भारत में कला का पहला संस्थान, ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई’ का गौरवशाली इतिहास

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
28-12-2022 12:08 PM
Post Viewership from Post Date to 28- Jan-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1611 802 0 2413
* Please see metrics definition on bottom of this page.
भारत में कला का पहला संस्थान, ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई’ का गौरवशाली इतिहास

चेन्नई और कुंभकोणम में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स(Government College of Fine Arts) के तैंतीस छात्र-कलाकारों ने हाल ही में चेन्नई में एक समावेशी सांस्कृतिक स्थल ‘स्पेसेस’ (Spaces) में अपने साथियों, पुराने कलाकारों और सामान्य दर्शकों के बीच अपनी दृश्य परियोजना, 'संग्रह श्रम' (Archiving Labour) का प्रदर्शन किया। इस परियोजना ने द्विवार्षिक राष्ट्रीय पुरस्कार और टाटा ट्रस्ट के छात्रों के द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार को क्रमशः प्राप्त किया। यह दृश्य परियोजना, गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई, जो देश में अपनी तरह का पहला संस्थान है, के गौरवशाली इतिहास की प्रस्तावना के रूप में कार्य करती है।
कॉलेज के बदलते नामकरण तथा समय के साथ इसकी परिवर्तनशील पहचान का संकेत देते हुए, छात्रों द्वारा इस कॉलेज की यात्रा की खोज शुरू करने के लिए एक धुरी प्रदान की गई ।
स्कूल ऑफ आर्ट्स, मद्रास (School of Arts, Madras) को 1850 में अलेक्जेंडर हंटर(Alexander Hunter) द्वारा एक निजी कला विद्यालय के रूप में स्थापित किया गया था। तब इस विद्यालय की शुरुआत कला के सामान बनाने के उद्देश्य के साथ की गई थी। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान, ब्रिटिश शासन ने पाया कि मद्रास में कई प्रतिभाशाली और कलात्मक लोग थे। अंग्रेजों ने मद्रास और उसके आसपास एक बस्ती ‘जॉर्ज टाउन’ (George town) को भी स्थापितकिया , जिसे उनके द्वारा एक ऐसा संस्थान स्थापित करने के लिए चुना गया था जो लंदन में राजघरानों की कलात्मक अपेक्षाओं को पूरा करेगा। पहले पारंपरिक कलाकारों को फर्नीचर, धातु के काम और कलाकृतियों के निर्माण के लिए नियोजित किया गया था, और उनकी कलाकृतियां रानी के शाही महलों में भेजी जाती थी ।
संस्थान ने खुद को ‘मद्रास विश्वविद्यालय’ से पहले भारत में कला के पहले स्कूल के रूप में स्थापित किया। 1852 में, सरकार द्वारा अधिग्रहित किए जाने के बाद, इसका नाम बदलकर ‘गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ इंडस्ट्रियल आर्ट्स’ (Government School of Industrial Arts) कर दिया गया और इसके साथ ही इस विद्यालय को अपने वर्तमान परिसर, पूनमल्ली हाई रोड (Poonamallee High Road) पर चार एकड़ के एक परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया। 1962 में, इसका नाम बदलकर ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स’ (Government College of Arts and Crafts) कर दिया गया [ फिर 2001 में इसे एक ‘ललित कला’(Fine Arts) संस्थान की अपनी पहचान तथा अपना वर्तमान नाम– गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई, (The Government College of Fine Arts, Chennai ) दिया गया। वर्तमान में यह विद्यालय, इसकी कक्षाओं और कला स्टूडियो सहित, झज्जर औपनिवेशिक इमारतों में स्थित है। इसमें एक गुप्त संग्रहालय भी है जिसमें अभिलेखीय सामग्री बंद रहती है। 1855 में, मद्रास स्कूल में दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे पहला फोटोग्राफी विभाग स्थापित किया गया था। ब्रिटिश ऑनलाइन लाइब्रेरी (British Online Library) में उपलब्ध सर्वे ऑफ इंडिया (Survey of India) के लिए इस विभाग द्वारा ली गई तस्वीरों ने कलाकार छात्रो का ध्यान आकर्षित किया। इसी विद्यालय के माध्यम से मद्रास कला आंदोलन का मार्ग भी प्रशस्त हुआ था जो कि कला के क्षेत्र में एक अनोखा आंदोलन रहा है। मद्रास कला आंदोलन एक क्षेत्रीय आधुनिक कला आंदोलन था जो 1960 के दशक में मद्रास [चेन्नई], दक्षिण भारत में उभरा था। आजादी के बाद, भारतीय कलाकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीसरी दुनिया के देशों की तरह अपनी पहचान और प्रामाणिकता स्थापित करनी थी जिसके लिए ‘मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स’ से, देवी प्रसाद रॉय चौधरी, इसके पहले भारतीय कलाकार प्रिंसिपल (1930 में नियुक्त) ने ललित कला पाठ्यक्रम बनाया और इस आधुनिक आंदोलन के विकास के लिए मंच तैयार किया। कला संस्थान के भीतर 1960 के दशक की शुरुआत में एक साथ आए कलाकारों का समूह मद्रास कला आंदोलन के कोष्ठकों के भीतर उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली आधुनिकता का एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रदान करता है। 