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  क्या आप जानते हैं कि मेरठ के गिरजाघर अर्थात चर्च (Church), न केवल अपनी आश्चर्यजनक वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपने समृद्ध और आकर्षक इतिहास के लिए भी बेहद प्रसिद्ध हैं।  ये चर्च, जो औपनिवेशिक काल के दौरान बनाए गए थे, अपनी भव्यता, शक्ति और सुंदरता के साथ समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। इसके अलावा क्रिसमस के अवसर पर इन चर्चों की सजावट और भव्यता इन धार्मिक स्थलों की सुंदरता में चार चाँद लगा देती  है।  
क्रिसमस के दिन उपहार देना एक प्राचीन परंपरा है, जो संभवतः सभी संस्कृतियों में मानवता की शुरुआत के समय से चली आ रही है। उपहार देना लोगों के विभिन्न समूहों के बीच विश्वास बनाने और संबंधों को मजबूत करने का एक आदर्श तरीका रहा होगा। 
नवपाषाण काल के दौरान, शीतकालीन संक्रांति (winter solstice) (आमतौर पर 21 या 22 दिसंबर को मनाया जाने वाला) एक महत्वपूर्ण उत्सव था। इस अवसर पर एक वर्ष के अंत और अगले वर्ष की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए, लोग दावत और उपहारों के आदान-प्रदान के लिए स्टोनहेंज (Stonehenge) जो विल्टशायर, इंग्लैंड (Wiltshire, England) में सैलिसबरी मैदान पर एक प्रागैतिहासिक स्मारक है , जैसी जगहों पर इकट्ठा होते थे। स्टोनहेंज के पास डुरिंगटन वॉल्स (Durrington Walls) में पुरातत्वविदों को 38,000 से अधिक जानवरों की हड्डियाँ मिली हैं, (ज्यादातर सूअरों और कुछ मवेशियों की) जो संभवतः इसी मध्यशीत (Midwinter) उत्सव के लिए मारे गए थे। 
रोमनों में भी तोहफे देने की एक समान परंपरा थी, जिसे स्ट्रेने (strenae) कहा जाता था, जिसका नाम स्वास्थ्य और शारीरिक कल्याण की देवी स्ट्रेनिया (Strenia) के नाम पर रखा गया था। प्रारंभ में, पवित्र वृक्षों की शाखाएँ और टहनियाँ उपहार स्वरूप दी जाती थीं, लेकिन बाद में दो चेहरों वाले देवता जानूस (Janus) की छवि वाले सोने के नट और सिक्कों का आदान-प्रदान किया जाने लगा। 
उपहार देने और क्रिसमस के उत्सव के बीच संबंध प्रारंभिक ईसाईयों द्वारा स्थापित किया गया। कहा जाता है कि तीन बुद्धिमान पुरुष, या मैगी (Biblical Magi), नवजात यीशु के लिए सोना, लोबान (Myrrh), और लोहबान (frankincense) का उपहार लाए थे। इसने क्रिसमस पर उपहार देने की परंपरा को जन्म दिया, जिसे बाद में व्यापक रूप से समाज में अपनाया गया।
पूरे इतिहास में, क्रिसमस पर उपहार देने के रीति-रिवाज कई रूपों में विकसित हुए हैं। मध्य युग में, लोग सद्भावना के संकेत के रूप में छोटे उपहारों या टोकन (Token) का आदान-प्रदान करते थे। विक्टोरियन युग (Victorian Era) में क्रिसमस ट्री (Christmas Tree) की लोकप्रियता देखी गई, और अक्सर इसके नीचे उपहार रखे जाते थे। आज,क्रिसमस उपहारों के आदान-प्रदान की परंपरा दुनिया भर की कई संस्कृतियों में सामान्य परंपरा है, जिसमें लोग दोस्तों, परिवार और यहां तक कि सहकर्मियों को भी उपहार देते हैं। 
क्रिसमस उपहारों का आम तौर पर निम्न समय पर आदान-प्रदान किया जाता है: 
१.क्रिसमस ईव (Christmas Eve) (24 दिसंबर) 
२.क्रिसमस दिवस (25 दिसंबर) 
३.बारहवीं रात (5 जनवरी) 
ईसाई परंपरा के अनुसार, क्रिसमस के मौसम में उपहार देने की प्रथा शिशु यीशु (Infant Jesus) को तीन बुद्धिमान पुरुषों द्वारा उपहारों की प्रस्तुति का प्रतीक है। क्रिसमस पर उपहार देने की परंपरा की जड़ें प्राचीन रोम में हैं, जहां यह मूल रूप से दिसंबर में सतुरलिया अवकाश (Saturnalia Holiday) से जुड़ी थी। ईसाई धर्म के पूरे रोमन भूमि में फैलने के साथ ही, उपहार देने का रिवाज नए साल के दिन या दौरान भी निभाया जाने लगा। 
