प्रतिज्ञा या नीति है‚ जिसमें
एक परमाणु शक्ति द्वारा युद्ध के हथियार के रूप में परमाणु विष्फोटकों का
उपयोग तब तक नही किया जा सकता जब तक कि पहले परमाणु हथियारों का
उपयोग करने वाले किसी विरोधी द्वारा हमला नहीं किया जाता। भारत इस
अवधारणा को अपने एनएफयू (NFU) नीति के संदर्भ में रासायनिक और जैविक
युद्ध पर भी लागू करता है। कई देशों ने इस नीति को स्वीकार किया लेकिन कई
देशों ने इसे अस्वीकार भी किया। उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) (North
Atlantic Treaty Organization (NATO)) ने बार-बार नो फर्स्ट यूज (NFU)
नीति अपनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार किया है। चीन ने पहली बार 1964 में
परमाणु क्षमता हासिल की और साथ ही यह घोषणा भी कर दी कि वो किसी भी
समय या किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियारों का उपयोग तब तक नही
करेगा जब तक विरोधी द्वारा इनका उपयोग न किया जाए।
इस घोषणा से चीन
नो फर्स्ट यूज (NFU) नीति को स्वीकार कर प्रतिज्ञा करने वाला पहला देश बन
गया था। शीत युद्ध के समय‚ चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका (United States)
और सोवियत संघ (Soviet Union) के साथ अंतरराष्ट्रीय हथियारों के युद्ध में
प्रतिस्पर्धा करने के बजाय अपने परमाणु शस्त्रागार का उपयोग न करने का फैसला
किया और चीन ने भी संयुक्त राज्य अमेरिका को लगातार नो फर्स्ट यूज (NFU)
नीति अपनाने का प्रस्ताव दिया। 1998 में भारत ने अपना परमाणु परीक्षण पूर्ण
किया तथा पोखरण-द्वितीय के बाद भारत ने भी “नो फर्स्ट यूज” नीति को
स्वीकार कर लिया। अगस्त 1999 में‚ भारत सरकार ने इस नीति के पक्ष में एक
दस्तावेज़ जारी किया‚ जिसमें कहा गया है कि परमाणु हथियार पूरी तरह से
निवारण के लिए हैं और भारत “केवल प्रतिशोध” की नीति का पालन करेगा। इस
दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि भारत “परमाणु हमले की पहली शुरुआत
करने वाला पहला देश नहीं होगा‚ लेकिन अगर निवारण विफल हो जाता है‚ तो
भारत दंडात्मक जवाबी कार्रवाई के साथ जवाब देगा‚” और परमाणु हथियारों के
उपयोग को अधिकृत करने के निर्णय प्रधान मंत्री या उनके द्वारा “नामित
उत्तराधिकारियों” द्वारा लिए जाएंगे।
2001-2002 में भारत और पाकिस्तान के बीच
तनाव बढ़ने के बावजूद‚ भारत अपनी परमाणु-पहले उपयोग न करने की नीति के
लिए प्रतिबद्ध रहा। इस नीति के विपक्ष में पाकिस्तान‚ रूस‚ यूनाइटेड किंगडम‚
संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस का कहना है कि वे परमाणु या गैर-परमाणु
राज्यों के खिलाफ परमाणु हथियारों का उपयोग केवल तब ही करेंगे जब उनके
अपने क्षेत्र पर या अपने किसी सहयोगी के खिलाफ किसी भी प्रकार का आक्रमण
होगा। अप्रैल 1999 में 16वें नाटो (NATO) शिखर सम्मेलन में‚ जर्मनी ने नाटो
के लिए प्रस्ताव रखा कि नाटो नो फर्स्ट यूज (NFU) की नीति को स्वीकार करे‚
लेकिन नाटो ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
संदर्भ:-
https://bit.ly/3toGy4P
https://bit.ly/3IsrAiK
https://bit.ly/3inXrX6
चित्र सन्दर्भ
1. काल्पनिक भारतीय परमाणु बम को दर्शाता एक चित्रण (Free SVG)
2. डॉ. होमी जे. भाभा, भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष, बॉम्बे, भारत में आयोजित मृदा-पौधे पोषण अध्ययन में रेडियोआइसोटोप के उपयोग पर संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए। 26 फरवरी - 2 मार्च 1962। को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. अग्नि-II‚ मिसाइल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. डीआरडीओ ब्रह्मोस मिसाइल को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. उत्तरी अटलांटिक परिषद की बैठक दिसम्बर 1957 (flickr)