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                                            इस्लामिक संस्कृति में इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला की लड़ाई के दौरान के हुई शहादत को,इस्लामिक इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक माना जाता है। इस लड़ाई ने पूरे इस्लामिक समाज में अपनी गहरी छाप छोड़ी। आज के समय में भी इस लड़ाई की अहमियत को काबिज रखने के लिए सुन्नी मुसलमान हजरत-इमाम-हुसेन की कब्र के प्रतीक रूप में "ताज़िया " बनाते है।
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का दूसरा सबसे पवित्र महीना है और यह इस्लामिक नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी है। मुहर्रम इस्लाम के चार पवित्र महीनों में से एक है, और इस दौरान युद्ध करना सख्त वर्जित होता है।  "मुहर्रम" शब्द का अर्थ “निषिद्ध” होता है। कर्बला की लड़ाई, इसी दिन 61 हिजरी (680 ई.) में हुई थी। 
कर्बला की लड़ाई सीरिया के तत्कालीन शासक यज़ीद की सेना के खिलाफ लड़ी गई थी।  इस दिन शिया मुसलमान हुसैन इब्न अली और उनके परिवार की शहादत का शोक मनाते हैं। इस समय के दौरान, शिया मुसलमान शोक और प्रार्थना करने के लिए स्मारक सभाएं आयोजित करते हैं। कुछ लोग स्मरण और एकजुटता के संकेत के रूप में संयम से खाना खाते हैं या बिल्कुल नहीं खाते हैं।
सुन्नी इस्लाम में, आशूरा के दिन उपवास करना पैगंबर मुहम्मद द्वारा मूसा द्वारा लाल सागर को विभाजित करने के उपलक्ष्य में स्थापित एक प्रथा से जुड़ा है। इस्लामिक कैलेंडर चंद्र आधारित होता है, इसलिए मुहर्रम का समय हर साल बदलता रहता है। मुहर्रम के दौरान पहले दिन से नौवें दिन तक लोग अपने घरों में इमाम हुसैन के मकबरे की प्रतिकृति, ला सकते हैं। इसे‘‘ताज़िया” कहा जाता है।  फिर, आशूरा के दसवें दिन, इमाम हुसैन की शहादत का सम्मान करने के लिए ताज़िया दफना दिया जाता है।
ताज़िया कर्बला की दुखद त्रासदी को दर्शाता है। मुहर्रम के दौरान इसे इमामबाड़े के अंदर रखा जाता है, जो विशेष रूप से मुहर्रम के लिए बनाया गया स्थान होता है। लोगों के शोक मनाने के लिए इमामबाड़े को फूलों और इत्र से सजाया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग ढोल नगाड़ों और “या हुसैन” के नारे के साथ जुलूस में ताज़िया लेकर निकलते हैं। यह शोक की शुरुआत का प्रतीक है। ताज़िया बनाना भी एक रचनात्मक प्रक्रिया होती है, जिसमें रंगीन कागज, फूल, रोशनी और दर्पण का प्रयोग किया जाता है। इस जुलूस में ऊंट, हाथी और घोड़े जैसे जानवर भी शामिल होते हैं।
मुहर्रम समारोह के दौरान ताज़िया मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। विभिन्न रूपों और प्रकारों में बनी यह महत्वपूर्ण प्रतिकृति, पैगंबर मुहम्मद के अजीज पोते इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतिनिधित्व करती है।  मुहर्रम के पहले दिन से लेकर नौवें दिन तक पुरुष, महिलाएं और बच्चे सावधानीपूर्वक ताज़िया को अपने साथ रखते हैं। मुहर्रम के दसवें दिन, जिसे आशूरा के नाम से जाना जाता है, ताज़िये को सम्मान पूर्वक दफनाया जाता है।
"ताज़िया" शब्द अरबी शब्द "अज़ा" से आया है, जिसका अर्थ है मृतकों को याद करना। अज़ादारी, (ताज़िया के इर्द-गिर्द एक प्रथा है), कर्बला के शहीदों के प्रति सम्मान दिखाने का एक तरीका है, जिन्हें युद्ध में मारे जाने के बाद दफनाया नहीं गया था। सुन्नी परंपरा में ताज़िया शब्द प्रचलित है, जबकि शिया परंपरा में मकबरे के लिए ताज़िया और ज़रीह दोनों का प्रयोग किया जाता है।
 ताज़िया न केवल धार्मिकता का प्रतीक होती है, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी देखने लायक होता है। यह उन कारीगरों को आर्थिक लाभ प्रदान करता है, जो जटिल विवरण के साथ इन प्रतिकृतियों को सावधानीपूर्वक बनाते हैं। ताज़िया बनाने की कला पीढ़ियों से चली आ रही है, जो कारीगरों के समर्पण और कौशल का प्रमाण बनी हुई है। मुस्लिम समुदाय के लोग ढोल-नगाड़ों के साथ “या हुसैन” के नारे लगाते हुए ताज़िया के साथ जुलूस निकालते हैं। ताज़िया का आगमन मातम शुरू होने का संकेत होता है।
मुहर्रम के दौरान, महिलाएं भी मुख्य रूप से अजाखाने में शोक अनुष्ठान करती हैं।जबकि, पुरुष इमामबाड़ों (सभा के स्थान) में जुलूस और सभा में भाग लेते हैं।
  हालांकि, भारत में ताज़िया की उत्पत्ति का इतिहास आज भी इतिहासकारों के बीच बहस का विषय है। लेकिन, कुछ लोग इसकी शुरुआत का श्रेय तैमूर को देते हैं, जो इसे अपनी भारत विजय के दौरान यहां लाया था। कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि, तैमूर ने दिल्ली में अपने शिविर के दौरान ताज़िया की शुरुआत की, जबकि अन्य का मानना है कि यह दक्षिण एशिया में कहीं और शुरू हुआ। भारत में हुमायूँ के शासनकाल के दौरान ताज़िया जुलूस लोकप्रिय हो गया। दूसरों का तर्क है कि, इसकी लोकप्रियता मुगल काल के दौरान अवध के नवाबों के शासनकाल के दौरान बढ़ गई थी।ताज़िया का निर्माण इस्लामी और हिंदू कलात्मक परंपराओं के मिश्रण को भी दर्शाता है।
 
  
  
 संदर्भ  
 https://tinyurl.com/mr4y2jxx  
https://tinyurl.com/48e6p2b4  
https://tinyurl.com/4fhbexcb  
  
चित्र संदर्भ  
1. मुहर्रम के जुलूस में ताजिया को दर्शाता चित्रण (wikimedia)  
2. मुहर्रम के जुलूस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)  
3. मुहर्रम के शोक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)  
4. ताजिया को दर्शाता चित्रण (wikimedia)  
5. ताजिया के पास बैठकर मनाए जा रहे शोक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)