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मरूस्थल को सामान्य तौर पर एक बंजर भूमि माना जाता है, किंतु खाली बंजर भूमि होने के
बाद भी अधिकांश रेगिस्तान, पौधों और जानवरों की एक विशाल श्रृंखला को आवास प्रदान
करते हैं। इन पौधों और जानवरों ने खुद को यहां की कठोर स्थितियों के अनुसार ढाल लिया
है। पृथ्वी की जैव विविधता को समृद्ध करने के अलावा, रेगिस्तान कई पौधों, जानवरों और
मनुष्यों को लाभान्वित भी करते हैं। रेगिस्तान भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में, सौराष्ट्र से
लेकर उत्तर में पंजाब के मैदानों तक फैले हुए हैं। पूर्व में, कांटेदार जंगल और झाड़ियाँ
बुंदेलखंड पठार को कवर करते हुए उत्तरी मध्य प्रदेश (मुख्य रूप से मालवा पठार) और
दक्षिण-पश्चिम उत्तर प्रदेश की ओर फैली हुई हैं।
भले ही यहां पानी की कमी होती है, लेकिन फिर भी पर्यावरण के संतुलन के लिए इनका
अस्तित्व आवश्यक है। एशिया (Asia) और उत्तरी अफ्रीका (Africa) के रेगिस्तानों में पालतू ऊंट
हजारों वर्षों से ऐसे विश्वसनीय जानवर बने हुए हैं, जिन पर सामान लाया और ले जाया जा
सकता है। उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में रेगिस्तानी पौधे जैसे खजूर एक महत्वपूर्ण खाद्य
स्रोत है,तथा यह दुनिया के सबसे पुराने खेती वाले खाद्य पदार्थों में से एक है। रेगिस्तान की
शुष्क स्थिति महत्वपूर्ण खनिजों जैसे जिप्सम (Gypsum), बोरेट्स (Borates), नाइट्रेट्स (Nitrates),
पोटेशियम (Potassium) और अन्य लवण आदि के निर्माण को बढ़ावा देने में मदद करती है।
न्यूनतम वनस्पति के कारण रेगिस्तानी क्षेत्रों से महत्वपूर्ण खनिजों को निकालना और भी
आसान है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, विश्व का 50 प्रतिशत से अधिक तांबा
मेक्सिको (Mexico), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और चिली (Chile) के रेगिस्तानों से आता है। अन्य
खनिज और धातु जैसे बॉक्साइट (Bauxite), सोना और हीरे चीन (China), संयुक्त राज्य
अमेरिका (United States) और नामीबिया (Namibia) के रेगिस्तान में बड़ी मात्रा में पाए जा
सकते हैं। दुनिया के ज्ञात तेल भंडार का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीय क्षेत्रों में है।
यहां उगने वाले पौधों ने कठोर रेगिस्तानी जलवायु में जीवित रहने के लिए कुछ विशेष गुणों
को अपनाया है। उन्होंने कुछ ऐसे रसायनों का स्रावण किया है, जिनका उपयोग चिकित्सीय
अनुप्रयोगों में किया जा सकता है।मानव कलाकृतियों और अवशेषों के संरक्षण के लिए भी
यहां की शुष्क परिस्थितियाँ आदर्श हैं।
पेरू (Peru), चीन और मिस्र (Egypt) जैसे देशों में पाए
गए ममीकृत मानव अवशेषों ने वर्तमान पुरातत्वविदों को प्राचीन सभ्यताओं के बारे में
जानकारी प्रदान की है।रेगिस्तानी रेत पृथ्वी पर एक महत्वपूर्ण कार्बन सिंक (Carbon sink) भी
है।वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि अफ्रीका में कालाहारी (Kalahari) रेगिस्तान की रेत में रहने
वाले बैक्टीरिया हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को इकट्ठा करने और उसे संग्रहित करने में
मदद करते हैं। चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में से एक है,
इसलिए ये रेगिस्तानी रेत अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में प्रवेश करने से
रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
भारत में थार का मरूस्थल भी हमारे पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है,
तथा वनस्पतियों के एक विशेष समूह को आश्रय दे रहा है। यहां की शुष्क जलवायु में
प्राकृतिक वनस्पति विरल है और इसमें बारहमासी और अल्पकालिक पौधे शामिल हैं।
