अवैध व्यापार और तस्करी की भेंट चढ़ रही है, भारत की समृद्ध जीव संपदा

सरीसृप
02-01-2023 10:50 AM
Post Viewership from Post Date to 02- Feb-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1383 786 0 2169
* Please see metrics definition on bottom of this page.
अवैध व्यापार और तस्करी की भेंट चढ़ रही है, भारत की समृद्ध जीव संपदा

भारतवर्ष की जीव संपदा से संपन्न प्राकृतिक संस्कृति पर, प्रत्येक भारतवासी गर्व करता है। किंतु दुर्भाग्य से हमारी इस कुदरती संपन्नता का एक नकारात्मक पहलू भी है, जिसके सुधार एवं ठहराव पर यदि जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो वह समय दूर नहीं है जब हमारा यह शानदार गौरव ही हमारे लिए पछतावे का कारण बन जाए।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (World Wildlife Fund (WWF) द्वारा जारी की गई, एक रिपोर्ट के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधों के अंतर्गत, ड्रग्स की तस्करी, मानव तस्करी और जालसाजी के बाद “वन्यजीव तस्करी" अपराध का चौथा सबसे बड़ा रूप है, जिसके तहत प्रति वर्ष अनुमानित £15 बिलियन (15 billion Great Britain Pounds ( GBP) अर्थात “15,01,66,51,56,000” भारतीय रुपयों का लेनदेन होता है। ‘वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ विषय पर आयोजित सम्मेलन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES) का एक हिस्सा होने के बावजूद वर्तमान में हमारा भारत, वन्यजीव तस्करी से प्रभावित शीर्ष 20 देशों में से एक है, वहीं हवाई मार्ग से की जाने वाली वन्यजीव तस्करी के मामलों में शीर्ष 10 देशों में से एक है। भारत, अवैध वन्यजीव और वन्यजीव उत्पादों के व्यापार के लिए एक आदर्श स्रोत तथा पारगमन देश, दोनों के रूप में कार्य करता है , क्योंकि विशाल जीव विविधता (जैसा कि भारत में विश्व के वन्य जीवों का 8% हिस्सा है) और घनी मानव आबादी के कारण, भारत के घरेलू बाजारों में प्रवेश करने के बाद अवैध उत्पादों का पता लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
इसके अलावा, कई अन्य कारकों ने भी देश में अवैध वन्यजीव व्यापार के खिलाफ लड़ाई को अत्यंत चुनौतीपूर्ण बना दिया है। इनमें चीन, म्यांमार और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ छिद्रिल अंतरराष्ट्रीय सीमाएं, बढ़ता विमानन बाजार और वन्यजीव तस्करों द्वारा ऑनलाइन बाज़ार के रूप में सोशल मीडिया का उपयोग करना भी शामिल हैं। जानवरों की तस्करी के लिए भारत में विदेशी वन्यजीव प्रजातियों के तस्करों ने, 2020 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी, स्वैच्छिक प्रकटीकरण योजना (Voluntary Disclosure Scheme) का दुरुपयोग करने का भी सहारा लिया है। इस योजना का उद्देश्य भारत में विदेशी जानवरों के बढ़ते बाजार को विनियमित करना है। इन कारणों के अलावा, भारत में विदेशी जानवरों के स्वामित्व से संबंधित कानूनों में भी कई प्रमुख खामियां नज़र आ रही हैं। जैसे विदेशी वन्यजीव प्रजातियों की तस्करी करते, पकड़े गए लोगों पर अपराध का आरोप तभी लगाया जा सकता है, जब यह साबित हो जाए कि उन्होंने उन जानवरों के साथ अवैध रूप से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की है। इसके अलावा, एक बार भारत में प्रवेश करने के बाद, विदेशी प्रजातियों के स्वामित्व को विनियमित करने वाली कोई नीति या कानून ही नहीं हैं। वन्यजीव संरक्षण कानून केवल भारतीय वन्य जीवों पर लागू होता है। चूंकि भारत, तस्करी किए गए वन्यजीव और वन्य जीव उत्पादों के लिए न केवल एक प्रमुख स्रोत है, बल्कि एक पारगमन और गंतव्य देश भी है, जहाँ बड़ी संख्या में प्रजातियों को अवैध रूप से देश से बाहर विदेशों में और विदेशों से हमारे देश में लाया जाता है। स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट (Smuggling in India Report) 2020-2021 के अनुसार, हाथी दांत, कछुए (विशेष रूप से भारतीय स्टार कछुआ), और लाल चंदन, ऐसे सबसे आम वन्यजीव और वन्य जीव उत्पाद हैं, जिन्हें भारत से बाहर तस्करी करके ले जाते हुए जब्त किया गया था। हाल ही में, भारत से गैंडों के सींग के व्यापार में गिरावट आई है; किंतु हमारा देश तेजी से छिपकली के अवैध शिकार और तस्करी का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। बाघ के अंगों का व्यापार भी बदस्तूर जारी है।