चौथी शताब्दी में, 25 दिसंबर को क्रिसमस का उत्सव स्थापित हो गया। कुछ ईसाई देशों में, सेंट निकोलस दिवस (St. Nicholas Day) पर उपहार का आदान-प्रदान होता है, जबकि अन्य में यह आगमन या क्रिसमस दिवस या बारहवीं रात के दौरान होता है।
हालांकि, 19वीं शताब्दी के अंत तक, क्रिसमस की पूर्व संध्या उपहार देने की सबसे आम तारीख बन गई। आज 25 दिसंबर को उपहार देना क्रिसमस की उतनी ही जरूरी परंपरा है जितना  कि उत्सव में रात में भुना हुआ खाना खाना या जगमगाता क्रिसमस पेड़ सजाना। 
क्रिसमस दुनिया भर में मनाया जाने वाला एक खुशी भरा और बहुप्रतीक्षित त्यौहार
है। यह प्यार, मुस्कान, उपहार देने या प्राप्त करने और प्रियजनों के साथ विशेष यादें बनाने का समय होता है। क्रिसमस की सजावट का एक प्रमुख तत्व क्रिसमस ट्री (Christmas Tree) भी है, जो एक सदाबहार पाइन (pine) या स्पृस (Spruce) का रोशनी, एक चमकीले सितारे, और गहनों से सजाया गया पेड़ होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्रिसमस ट्री आखिर क्रिसमस समारोह का इतना अभिन्न हिस्सा क्यों है?
ईसाई धर्म में क्रिसमस ट्री ईसा मसीह के जन्म और उनके दोबारा जी उठने का प्रतीक माना जाता है। वृक्ष की शाखाओं और झाड़ियों को अमरत्व का प्रतिनिधित्व करने के रूप में देखा जाता है और कहा जाता है कि वे क्रॉस (Cross) पर मसीह द्वारा पहने गए कांटों के मुकुट का प्रतीक हैं। माना जाता है कि पेड़ पर प्रत्येक सजावट का विशेष महत्व होता है और कहा जाता है कि हमारे गुण जैसे शांति, प्रेम, दया, आनंद, भलाई, विश्वास और नम्रता, पेड़ पर आभूषण की तरह हैं। कई परिवार एक साथ आकर पेड़ को विभिन्न आभूषणों से सजाते हैं और स्वस्थ तथा सुखी जीवन की कामना करते हैं।
अक्सर पेड़ के शीर्ष में एक चमकता सितारा भी लगाया जाता है। कहा जाता है कि यह उस तारे का प्रतिनिधित्व करता है जिसने बुद्धिमान पुरुषों को बेथलहम (Bethlehem) में यीशु मसीह के जन्म की घोषणा करने वाले देवदूतों का मार्गदर्शन किया। पेड़ की शाखाओं पर लटकी हुई घंटियाँ आनंद और खुशी का प्रतीक हैं, कैंडी बेंत (Candy Cane) के आकार के आभूषण भगवान को एक चरवाहे के रूप में दर्शाते हैं, इसके अलावा पुष्पांजलि (wreath) सच्चे प्रेम का प्रतिनिधित्व करती है।
विभिन्न प्राचीन संस्कृतियों के क्रिसमस ट्री से जुड़े अपने अर्थ और महत्व हैं। यूनानियों ने शंकुधारी पाइन को वनस्पतियों के ग्रीक देवता एटिस (Attis) के लिए पवित्र माना और इसे चांदी के आभूषणों से सजाया। रोमनों ने सदाबहार पेड़ों को सूर्य के प्रतीक के रूप में देखा और अपने घरों और मंदिरों को सदाबहार टहनियों से सजाकर कृषि के देवता का सम्मान करने के लिए सतुरनालिया (Saturnalia) का त्योहार मनाया।  ट्यूटनिक (Teutonic) लोगों ने अच्छी फसल सुनिश्चित करने के लिए, जीवन के देवताओं को भेंट के रूप में देवदार के पेड़ों को सोने की मशालों और गहनों से सजाया। जापानी और चीनी संस्कृति में, देवदार और सरू के पेड़ पवित्र माने जाते हैं और दीर्घायु और शाश्वत युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
क्रिसमस का त्यौहार हमारे मेरठ शहर में भी धूमधाम से मनाया जाता है, इस अवसर पर शहर के सभी गिरिजाघरों को शानदार रूप से सजाया जाता है।
हमारे मेरठ शहर के चर्च अपने वास्तुशिल्प चमत्कार के साथ-साथ एक समृद्ध इतिहास के लिए भी जाने जाते हैं। औपनिवेशिक काल में मेरठ शहर का यह क्षेत्र एक प्रमुख ब्रिटिश कैंटोनमेंट/ छावनी  था, और यहाँ के कई चर्च 18वीं सदी के मध्य और 19वीं सदी की शुरुआत से मौजूद हैं। 
जिनकी सूची निम्नवत दी गई है।
१. सेंट जॉन्स चर्च (St. John's Church): सेंट जॉन्स चर्च उत्तर भारत के सबसे पुराने चर्चों में से एक है और इसे 1819 में स्थापित किया गया था। यह वर्तमान में आगरा के धर्मप्रांत के अधीन है और यह अपनी गोथिक वास्तुकला, जो कि लंदन में ट्राफलगर स्क्वायर (Trafalgar Square) में स्थित सेंट मार्टिन (St. Martin) की वास्तुकला के समान वास्तुकला है, के लिए प्रसिद्ध है।
