प्रारंग पर्यावरण श्रृंखला 1:जलवायु परिवर्तन के कारण चिंताजनक रूप से प्रतिवर्ष वनों में बढ़ती आग

जलवायु और मौसम
22-08-2022 12:03 PM
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प्रारंग पर्यावरण श्रृंखला 1:जलवायु परिवर्तन के कारण चिंताजनक रूप से प्रतिवर्ष वनों में बढ़ती आग

वन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। सैकड़ों जीव जंतुओं का आवास, प्राकृतिक वनस्पतियों के विशाल संग्रह ये वन पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में भी वन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जहां एक ओर हरे-भरे वन जीवों के लिए आवश्यक ऑक्सीजन गैस का उत्सर्जन करते हैं वहीं दूसरी ओर वर्षा को भी आकर्षित करते हैं। पेड़ों की जड़ों में एकत्रित होने वाला जल मीठे जल की श्रेणी में आता है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि मानव गतिविधियां पेड़ पौधों सहित सभी प्राकृतिक स्रोतों को नुकसान पहुंचा रही हैं। जिस कारण लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के दुष्परिणाम जंगलों में बढ़ते आग के संकट को बढ़ा रहे हैं। हर साल गर्म और शुष्क मौसम में कई बड़े-बड़े जंगल आग की चपेट में आ जाते हैं। जंगलों के नष्ट होने से भूमि की उर्वरा क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा जंगलों की आग की चपेट में सैकड़ों जीव जंतु आकर मर जाते हैं। जो हमारे पर्यावरण के लिए एक बहुत बड़ा संकट है।  कई बार जंगलों में आग लोगों द्वारा स्वयं लगाई जाती है और कभी-कभी प्राकृतिक कारणों से भी यह आग उत्पन्न होती है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2000 से 2019 के बीच जंगल की आग की घटनाएं 10 गुना तक बढ़ी है। जहां एक ओर वर्ष 2000 में जंगलों मे लगने वाली आग की संख्या 3,082 थी वह वर्ष 2019 में यह संख्या बढ़कर 30,947 हो गई है।
अध्ययन में यह दावा किया गया है कि भारत के 36% वन क्षेत्र आग की चपेट में आ गए हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, जंगल की आग के कारण, भारत को सालाना 1,176 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है।
 वनों में लगने वाली आग भारत में वन छरण का सबसे बड़ा कारण है। इस वर्ष जम्मू कश्मीर में वैष्णो देवी की त्रिकुटा पहाड़ियों में भीषण आग की स्थिति पैदा हुई। त्रिकुटा और शिवालिक की पहाड़ियों में हर वर्ष आग लगने की खबर सामने आती रहती है। कई लोगों का मानना है कि यह आग वनों के प्रति सामाजिक उदासीनता का परिणाम है। फिर भी सरकार फॉरेस्ट फायर प्रिवेंशन एंड मैनेजमेंट फंड (Forest Fire Prevention and Management Fund) के तहत साल में केवल 45-50 करोड़ रुपये ही आवंटित करती है। वन विभाग के पास उपलब्ध सीमित संसाधन और इस क्षेत्र में वित्त की कमी वनों के बचाव कार्यों में रुकावट पैदा कर रही है।
ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 2019-20 को जंगल में लगने वाली आग के कारण ब्लैक समर (Black Summer) के नाम से संबोधित किया जाता है। समान स्थिति भविष्य में 31% से 57% तक बढ़ने की संभावना है। भारत की बात करें तो मार्च 2022 के अंत तक राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व, ओडिशा के सिमिलीपाल वन्यजीव अभयारण्य, मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के लडकुई जंगलों और सतना जिले के मझगवां के वन क्षेत्रों और तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के कोडाईकनाल पहाड़ियों के पास पेरिमलमलाई चोटी में भीषण आग की स्थिति पैदा हुई है। ग्रीनहाउस गैसों के लगातार उत्सर्जन से यह स्थिति भविष्य में भी बनी रह सकती है।
एसओएफआर 2021 के अनुसार:
#1 भारत में लगभग 20,074 वर्ग किमी वन क्षेत्र (लगभग 2.8 प्रतिशत) अत्यधिक आग प्रवण है
#2 अन्य 56,049 वर्ग किमी (7.85 प्रतिशत) अत्यधिक आग प्रवण है
#3 लगभग 82,900 वर्ग किमी (11.61 प्रतिशत) अत्यधिक आग प्रवण है
#4 अंत में, 94,126 वर्ग किमी सामान्य रूप से आग-प्रवण है
इस प्रकार, भारत में वन क्षेत्र का लगभग 22 प्रतिशत क्षेत्र अत्यधिक आग-प्रवण श्रेणी के अंतर्गत आता है। विशेषज्ञों के अनुसार जंगल में आग लगने के लिए दो तत्व उत्तरदाई होते हैं। ईंधन और प्रजलन। उदाहरण के लिए चीड़ की सूखी घास और नुकीली लकड़ी लंबे समय तक आग की लपटों को उत्पन्न करती है। अतः देवदार के जंगलों में आग लगने का खतरा सदैव बना रहता है। इसी तरह यदि जंगल की सतह पर सूखे पत्ते, लकड़ी, टहनियां और घास या पुराने और मृतक वृक्ष इत्यादि दूर-दूर तक फैले हों और आग के लिए कोई सीमा रेखा ना हो तो आग की लपटें जंगल में दूर-दूर तक फैलेगी और लंबे समय तक फैलती रहेगी। पहाड़ी क्षेत्रों में वन वहां के सौंदर्य का केंद्र बिंदु माने जाते हैं। लेकिन कई हफ्तों तक फैली आग इन जंगलों को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर देती है। जंगल की आग के कारण इन स्थानों का जनजीवन भी प्रभावित होता है। पालतू पशुओं के लिए आहार भी इन जंगलों की आग की चपेट में आ जाता है। लंबे समय से वर्षा के अभाव में पेड़-पौधे सूखकर आसानी से आग की चपेट में आ जाते हैं। जंगलों में बढ़ती आग हमारे लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है।
भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने जंगल की आग को चक्रवात, सुनामी, लू, भूस्खलन, बाढ़ और भूकंप जैसे प्राकृतिक खतरों के रूप में मान्यता नहीं दी है। 2019 में भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा किए गए एक विश्लेषण से पता चला है कि देश के लगभग 36% जंगल आग की चपेट में आ रहे हैं और उनमें से लगभग एक-तिहाई अत्यधिक संवेदनशील स्थिति में हैं। हमारे देश में अग्निशमन सेवाओं में भी बहुत सारी खामियां हैं जिनके चलते हर साल कई वन आग की चपेट में आ जाते हैं। अब सरकार द्वारा इस क्षेत्र में विकास के लिए उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों में से एक बजट आवंटन में वृद्धि है। इस वर्ष और 2026 के बीच अग्निशमन सेवाओं के लिए राज्यों को 50 अरब रुपये (670 मिलियन डॉलर) दे रही है जो कि आमतौर पर पहले दी जाने वाली राशि से पांच गुना अधिक है। सरकार का मानना है कि इससे जंगलों में लगने वाली आग को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने में सहायता मिलेगी।

संदर्भ:
https://bit.ly/3A0NgjD
https://bit.ly/3dCiczp
https://bbc.in/3Au0Iy8

चित्र संदर्भ
1. जंगल में लगी भयानक आग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. बांदीपुर जंगल की आग 2019 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जंगल में आग के विस्तार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)