विश्व खाद्य दिवस विशेष: खाद्य असुरक्षा उत्पन्न करते हैं, युद्ध और संघर्ष

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विश्व खाद्य दिवस विशेष: खाद्य असुरक्षा उत्पन्न करते हैं, युद्ध और संघर्ष

आज पूरा विश्व,“विश्व खाद्य दिवस” मना रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया से भुखमरी को खत्म करना तथा सभी तक भोजन की उचित मात्रा उपलब्ध कराना है। आज 2022 में हम यह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, कि कोरोना महामारी और ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती जा रही हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय तनाव भी बढ़ता जा रहा है। परिणामस्वरूप हमारी वैश्विक खाद्य सुरक्षा बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। आज हमें एक ऐसी स्थायी दुनिया बनाने की जरूरत है जहां हर किसी को, हर जगह पर्याप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो, तथा कोई भी इससे वंचित न रहे।
हालांकि हमने एक बेहतर दुनिया के निर्माण की दिशा में प्रगति की है, लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो पौष्टिक खाद्य सुरक्षा से वंचित हैं तथा मानव विकास, नवाचार या आर्थिक विकास का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। वास्तव में, दुनिया भर में ऐसे लाखों लोग हैं, जो स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते हैं, और अक्सर खाद्य असुरक्षा और कुपोषण का सामना करते हैं। भूख को खत्म करने के लिए केवल खाद्य आपूर्ति ही काफी नहीं है, बल्कि धरती पर सभी को उचित खाद्य सुविधा प्रदान करने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन भी आवश्यक है। यूक्रेन (Ukraine) और रूस (Russia) के बीच चल रहे युद्ध के कारण खाद्य बाजार में एक महत्वपूर्ण असंतुलन उत्पन्न हुआ है। इस असंतुलन को कम करने के लिए भारत ने पर्याप्त मात्रा में खाद्य उत्पादन किया तथा स्थिर खाद्य आपूर्ति के लिए विश्वसनीय वैकल्पिक स्रोत बना। इससे दो प्रश्न हमारे सामने उभर कर आते हैं। पहला प्रश्न यह है कि क्या भारत अपने कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम है? और क्या यह विदेश नीति के दृष्टिकोण से स्वीकार्य है?
यूक्रेनऔर रूस के बीच चल रहे युद्ध के कारण खाद्य सुरक्षा पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। वर्तमान में, कोविड -19 महामारी ने जहां पहले ही 2020 में दुनिया भर में खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया था, वहीं यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से इस क्षेत्र में तनाव और भी बढ़ गया है। विश्व बाजार में गेहूं, मकई, जौं, सूरजमुखी के लिए रूस और यूक्रेन का योगदान क्रमशः 27 प्रतिशत,16 प्रतिशत,23 प्रतिशत और 53 प्रतिशत है।छब्बीस देश, मुख्य रूप से अफ्रीका (Africa), पश्चिम एशिया (Asia) और एशिया, अपने 50 प्रतिशत से अधिक गेहूं के आयात के लिए रूस और यूक्रेन पर निर्भर हैं।
भारत इस निर्भरता को कम करना चाहता था और अप्रैल 2022 में, प्रधान मंत्री द्वारा यह घोषणा की गई कि “यदि विश्व व्यापार संगठन अनुमति देता है, तो भारत दुनिया को खिला सकता है। हालांकि, एक महीने बाद ही, लू और निजी क्षेत्रों की जमाखोरी की वजह से मौजूदा भंडार के बारे में अनिश्चितता के कारण उत्पादन को लेकर चिंता के बीच बढ़ती घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिए गेहूं निर्यात में प्रतिबंध लगा दिया गया।
यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी यह देखा गया था कि,कृषि वस्तुओं के साथ कमोडिटी फ्यूचर्स एक्सचेंजों (Commodity futures exchanges) पर सट्टे लगाना खाद्य कीमतों में तेजी का एक प्रमुख कारण था।जब खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है, तो यह दुनिया भर में लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती है।आज, खाद्य मुद्रास्फीति भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण है।महामारी के कारण आय में गिरावट ने पहले ही भारत में भूख के स्तर को बढ़ा दिया है।भारत 2021 ग्लोबल हंगर इंडेक्स (World Hunger Index) में 116 देशों में 101 वें स्थान पर है। 2017 और 2021 के बीच वैश्विक गेहूं निर्यात में रूस और यूक्रेन दोनों देशों की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत थी। दोनों देशों ने दुनिया को लगभग 274 मिलियन टन गेहूं की आपूर्ति की। मिस्र (Egypt) और इंडोनेशिया (Indonesia) जैसे देश गेहूं के लिए लगभग पूरी तरह से इन दोनों देशों पर निर्भर हैं। युद्ध के कारण दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक यूक्रेन, दुनिया को अनाज निर्यात करने में असमर्थ है।अधिकांश देश अब दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक से गेहूं प्राप्त करने में असमर्थ हैं, जिससे खाद्य असुरक्षा का संकट बढ़ रहा है। उर्वरक की कमी, अनाज उत्पादन को प्रभावित करने वाली मौसम संबंधी असामान्यताओं ने भी आपूर्ति में गिरावट उत्पन्न की है। सबसे खराब समकालीन युद्धों ने बड़े पैमाने पर भुखमरी को जन्म दिया है। कुछ मामलों में, भुखमरी को एक हथियार के रूप में प्रयोग किया गया है।
2015 में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में भूख और अत्यधिक खाद्य असुरक्षा को समाप्त करने के लक्ष्य को भी शामिल किया गया था।दुनिया भर में, भूखे और कुपोषित लोगों की संख्या कम से कम दो दशकों से घट रही थी, लेकिन 2015 के बाद यह बढ़ने लगी। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसमी घटनाओं के साथ-साथ संघर्ष और युद्ध इस स्थिति का मुख्य कारण हैं। 2016 में पुराने कुपोषण से पीड़ित 815 मिलियन लोगों में से, 60 प्रतिशत लोग सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में रहते थे। युद्ध स्वाभाविक रूप से हिंसक और हानिकारक होते हैं, लेकिन संसाधनों का विनाश कभी- कभी बम और गोलियों की तुलना में अधिक विनाशकारी नुकसान पैदा कर सकता है।युद्धरत पक्ष दुश्मन की खाद्य आपूर्ति को लूट सकते हैं तथा जानबूझकर खेतों, पशुधन और अन्य नागरिक बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकते हैं, जिससे खाद्य असुरक्षा उत्पन्न होती है।इसके अतिरिक्त, युद्ध आमतौर पर बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन का कारण बनते हैं,जिससे वे अपनी खाद्य आपूर्ति और आजीविका से दूर हो जाते हैं।
लोग अक्सर तीव्र खाद्य असुरक्षा के साथ-साथ बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। सशस्त्र संघर्ष निश्चित रूप से खाद्य असुरक्षा की खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है, जो हिंसक राजनीतिक संघर्ष को जन्म दे सकती है। बुनियादी खाद्य पदार्थों की उपलब्धता या कीमत में अचानक बदलाव से सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है। इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण 1789 की फ्रांसीसी क्रांति है,जो अनाज की खराब फसल और आर्थिक दबावों के कारण एक बड़े हिस्से में फैली, जिससे रोटी की कीमत में तेज वृद्धि हुई।

संदर्भ:
https://bit.ly/3rS30BR
https://bit.ly/3SYNErp
https://bit.ly/3CTtl98

चित्र संदर्भ
1. युद्ध और खाद्य असुरक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. यूक्रैन की सेना को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. 2020 वैश्विक भूख सूचकांक गंभीरता को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भोजन करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)