देश के थार मरुस्थल में बढ़ रहा है हरित आवरण,पर शायद इसके है नकारात्मक प्रभाव

मरुस्थल
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देश के थार मरुस्थल में बढ़ रहा है हरित आवरण,पर शायद इसके है नकारात्मक प्रभाव

हमारे देश के पश्चिमी भाग में महान भारतीय थार रेगिस्तान स्थित है।यह मरुस्थल रेत के टीलों, मौसमी घास के मैदानों, शुष्क चट्टानी झाड़ियों और अंतहीन सफेद नमक के मैदानों के विशाल विस्तार के लिएविश्वभर मेंप्रसिद्ध है।इसक्षेत्रमें बहुत कम वर्षा के साथ बहुत गर्मी भी होती है। देश का थाररेगिस्तान पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थानके 13 जिलों और गुजरात के कच्छ जिले के क्षेत्र में फैला हुआ है। ऐतिहासिक रूप से, इस रेगिस्तान को बिना किसी वनस्पति के एक बंजर मृत भूमि के विशाल विस्तार के रूप में जाना जाता है।
यदि यह थार मरुस्थल एक हरे-भरे जंगल में बदल जाता है तो सोचिये क्या होगा! जी हां, जलवायुपरिवर्तन भविष्य में इस तरह का परिवर्तन ला सकता है।इसके अलावा, कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग(Global warming) के कारण थार रेगिस्तान के विलुप्त होने की भीसंभावना है।मानसून के एक कारक के रूप में ज्ञात हिंद महासागर में बनने वाली ‘हिंद महासागर गर्म स्थिति (Indian Ocean Warm Pool (IOWP)’,जो एक विशिष्ट भौगोलिक स्थिति है,आज ग्लोबल वार्मिंग(global warming)के कारण पश्चिम की ओर विस्तारित हो रही है। वायुमंडलीय हवाएँ वाष्पीकरण के माध्यम से समुद्र की सतह को ठंडा करती हैं, और कभी-कभी ठंडे, गहरे पानी को ऊपर आने के लिए मजबूर करती हैं। यह गर्मियों के दौरान पश्चिमी अरब सागर में सोमालिया (Somalia) तट के पास होता है। इस क्षेत्र में पानी ठंडा है, जिससे इसके आसपास के क्षेत्रों में गर्मी उत्पन्न होती है। इस गर्म स्थिति की पश्चिमी सीमा पर, वाष्पित होने वाला पानी हवा में ऊपर उठता है। पृथ्वी की परिक्रमा की वजह से यह वाष्प भारत की ओर तिरछीदिशा में चलती है।इसके परिणामस्वरूप, देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में 150 दिनों तक और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में केवल 70 दिन वर्षा होती है।जबकि,इस स्थितिके पश्चिम की ओर बढ़नेसे, बरसात की लंबी अवधि के कारण भारत के अर्ध-शुष्क उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में गर्मियों की औसत वर्षा में 50%-100% की वृद्धि हो सकती है।संक्षेप में कहें तो, वैज्ञानिकों का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर थार रेगिस्तान में अच्छी बारिश हो सकती है और धीरे-धीरे यह हरा-भरा हो सकता है। हालांकि यह कहना फिलहाल संभव नहीं है कि यह आने वाले 50 वर्षों में होगा या 100 वर्षों में, लेकिन ग्लोबल वार्मिंगकम से कम इस सदी के अंत तक जारी रहेगी, और इस तरह भारतीय मानसून का पश्चिम की ओर विस्तार भी संभवतः जारी रहेगा। साथ ही इस क्षेत्र में उस समय तक मानसून के मौसम की अवधि लगभग 70 दिनों से बढ़कर लगभग 90 दिनों तक, और वार्षिक वर्षा लगभग 45 सेंटीमीटर(centimeter) से बढ़कर लगभग 70 सेंटीमीटर(centimeter)तक बढ़ने की उम्मीद है। लंबे मानसून के कारणबढ़ी हुई वर्षा वनस्पतियों को उगने में मदद करेगी और शायद इसी वजह से थार मरुस्थल हरा-भरा होसकता है। दूसरी तरफ, थार व्यापक तौर पर वृक्षारोपण अभियान सहित अन्य कई भूमि-सुधार योजनाओं का प्रमुख केंद्रबिंदु भी रहा है।ऐतिहासिक रूप से, सामाजिक और राजनीतिकनीतियों ने खेती और वृक्षारोपण के माध्यम से इस रेगिस्तान और उसके आसपास के क्षेत्रों को “हरा–भरा” बनानेपर जोर दिया है। हमारे देश की आजादी के समय से,और यहां तक कि उसके पूर्व भी, महाराजाओं और ब्रिटिश राज के समय से,थार मरुस्थल की शुष्क भूमि में वृक्षारोपणकरना पूरे भारतवर्ष में शुष्क भूमि प्रबंधन परियोजनाओं का एक प्रमुख विकल्प रहा है। यह अद्वितीय रेगिस्तान पिछले कुछ दशकों के हरित अभियानों का गवाह बन गया है, चाहे वह 1970 के दशक के दौरान हुआव्यापक वृक्षारोपण हो; नहरों द्वारा सिंचाई में व्यापक वृद्धि हो, या रेगिस्तान में प्रत्येक मानसून के दौरान स्थानीय समुदायों द्वारा किया गया वार्षिक वृक्षारोपण अभियान।
