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विश्व में सनातन को, धर्म से भी ऊपर स्थान दिया जाता है। अर्थात यह केवल एक धर्म या
सम्प्रदाय ही नहीं है, अपितु जीवन जीने की एक पद्धति (तरीका) है। हालांकि विद्वान लोग इस
तरीके को हिंदू धार्मिक ग्रंथों से सीख लेते हैं, लेकिन आम जनता को इस पद्धति को सिखाने का
सबसे रचनात्मक मार्ग जो हमारे पूर्वजों ने खोजा वह "नाट्य शास्त्र प्रदर्शन" जैसे की "रामलीला" है।
रामलीला, शाब्दिक रूप से राम की लीला या नाटक, प्राचीन हिंदू महाकाव्य रामायण पर आधारित
माध्यमिक साहित्य जैसे रामचरितमानस के अनुसार राम के जीवन का कोई भी नाटकीय लोक
मंचन होती है। यह विशेष रूप से हिंदू भगवान राम से संबंधित नाटकीय नाटकों और नृत्य
कार्यक्रमों को संदर्भित करती है, जो विशेषतौर पर भारत में नवरात्रि के वार्षिक शरद ऋतु उत्सव के
दौरान आयोजित किए जाते हैं।
रामलीला उत्सव को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 2008 में
"मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" में से एक के रूप में घोषित किया गया था। रामलीला
ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हिंदू शहरों अयोध्या, वाराणसी, वृंदावन, अल्मोड़ा, सतना और
मधुबनी - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार तथा मध्य प्रदेश के शहरों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
रामायण महाकाव्य और इसका नाटकीय नाटक पहली सहस्राब्दी सीई में दक्षिण पूर्व एशिया में भी
फ़ैल गया था। साथ ही रामायण आधारित रामलीला इंडोनेशिया की प्रदर्शन कला संस्कृति, विशेष
रूप से बाली, म्यांमार, कंबोडिया और थाईलैंड के हिंदू समाज का एक अभिन्न हिस्सा है।
19वीं और 20वीं शताब्दी में, भारतीय प्रवासी, भारतीय उपनिवेशों के गिरमिटिया सेवकों के रूप में
यूरोपीय उपनिवेशों में चले गए। शुरुआत में उन्ही के द्वारा प्रारम्भ किया गया, रामलीला का
सांस्कृतिक उत्सव अब दुनिया के कई हिस्सों जैसे मॉरीशस, अफ्रीका, फिजी, गुयाना, मलेशिया,
सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद और टोबैगो में भी किया जाता है। साथ ही यह संयुक्त राज्य
अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी कुछ स्थानों पर
रामलीला का आयोजन किया जाता है।
रामायण महाकाव्य पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व का है, और भारतीय साहित्य की सबसे पुरानी
इतिहास शैलियों में से एक है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि रामलीला का सबसे पहला प्रदर्शन कब
हुआ था। लेकिन 16वीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस का पहला अधिनियमन
अनिर्दिष्ट है। लेकिन परंपरा के अनुसार, उनकी शिष्या मेघा भगत ने 1625 में रामचरितमानस पर
आधारित रामलीला की शुरुआत की।
इंडोलॉजी में विशेषज्ञता वाले देवत्व और धार्मिक अध्ययन के प्रोफेसर नॉर्विन हेन (Professor
Norwin Hein) के अनुसार, रामलीला कम से कम 1200 और 1500 ईस्वी के बीच उत्तर भारत में,
1625 से पहले प्रचलन में थी, लेकिन तब ये वाल्मीकि की रामायण पर आधारित थीं। रिचर्ड शेचनर
(Richard Schechner) के अनुसार, समकालीन रामलीला की जड़ें काफी गहरी हैं, क्योंकि इसमें
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों की शिक्षा और आधुनिक रंगमंच तकनीक दोनों शामिल हैं। एलोरा की 8वीं
शताब्दी की गुफा 16 में, रामायण रचना कलाकृति उस समय तक भारतीय समाज के लिए इसके
महत्व का सुझाव देती है।
अच्छाई और बुराई के बीच पौराणिक युद्ध होने के बाद, रामलीला समारोह दशहरा (विजयदशमी)
रात के उत्सव में चरमोत्कर्ष पर होता है, जहां आतिशबाजी के साथ बुराई के प्रतीक राक्षस रावण के
विशाल एवं विचित्र पुतले जलाए जाते हैं। दशहरा (विजयादशमी व आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक
प्रमुख त्योहार है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है।
मान्यता के अनुसार भगवान राम ने इसी दिन दानव राज रावण का वध किया था, साथ ही इसी
दिन देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय भी प्राप्त की थी।
इस दिवस को बुराई पर अच्छाई या असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। यही
कारण है की इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग शस्त्र-पूजा
करते हैं और नया कार्य, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि प्रारम्भ करते हैं।
माना जाता है कि
इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है। इस दिन के विशेष अवसर पर