२. सेंट थॉमस चर्च (St. Thomas Church): सेंट थॉमस चर्च भी इस क्षेत्र के सबसे पुराने चर्चों में से एक है, जिसे रेव होर्नले (Rev. Hörnle) और उनकी पत्नी एमिली होर्नले (Emily Hörnle) द्वारा 1868 में ब्रिटिश राज की अवधि के दौरान बनाया गया था। यह अपनी शानदार वास्तुकला, आंतरिक सज्जा और विशेष रूप से बड़ी वेदी के लिए के लिए जाना जाता है।
३. मेथोडिस्ट चर्च (The Methodist Church): मेथोडिस्ट चर्च की स्थापना एंग्लिकन पादरी जॉन वेस्ली (Anglican priest John Wesley) द्वारा की गई थी। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, दो महिला पुजारियों ने चर्च के प्रचार संबंधी गतिविधियों को संभाला और आसपास के गांवों और कस्बों के सैकड़ों लोगों को मेथोडिस्ट समुदाय में बपतिस्मा (ईसाई दीक्षा) प्रदान की। यह शहर के सिटी लाइन्स (City Lines) क्षेत्र में स्थित है।
४. सेंट जोसेफ कैथेड्रल (St. Joseph's Cathedral): सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च को 1834 में सरधना की बेगम सुमरू द्वारा बनाया गया था। हरे-भरे परिवेश में इसकी अनूठी वास्तुकला इसे लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती है। यह वर्तमान में मेरठ के धर्मप्रांत के नियंत्रण में है।
५. सेंट पॉल मेथोडिस्ट चर्च (St. Paul's Methodist Church): सेंट पॉल मेथोडिस्ट चर्च एक अपेक्षाकृत नया चर्च है, जिसे 1941 में रॉयल आर्मी कोर्पस् (Royal Army Corps) के सदस्यों की स्मृति में बनाया गया था। यह मेरठ छावनी में रुड़की रोड पर स्थित है।
६. बेसिलिका ऑफ़ अवर लेडीज़ ग्रेसस (Basilica of our Lady's Graces): बेसिलिका ऑफ़ अवर लेडीज़ ग्रेसेस, सरधना में स्थित है और 1809 में इसे बेगम सुमरू ने बनवाया था, जिन्होंने 1781 में ईसाई धर्म अपना लिया और सरधना पर शासन किया। अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाने वाला यह चर्च ऊंची मेहराबदार दीवारों और एक बड़ी वेदी द्वारा चिह्नित है, तथा वर्जिन मैरी (Virgin Mary) को समर्पित है।
   
 
संदर्भ  
https://bit.ly/3v5AgqW 
https://bit.ly/3v9RlQI 
https://bit.ly/3WqDBN0 
https://bit.ly/3WS06L9 
https://bit.ly/3WEtT9X 
 
चित्र संदर्भ 
1. क्रिसमस उपहारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
2. क्रिसमस उपहारों के आदान-प्रदान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
3. रोमनों में भी तोहफे देने की एक समान परंपरा थी, जिसे स्ट्रेने (strenae) कहा जाता था, जिसका नाम स्वास्थ्य और शारीरिक कल्याण की देवी स्ट्रेनिया (Strenia) के नाम पर रखा गया था। को दर्शाता एक चित्रण (picryl) 
4. ईसाई परंपरा के अनुसार, क्रिसमस के मौसम में उपहार देने की प्रथा शिशु यीशु (Infant Jesus) को तीन बुद्धिमान पुरुषों द्वारा उपहारों की प्रस्तुति का प्रतीक है। को दर्शाता एक चित्रण (Poland Daily 24) 
5. क्रिसमस की सजावट का एक प्रमुख तत्व क्रिसमस ट्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
6. क्रिसमस ट्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
7. मेरठ में सेंट जॉन्स चर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
8. सेंट थॉमस चर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
9. मेथोडिस्ट चर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
10. सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च को दर्शाता एक चित्रण (google) 
11. सेंट पॉल मेथोडिस्ट चर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
12. बेसिलिका ऑफ़ अवर लेडीज़ ग्रेसस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)