आज जब हम अपने देश की 75वीं स्वतंत्रता का जश्न मना रहे हैं, हमारा थार रेगिस्तान पहले से कई ज्यादा हरा-भरा बन गया है। लेकिन,यह हरियाली थार के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वस्थ कार्यात्मक अवस्था का प्रतीक नहीं है। विडंबना यह है कि हरियाली के माध्यम से रेगिस्तान की उत्पादकता बढ़ाने के लिए शुरु की गई ये परियोजनाएं विभिन्न नकारात्मक प्रभावों का कारण बन गई है।रेगिस्तान में वृक्षारोपण के अनपेक्षित नकारात्मक प्रभावों का एक प्रमुख उदाहरण, कच्छ केबन्नी घास का मैदान है।इस विडंबना को समझने के लिए, हमें मरुस्थलीय पारि तंत्रों के बारे में कुछ तथ्यों को ठीक से समझने की आवश्यकता है।
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, आने वाली सरकारों ने औपनिवेशिककाल की विभिन्न सिंचाई, खेती और वृक्षारोपण नीतियों को जारी रखा। 1980 के दशक में, इंदिरा गांधी नहर परियोजनाने, जो देश की एक विशाल सिंचाई योजना है, थार में व्यापक फसल क्षेत्रको बढ़ावा दिया। किंतु अब इस परियोजना के तहत बने कई सिंचित क्षेत्र अनुपजाऊ हो गए हैं,क्योंकि,इससे मरुस्थल की भूमि में जल-जमाव हो गया है और भूमि कृषि के लिए बहुत खारी हो गई है।
थार 13 मिलियन से अधिक मवेशियों, 24 मिलियन भैंसों, 9.7 मिलियन भेड़ों, 21 मिलियन बकरियों और 2.5 मिलियन ऊंटों के साथ भारत में कुछ सबसे बड़ी पशुधन आबादी का समर्थन करने के अलावा, विशिष्ट जीवजंतुओं और देशी मरुस्थलीय वनस्पति का समर्थन करता है। इन पारिस्थितिक तंत्रों की लचीली प्रकृति की समझ की कमी के कारण, इसकी सीमा में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण हुआ। इस तरह के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप यहां के प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र का बड़ी मात्रा में नुकसान हुआ। रेगिस्तान में हुई हरित क्रांति बड़े पैमाने पर शुष्क झाड़ियों वाले घास के मैदानों के रूप में सामने आई है, जो चरागाहों के रूप में भी आज नज़र आते है। किंतु अब चरवाहों की आजीविका को नुकसान होनेके साथ-साथ जानवरों और पौधों की कई प्रजातियाँ, जो ऐसी जलवायु के अनुकूल हो गई हैं, खतरे में हैं। यह प्रवृत्तिकुछ वर्षोंपहले हुए टिड्डियों के प्रकोप के रूप में देखी जा सकती है, क्योंकि वनस्पतियों की बड़ी मात्रा टिड्डियों के झुंड के लिए भोजन प्रदान करती है। संभावना है कियह रेगिस्तान भविष्य में दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे क्षेत्रों तक भी पहुँच सकता हैं।साथ ही, रेगिस्तान में पेड़ लगाना उतना ही बुरा माना जाता है, जितना कि किसी वर्षावन में पेड़ काटना क्योंकि यह रेगिस्तान के विशेष पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की मूल प्रकृति को बदल देता है।
हालांकि, पिछले कुछ दशकों में, थार रेगिस्तान के होने वाले विस्तार से निपटने के लिए कई अभूतपूर्व कदम उठाए गए है।आज आवश्यकता है किवृक्षारोपण गतिविधियों का उद्देश्य और पैमाना हमेशा वैज्ञानिक और विशिष्ट होना चाहिए।

संदर्भ
https://bit.ly/3MKHXMQ
https://bit.ly/3q2r4Em
https://bit.ly/3OtNdph

चित्र सन्दर्भ
1. हरे मैदान में खड़ी भेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (pixels)
2. रेगिस्तान में उगाए जा रहे पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
3. थार रेगिस्तान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. रेगिस्तान में पेड़ के नीचे खड़े ऊँटों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)