इसके अलावा, चन्ना बरका (Channa Barka) या स्नेकहेड “Snakehead” (ऊपरी ब्रह्मपुत्र बेसिन के लिए स्थानिक) और ज़ेबरा लोच (Zebra Loach) जैसी सजावटी मछलियों को एक्वैरियम मछली (Aquarium Fish) के रूप में प्रयोग करने के लिए, उनके प्राकृतिक आवासों से पकड़ा जा रहा है। इनके साथ-साथ, सुनहरे गीदड़ों, एशियाई काले भालू, तेंदुओं (तांत्रिक उपयोगों और पारंपरिक दवाओं के लिए) और नेवले (नेवले के बाल पेंट ब्रश के लिए) के शरीर के अंगों के साथ भी वन्यजीवों की तस्करी का विस्तार हुआ है।
2020 में प्रकाशित फ्लोरा एंड फॉना इन कॉमर्स (Flora and Fauna in Commerce) की रनवे टू एक्सटिंक्शन रिपोर्ट (Runaway to Extinction Report) के व्यापार आंकड़ों (TRAFFIC) के अनुसार, जहां एक तरफभारत से लाल कान वाले स्लाइडर कछुओं (Slider Turtles) की तस्करी बढ़ रही है, वहीं विदेशी जानवरों जैसे कंगारू, मार्मोसेट (Marmoset), और पक्षियों जैसे मकाओ (Macaw) और तोते को भारत में अवैध रूप से लाने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। वन्यजीव और वन्यजीव उत्पादों के अवैध आयात और निर्यात के अलावा, भारत में पारंपरिक चिकित्सा के लिए वन्यजीव मांस और शरीर के अंगों के लिए एक समृद्ध घरेलू बाजार है, जिनमें मीठे पानी के कछुए, लोरिस (Loris) और मेंढक शामिल हैं। भारत में और भारत से बाहर अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीवों की तस्करी मुख्य रूप से दो मार्गों, “पूर्वोत्तर के साथ लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के माध्यम से, और दूसरा, हवाई अड्डों के माध्यम से होती है।” गैंडों के सींग, बाघ के अंगों, और पैंगोलिन के शल्कों की तस्करी विशेष रूप से भारत-नेपाल तथा भारत-म्यांमार-चीन सीमाओं में व्याप्त है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर पक्षियों और सरीसृपों (Reptiles) की तस्करी भी बड़े पैमाने पर होती है।
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES) के तहत केवल 9% व्यापारिक सरीसृप प्रजातियों को ही, कुछ स्तर की सुरक्षा मुहैया कराई गई है, जो जंगली आबादी के अति दोहन को बड़ा सकती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए जानकार, केवल कुछ ही प्रजातियों के व्यापार की अनुमति देने और अन्य सभी प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए सीआईटीईएस (CITES) की प्रक्रिया में उलटफेर की वकालत कर रहे हैं। अध्ययन में पाया गया कि व्यापारिक सरीसृप प्रजातियों के एक उच्च प्रतिशत में ऐसे सरीसृप थे जो कैद में पैदा होने के बजाय जंगली स्तर पर जन्में थे। यह छिपकलियों के लिए विशेष रूप से सच था, क्योंकि 75% व्यापारिक छिपकलियों को जंगलों से ही लाया गया था। वन्यजीवों की तस्करी के लिए जहां हवाई मार्ग का उपयोग किया जाता है, वहीं देश की भूमि और समुद्री सीमाओं का उपयोग वनस्पतियों की तस्करी के लिए प्रमुख रूप से किया जाता है। जर्मन पशु कल्याण और प्रजाति संरक्षण समूह, ‘प्रोवाइल्डलाइफ़’ की सह-संस्थापक सैंड्रा अल्थर (Sandra Alther, co-founder of ProWildLife) के संगठन ने यह भी पाया है कि अधिकांश व्यापारिक सरीसृप प्रजातियां अंतरराष्ट्रीय उपायों द्वारा संरक्षित नहीं हैं। आज कई संरक्षणकर्ता सीआईटीईएस प्रक्रिया में बदलाव की मांग कर रहे हैं ताकि इन बहुमूल्य प्रजातियों की केवल एक विशिष्ट सूची का ही कानूनी रूप से व्यापार किया जा सके।

संदर्भ
https://bit.ly/3I8P6EM
https://bit.ly/3FVtAke
https://bit.ly/3VLfXdv

चित्र संदर्भ
1. जानवरों की तस्करी को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. काटे गए तेंदुओं की खोपड़ियों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. तेंदुए की खाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. चन्ना बरका मछली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मकाओ तोते को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पालतू छिपकली को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)