देश में विभिन्न स्थानों पर पर मेले लगते हैं, तथा रामलीला का आयोजन भी किया जाता है। इस
अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा का
पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के
परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। अलग-अलग लोगों के लिए इस त्योहार के खास मायने
होते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में, यह उनके 9 दिनों के उपवास के अंत के रूप में मनाया जाता है,
जबकि कुछ हिस्सों में इस अवसर पर बड़े उत्सव आयोजित होते हैं। भारत के राज्य दशहरा को
भगवान राम द्वारा रावण की हार के रूप में मनाते हैं, और कुछ इसे देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर
नामक राक्षस के विनाश के रूप में मनाते हैं। प्रत्येक भारतीय राज्य त्योहार को अपने तरीके से
मनाता है लेकिन त्योहार में अनुग्रह और जातीयता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, चाहे वह
कहीं भी मनाया जा रहा हो।
1. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा या दशहरा त्यौहार पूरे राज्य को एक गतिशील गतिविधि के केंद्र में
बदल देता है। इस दौरान विभिन्न थीम आधारित पंडाल बनाए जाते हैं जहां 5 दिनों तक गणेश,
लक्ष्मी और सरस्वती सहित अन्य देवताओं के साथ देवी दुर्गा की अद्भुत मूर्तियों की पूजा की जाती
है। मां दुर्गा की आराधना की ऐसी उत्सुकता और उत्साह भारत में कहीं नहीं देखने को मिलती है।
2. गुजरात जैसे रंगीन राज्य में, दशहरे को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस राज्य में गरबा
इस त्योहार का प्रमुख घटक होता है, जो गुजरात का बहुत प्रसिद्ध लोक नृत्य है। गरबा इस त्योहार
का मुख्य आकर्षण होता है जो लोगों को करीब लाता है। देवी दुर्गा की पूजा के बाद रात भर गरबा
खेला जाता है। गरबा खेलने के लिए, पुरुष और महिलाएं पारंपरिक पोशाक (महिलाओं के लिए
लहंगा चोली और पुरुषों के लिए केडिया) पहनते हैं।
3.हिमाचल के कुल्लू शहर में दशहरे का विशेष महत्व है, क्योंकि यहाँ इसे बहुत उत्साह के साथ
मनाया जाता है। यह त्योहार यहां एक अनोखे तरीके से मनाया जाता है और 7 दिनों तक चलता है।
कुल्लू के लोग ढालपुर मैदान के मेला मैदान में भगवान रघुनाथ की पूजा करते हैं। आसपास के
ग्रामीण इस मेले के मैदान में एक पवित्र जुलूस में विभिन्न स्थानीय देवी-देवताओं की मूर्तियों को
लाते हैं। पूरी घाटी पूरे सप्ताह उत्सव की खुशियों से गुलजार हो जाती है।
4. देश की राजधानी दिल्ली दशहरे को भगवान राम द्वारा रावण की हार के रूप में मनाती है। इस
पर्व की पूर्व संध्या पर मंदिरों को शानदार ढंग से सजाया जाता है और रामलीला आयोजित की
जाती है। शहर के विभिन्न स्थानों पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण सहित तीनों राक्षसों पुतलों को
जलाया जाता है।
हमारा मेरठ शहर भी इस अवसर का जश्न मनाने में बिल्कुल भी पीछे नहीं रहता मेरठ कैंट में
रामलीला समिति द्वारा प्रतिवर्ष भव्य रामलीला आयोजित की जाती है, जिसमें प्रसिद्ध कलाकारों
की टीमें अपना शानदार प्रदर्शन करती हैं। मेरठ के भैंसाली मैदान में आयोजित रामलीला में '
चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी (Children's Film Society) की फिल्म 'गट्टू' में अभिनय करने वाले
और 'मटरू की बिजली का मन डोला', 'रांझणा' आदि में छोटी भूमिकाएँ निभाने वाले, श्री विजय
श्रीवास्तव, राम के पात्र के लिए वॉइस ओवर आर्टिस्ट (voice over artist) की भूमिका निभाते हैं।
श्रीवास्तव, जो नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (National School of Drama) में व्याख्यान देते हैं,
कुछ अवसरों पर लक्ष्मण और परशुराम जैसे अन्य पात्रों के लिए भी आवाज देते हैं।
सन्दर्भ
https://bit.ly/3RuTb7w
https://bit.ly/3M4VZqS
https://bit.ly/3C0Czi9
https://bit.ly/3CskIls
चित्र संदर्भ
1. रामलीला मंचन को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. रामलीला में रावण के मंचन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. विशाल पुतलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. गुजरात का बहुत प्रसिद्ध लोक नृत्य गरबा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. कुल्लू के लोग ढालपुर मैदान के मेला मैदान में भगवान रघुनाथ की पूजा करते हैं, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. राम लखन को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)