भारत में भाषाई, खान-पान और सांस्कृतिक विविधता के साथ-साथ, खेलों के क्षेत्र में भी बड़ी विविधताएँ नजर आ जाती हैं। यहां पर हर नए क्षेत्र में, कोई न कोई अनोखा और अद्वितीय खेल देखने को मिल जायेगा। मल्लखंब भी एक ऐसा ही अनोखा खेल है। यह एक प्राचीन खेल है, जिसके तहत एक सीधे खड़े खंबे पर चढ़कर करतब दिखाए जाते हैं। यह खेल वास्तव में युद्ध कौशल का ही एक रूप माना जाता है, जिसे मूल रूप से पहलवानों और योद्धाओं को प्रशिक्षण देने के लिए खेला जाता है। "मल्लखंब" शब्द का अर्थ "खंभे पर कुश्ती" होता है। प्राचीन समय में पहलवान और योद्धा अखाड़े या युद्ध के मैदान में, युद्ध कौशल में सुधार के लिए एक खंबे पर अभ्यास करते थे। हालांकि मल्लखंब की सटीक उत्पत्ति का पता लगाना कठिन है, लेकिन इसके उल्लेख प्राचीन भारतीय महाकाव्यों, और सदियों पुराने मिट्टी के ऐतिहासिक अवशेष में मिलते हैं। मल्लखंब का सबसे पहला लिखित उल्लेख 12वीं शताब्दी के एक ग्रंथ में मिला है। 1600 के दशक के अंत से 1800 के दशक के प्रारंभ तक, पेशवा की सेना के लिए एक सेहत प्रशिक्षक द्वारा इसे पुनर्जीवित किया गया। कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई और नाना साहब जैसी ऐतिहासिक विभूतियों ने भी मल्लखंब का अभ्यास किया था।
1936 के ओलंपिक (Olympics) के दौरान मल्लखंब, बर्लिन (Berlin) में भी लोकप्रिय हो गया क्योंकी तब इसे अन्य भारतीय खेलों के साथ प्रदर्शित किया गया था। यह 1958 में राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रतिस्पर्धी खेल बन गया, और 1962 में इससे जुड़ी पहली राष्ट्रीय चैंपियनशिप (National Championship) आयोजित की गई। मध्य प्रदेश राज्य ने 2013 में मलखंभ को अपना आधिकारिक खेल घोषित किया। आगरा जैसे शहरों में भी पेशेवर मल्लखंब खिलाडियों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। मल्लखम्ब को सभी खेलों का "गुरु" माना जाता है क्योंकि कहते है कि मल्लखम्ब कुश्ती, जिमनास्टिक (Gymnastics), तैराकी और अन्य खेलों के प्रदर्शन में सुधार करता है। यह संतुलन, लचीलेपन और लय में सुधार करता है, और गोलकीपिंग (Goalkeeping) जैसे कौशल भी सिखाता है। ऊपर दिए गए विडियो में आप हिमानी परब को देख सकते हैं, जो मल्लखंब में अच्छे प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला बनी।