1960 के दशक की शुरुआत में हुए इस आंदोलन को के.सी.एस. पणिकर और एस. धनपाल जैसे दूरदर्शी और दिग्गजों द्वारा रचनात्मक रूप से आगे बढ़ाया गया था। छात्रों के साथ कलाकार-शिक्षकों ने क्षेत्र की स्थानीय कला को रचनात्मक रूप प्रदान किया। इस प्रकार ‘मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स’ ने मद्रास कला आंदोलन के प्रमुख सदस्यों के कलात्मक कार्यों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देवी प्रसाद रॉय चौधरी– उससमय में बंगाल के एक प्रसिद्ध आधुनिक कलाकार ने 1929 में स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में कार्यभार संभाला।वे कॉलेज के पहले भारतीय प्रधानाचार्य थे।तथा वे बंगाल आंदोलन के कुछ कलाकारों के साथ चार दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक के कलाकारों के साथ शामिल हुए।
1957 में रॉय चौधरी की सेवानिवृत्ति के बाद, के.सी.एस. पणिकर ने प्रधानाचार्य के रूप में पदभार संभाला और आधुनिक मार्ग का नेतृत्व किया जिसे मद्रास आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। यह स्वतंत्रता के बाद की अवधि के साथ मेल खाता है जब कलाकार उपनिवेशवाद की बेड़ियों को तोड़ने और अपनी खुद की पहचान स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे।के.सी.एस. पणिकर के निर्देशन में एक समूह के रूप में काम करते हुए, चित्रकारों और मूर्तिकारों ने अपने काम को विकसित किया – चित्रकारों ने इसे बेहतर और बेहतर बनाया, उनकी चित्रकला बीजगणितीय, गंभीर रूप से सांकेतिक या कैलीग्राफिक और सुंदर तरह से स्वदेशी चित्रकला की परंपरा के अनुरूप थी। मूर्तिकला में भी एक क्रांतिकारी आंदोलन शुरू किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि मूर्तिकारों को भी पारंपरिक मूर्तिकला की कारीगरी के लिए एक समकालीन ताक़त के साथ सहज ज्ञान युक्त भावना द्वारा निर्देशित किया गया था। मूर्तिकला में भी, रेखा व्याप्त प्रतीत होती थी, और आयतन पीछे हो जाता था। साथ ही, अधिकांश मूर्तिकारों के कार्यों में ‘फ्रंटैलिटी– Frontality’(कला के काम में आकृतियों या वस्तुओं के सामने के दृश्य का प्रतिनिधित्व), एक प्रमुख तत्व था। चूंकि यह दक्षिण भारत में व्यापक कला शिक्षा प्रदान करने वाली एकमात्र संस्था थी, 1960 के दशक में अन्य कला संस्थानों के उभरने तक, कलाकार बनने के इच्छुक कई छात्र केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के चार राज्यों से यहां आए। आंदोलन के भीतर दो व्यापक शैलियों, "आलंकारिक" और "सार," को उन कलाकारों द्वारा अभ्यास के रूप में पहचाना जा सकता है जो इस संस्था के पोर्टल से गुज़रे और खुद को अपने अधिकार में कलाकारों के रूप में स्थापित किया। इस प्रकार, मद्रास भी भारत के लिए एक नई कला के निर्माण में प्रमुख खिलाड़ियों में से एक के रूप में बंबई, कलकत्ता और दिल्ली की तरह उभरता गया।
वैसे तो ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स’, चेन्नई, की स्थापना औपनिवेशिक काल में ही हुई थी और उसका उद्देश्य भी औपनिवेशिक सरकार के मतलब से ही संबंधित था। परंतु आज मद्रास कला आंदोलन की सफलता तथा उसके वर्तमान छात्रों की मेहनत तथा कला की वजह से इस विद्यालय का नाम आज भारत के संदर्भ में रोशन हो रहा है।

संदर्भ–
https://bit.ly/3BKr0fG
https://bit.ly/3hAjM76
https://bit.ly/3FCfGn0
shorturl.at/IWZ13

चित्र संदर्भ

1. ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई’ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई’” प्रांगण को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
3. ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई’ में कला दीर्घा” को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. के.सी.एस. पणिकर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)