गायों के बजाय बकरियां क्यों पाल रहे हैं, भारतीय

स्तनधारी
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गायों के बजाय बकरियां क्यों पाल रहे हैं, भारतीय

विश्व पटल पर भारत को कपास, केला, आम, पपीता और दुग्ध आदि, गैर तकनीकी क्षेत्रों में सबसे अग्रणी राष्ट्र माना जाता है। इन सभी के साथ ही “भारत में (चीन के बाद) दूसरी सबसे बड़ी वैश्विक बकरी आबादी भी है। इस आकर्षक वैश्विक बकरी बाजार में अपनी भूमिका और मुनाफे को बढ़ाने की भारी क्षमता भी है। भारत में बकरी पालन की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यह है की, देश में चेवन अर्थात बकरी का मांस सबसे पसंदीदा और व्यापक रूप से खाया जाने वाला मांस है। बकरी का दूध प्राचीन काल से ही पारंपरिक रूप में अपने भरपूर औषधीय गुणों और आसानी से पाचन हो जाने के लिए जाना जाता रहा है। साथ ही यह कई अन्य प्रकार के स्वास्थ लाभ भी प्रदान करता है।
बकरी पालन देश के लाखों छोटे और सीमांत किसानों को रोजगार सृजन, पोषण सुरक्षा और समृद्धि के लिए भविष्य की उम्मीद के रूप में उभरा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बकरियां लगभग 10 सहस्राब्दी पहले नवपाषाण क्रांति के दौरान से गरीब लोगों की सबसे विश्वसनीय आजीविका संसाधन रही हैं। ग्रामीण भारत के लाखों गरीब किसानों और भूमिहीन मजदूरों को पूरक आय और आजीविका प्रदान करने में बकरीमहत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, देश में बकरी उत्पादन ने व्यावसायिक रूप से गति पकड़ी है। कई छोटे-झुंड डेयरी बकरी उद्यमों में,दूध के बजाय उनका मांस अक्सर मुख्य उत्पाद के रूप में होता है। मांस के साथ, डेयरी बकरियों के छोटे झुंडों से प्रजनन स्टॉक की बिक्री (sale of breeding stock) एक महत्वपूर्ण आय स्रोत हो सकती है।
वैश्विक परिदृश्य में भारत बकरी आबादी में शीर्ष पर है। मांस, दूध और फाइबर की मांग उत्तरोत्तर बढ़ रही है, तथा लोगों की प्रति व्यक्ति आय और स्वास्थ्य जागरूकता में उल्लेखनीय वृद्धि को देखते हुए भविष्य में इसके और बढ़ने की उम्मीद है।
दुनिया भर के उपभोक्ता स्वच्छ, पर्यावरण अनुकूल और नैतिक उत्पादों को प्राथमिकता दे रहे हैं। बकरी के दूध के औषधीय गुणों ने इसे चिकित्सीय स्वास्थ्य भोजन न्यूट्रास्युटिकल (food nutraceutical) के रूप में उपयोग करने के लिए अनुकूल बना दिया हैं। छोटे आकार के वसा ग्लोब्यूल्स (fat globules) के कारण बकरी का दूध आसानी से पच जाता है, और परिवार के पोषण के लिए तैयार स्रोत के रूप में कार्य करता है। पोषण और स्वास्थ्य में भूमिका के साथ ही बकरियों को पालने के विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक और जैविक लाभ भी हैं। उन्हें एक सीमित क्षेत्र में रखा जा सकता है, तथा वह विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों पर भी जीवित रह सकती हैं। हमारे देश में, विविध कामकाजी और पेशेवर पृष्ठभूमि वाले पुरुषों और महिलाओं द्वारा भी बकरियों को पाला जाता है। बकरी का मांस (chevon) भारत सहित कई देशों में उपभोक्ताओं द्वारा सबसे पसंदीदा मांस प्रकारों में से एक है। भारत में, बकरी के मांस की मांग और उत्पादन दोनों में पिछले दशक के दौरान लगातार वृद्धि हुई है, और बढ़ती उत्पादन प्रवृत्ति के बावजूद, देश को आने वाले समय में बढ़ती मानव आबादी के कारण, बकरी के मांस की अनुमानित आवश्यकता को पूरा करने के लिए बकरियों की संख्या को दोगुना करने की आवश्यकता होगी।
लेकिन भारत में बकरी उद्योग को अभी भी वैज्ञानिक आधार पर मजबूती से स्थापित किया जाना बाकी है। बकरी पालक पारिस्थितिकी और उनकी परिस्थितियों के आधार पर सभी प्रकार की परिस्थितियों में बकरियों का पालन-पोषण कर रहे हैं। न्यूनतम बकरी इकाई में एक बकरी हो सकती है, और अधिकतम सीमा प्रबंधन के तहत कुछ सौ तक जा सकती है। वहीँ किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर बकरी फार्म शुरू नहीं करने के लिए शायद, उनकी अकस्मात् मृत्यु दर का डर काफी हद तक जिम्मेदार रहा है। हालांकि, राहुरी और लेह में भी बकरी फार्म पिछले 30 वर्षों से बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