बारहमासी वे पौधे हैं,जिन्होंने सहस्राब्दियों से यहां की शुष्क स्थिति को झेलने के लिए खुद
को उसके अनुकूल बना लिया है। इनमें से अधिकांश छोटी, कांटेदार झाड़ियाँ और स्थायी जड़ी-
बूटियाँ हैं जो एक स्पष्ट अंतराल पर खुले गुच्छों या पुंज के रूप में होती हैं। यहां के खुले
घास के मैदान विशिष्ट रेगिस्तानी झाड़ियों से युक्त हैं।
इन्होंने खुद में जिन विशेषताओं को
विकसित किया है, उन्हें जिरोमोर्फिक (Xeromorphic) विशेषता कहा जाता है, तथा इनमें गहरी
जड़ें, कठोर और मांसल तने, अच्छी तरह से विकसित कांटे या बालों का आवरण शामिल है।
इसके अलावा अत्यधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए या तो पत्तियां अनुपस्थित होती हैं,या
एक प्रकार के मोम के साथ लेपित होती हैं। यहां पाई जाने वाली महत्वपूर्ण वनस्पतियों
मेंक्रोटेलारिया बुर्हिया (Crotalaria burhia),एर्वा (Aerva) की प्रजातियां,सिम्पोपोगन मार्टिनी
(Cympopogan martini),लेप्टाडेनिया पायरोटेक्निका (Leptadenia pyrotechnica),लसियुरस
सिंडिकस (Lasiurus sindicus),कैपारिस डेसीडुआ (Capparis decidua),कैलोट्रोपिस प्रोसेरा
(Calotropis procera),कैलिगोनम पॉलीगोनोइड्स (Calligonum polygonoides), एकेसिया सेनेगल
(Acacia senegal),लसियुरस सिंडिकस (Lasiurus sindicus),एरिस्टिडा एडीस्कैन्स (Aristida
adescensions),प्रोसोपिस सिनेरिया (Prosopis cineraria),सल्वाडोरा ओलियोइड्स(Salvadora
oleoides),मायटेनस इमर्जिनाटा (Maytenus emarginata),कैपारिस डिकिडुआ (Capparis
decidua),टेकोमेला अंडुलाटा (Tecomella undulata),ज़िज़ीफस (Zizyphus) की प्रजातियाँ आदि
शामिल हैं।
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में अनेकों बदलाव देखने को मिले रहे
हैं।इसके परिणामस्वरूप कुछ मौसमी घटनाएं रेगिस्तान को फूलों की जीवंत घाटी में बदल
सकती हैं।
उदाहरण के लिए चिली में अटाकामा (Atacama) रेगिस्तान, जिसे पृथ्वी पर सबसे
शुष्क स्थान के रूप में जाना जाता है, भारी वर्षा के बाद फूलों की एक विस्तृत घाटी में बदल
जाता है।इस मौसमीय घटना को 'डेसिएर्तो फ्लोरिडो' (Desierto florido)कहा जाता है, जो 'फूलों
वाले रेगिस्तान' को संदर्भित करता है। यह घटना सितंबर और नवंबर के महीनों के बीच हर
पांच से सात साल में एक बार होती है। मरुस्थल के तल पर निष्क्रिय पड़े बीज वर्षा के बाद
पुनर्जीवित हो जाते हैं और अंकुरित हो जाते हैं। अटाकामा रेगिस्तान में यह घटना होने के
बाद करीब 200 से अधिक प्रकार की जंगली पौधों की प्रजातियां उग आती हैं।
ग्लोबल वार्मिंग,बढ़ते तापमान और मौसम परिवर्तन के कारण यह परिदृश्य भारत के थार
रेगिस्तान में भी देखने को मिल सकता है।भारत में हवा का तापमान सन् 2000 से लेकर
2020 तक असामान्य रूप से गर्म रहा है, जिससे यह अवधि पिछले 130 वर्षों में सबसे गर्म
अवधि बन गई है।इस जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून शिफ्ट हो रहा है तथा गुजरात
और राजस्थान में बाढ़ और अत्यधिक वर्षा की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं।इसका प्रभाव थार
की वनस्पतियों पर भी पड़ सकता है तथा थार एक हरे-भरे क्षेत्र में विकसित हो सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3QN4s2y
https://bit.ly/3eSG3eC
https://bit.ly/3xrfjbw
https://bit.ly/3xrKMdO
चित्र संदर्भ
1. रेगिस्तान में जीवन को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. जैसलमेर के थार रेगिस्तान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. हरा-भरा रेगिस्तान थार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. थार रेगिस्तान के फूल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)