विपणन (बकरी मांस और दूध प्रसंस्करण क्षेत्र) मांस उत्पादन और स्थानीय खपत के लिए मांस की आपूर्ति देश में सबसे उपेक्षित क्षेत्र है। मांस खुले परिसर में बेचा जाता है, जिससे गंदगी, धूल, मक्खियों और अन्य प्रदूषकों से संदूषण होता है। पारंपरिक उत्पादन प्रणालियों और अस्वच्छ प्रथाओं ने भारतीय मांस उद्योग की छवि को खराब और त्रुटिपूर्ण बना दिया है। वैज्ञानिक और आधुनिक तर्ज पर भारतीय मांस उद्योग को पशुधन उत्पादकों, प्रसंस्करणकर्ताओं, अंतत: उपभोक्ताओं को लाभान्वित करने की आवश्यकता है। भारत में अधिकांश मांस उत्पादन और विपणन प्रथाएं पारंपरिक हैं। भारत में मांस और मांस उत्पादों के लिए अच्छी तरह से एकीकृत विपणन प्रणाली का अभाव है। इसके मुख्य कारण मांस व्यापारियों का एकाधिकार, उत्पादन और मांग के बीच समन्वय का अभाव, व्यापार में बहुत अधिक बिचौलिए और बूचड़खाने में अक्षमता प्रबंधन हैं।
आज मांस उत्पादन और विपणन प्रणाली को आधुनिक बनाने की सख्त जरूरत है। बकरियां बहुउद्देशीय जानवर होती हैं जो दूध, मांस, फाइबर, त्वचा एक साथ पैदा कर सकते हैं। गाय और अन्य पशुपालन की तुलना में बकरी पालन के लिए कम जगह और अतिरिक्त सुविधाओं की आवश्यकता होती है। साथ ही बकरियों के बुनियादी ढांचा, भोजन और उपचार जैसी उत्पादन लागत भी कम होती है। 20 वीं पशुधन गणना के अनुसार, भेड़ और बकरियों की आबादी में वृद्धि के कारण भारतीय पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। 1919 से हर पांच साल में एक बार पशुधन की गणना समय-समय पर की जाती रही है। लेकिन 20 वीं जनगणना छह साल बाद हुई। 2018 में शुरू हुई 20 वीं पशुधन गणना के निष्कर्ष 17 अक्टूबर, 2019 को जारी किए गए थे।
निष्कर्षों के अनुसार भारतीय पशुधन की कुल संख्या में वृद्धि हुई है। 2007 में पशुधन संख्या 528.69 मिलियन थी। 2012 में यह घटकर 512 मिलियन हो गई, जो 2018 में बढ़कर 535.78 मिलियन हो गई। लेकिन यह वृद्धि भेड़ और बकरियों जैसे छोटे जुगाली करने वालों की संख्या में तेज वृद्धि को दर्शाती है, जिनकी कुल संख्या लगभग 95 प्रतिशत है। भारत में 2007 में 71.5 मिलियन भेड़ें थीं, जो 2012 में घटकर 65 मिलियन और 2018 में बढ़कर 74.2 मिलियन हो गईं। 2007 में बकरियों की संख्या 140.5 मिलियन थी, जो 2012 में घटकर 135.1 मिलियन और 2018 में बढ़कर 148.8 मिलियन हो गई।
देशी नस्लों के सुधार के लिए गोकुल मिशन जैसी सरकारी योजनाओं के शुरू होने के बावजूद देशी भारतीय मवेशियों की नस्लों में लगातार कमी आई है। 2007 में देशी भारतीय मवेशियों की नस्लों की संख्या 166 मिलियन थी, जो 2012 में घटकर 151.1 मिलियन हो गई, जो 2018 में और कम होकर 142.1 मिलियन रह गई। हालांकि, भारतीय किसानों के एक बड़े वर्ग के पास गाय नहीं है क्योंकि वे बहुत महंगी हैं। लेकिन इन लोगों के पास बकरियां जरूर है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशकों से भारतीयों के पास गायों की तुलना में बकरियों की संख्या में वृद्धि हो रही हैं। बड़े मवेशियों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह आती है की इन्हे पालना उतना लाभदायक नहीं है। क्यों की दूध देना बंद करने के बाद पशु को उसके वध के लिए नहीं बेचा जा सकता।
इसलिए, देश भर में पशु-वध कानूनों के उत्तरोत्तर कड़े होने के साथ, कई पशु मालिक कथित तौर पर अपनी पुरानी गायों को छोड़ रहे हैं। साथ ही भारत में गुणवत्तापूर्ण मांस और दूध उत्पादों की मांग बढ़ रही है इसलिए, बकरियों पर ध्यान केंद्रित करने का यह एक अच्छा समय हो सकता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3IMukHF
https://bit.ly/3JNRtLl
https://bit.ly/36ABAcM

चित्र संदर्भ
1. काली बकरी को दर्शाता एक चित्रण (Piqsels)
2. बकरी चरवाहे को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
3. बकरी दूध के पैकेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पहाड़ी बकरी पालक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मीट विक्रेताओं को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)