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                                             जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के साथ ही हमारे जीवन में पेड़-पौंधों की अहमियत भी बढ़ गई है। ऐसे में पेड़-पौंधो के वर्गीकरण से जुड़ी जानकरी होना हम सभी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। इस वर्गीकरण को समझकर आप यह जान पाएंगे कि आपके क्षेत्र के हिसाब से कौन सा पेड़ लगाना सबसे अच्छा विकल्प साबित होगा?
पेड़ों-पौधों और झाड़ियों को अलग-अलग तरीकों से समूहीकृत किया जा सकता है, लेकिन इनके वर्गीकरण का सबसे उपयोगी तरीका उनके विकासवादी इतिहास पर नजर डालना है। यानी ये समझना कि ये पेड़-पौंधे समय के साथ कैसे विकसित हुए हैं। 
वर्गीकरण (Classification) या समूहन हमें किसी पौधे की विशेषताओं और उनसे होने वाले लाभों का अनुमान लगाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी झाड़ी में मटर के जैसे फूल और बीज की फली दिखाई देती हैं, तो हम अनुमान लगा सकते हैं कि यह झाड़ी संभवतः फलियां परिवार (Legume Family) का हिस्सा हो सकती हैं। अधिकांश पेड़ और झाड़ियां, फूल वाले पौधे (Flowering Plants) का हिस्सा होते हैं, जिनके फलों में बीज लगे होते हैं। दुनियाभर में तकरीबन 300,000 से अधिक प्रकार के फूल वाले पौधे हैं, और आधे से अधिक संभवतः पेड़ या झाड़ियाँ ही हैं।  ये पौधे एक बड़े समूह से संबंधित हैं, जो तकरीबन 140 मिलियन वर्ष पहले प्रकट हुए थे। जीवविज्ञानी इस समूह को "एंजियोस्पर्म (Angiosperms)" कहते हैं। एंजियोस्पर्म के बीज इनके फलों के अंदर होते हैं और उन्हें प्रजनन में मदद के लिए तितलियों, मधुमक्खियों जैसे कीड़ों की आवश्यकता होती है।  फूल वाले पौधों (एंजियोस्पर्म) में, डाइकोटाइलडॉन और मोनोकोटाइलडॉन (Dicotyledons And Monocotyledons) नामक दो मुख्य वर्ग होते हैं, और इनमें अधिकांश काष्ठीय पौधे द्विबीजपत्री होते हैं। 
एंजियोस्पर्म अनेक स्थानों पर पाए जाते हैं और इनकी लगभग 2,50,000 विभिन्न प्रजातियाँ हैं। एंजियोस्पर्म के कुछ उदाहरण आम, सेब, केला जैसे फलों के पेड़ और चावल और गेहूं जैसे अनाज भी हैं। फूल इन पौधों को नए बीज बनाने में मदद करते हैं और मधुमक्खियां इस प्रक्रिया में कुछ सहायक होती हैं।
इसके अलावा जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) नामक एक दूसरा प्रमुख समूह भी है, जिसमे कोलोराडो ब्लू स्प्रूस (Colorado Blue Spruce) जैसे शंकुनुमा पेड़ आते हैं, जो कि लगभग 180 मिलियन वर्षों से हमारे बीच मौजूद हैं। लेकिन अब दुनिया के गर्म हिस्सों में इनकी केवल लगभग 200 प्रजातियाँ ही बची हैं। जिम्नोस्पर्म को कुछ लोग "डायनासोर का भोजन" भी कहते हैं क्योंकि इन्हें डायनासोर खाते थे। जिम्नोस्पर्म ऐसे पौधे होते हैं, जिनके बीज बिना किसी ठोस आवरण के होते हैं। ये बीज एंजियोस्पर्म की तरह संरक्षित नहीं माने जाते हैं। जिम्नोस्पर्म एंजियोस्पर्म से पुराने माने जाते हैं। इसके अलावा इफेड्रा, गनेटम और वेल्वित्चिया (Ephedra, Gnetum And Welwitschia) नामक तीन और छोटे समूह भी हैं, जिन्हें पहले जिम्नोस्पर्म ही माना जाता था, लेकिन उनके अणुओं के अध्ययन से मिले नए सबूतों से पता चलता है कि वे वास्तव में अलग-अलग शाखाएँ हैं जो जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म के सामान्य पूर्वज से अलग हो गए हैं। 
एंजियोस्पर्म और जिम्नोस्पर्म में कुछ चीजें समान नजर आती हैं। लेकिन इनमें कई बड़े अंतर भी देखे जा सकते हैं जैसे एंजियोस्पर्म में जिम्नोस्पर्म की तुलना में अधिक विविधता होती है। इसका मतलब है कि एंजियोस्पर्म भूमि पर अधिक स्थानों पर पाए जाते हैं।  
आइए एंजियोस्पर्म और जिम्नोस्पर्म के बीच मुख्य अंतर देखें:
एंजियोस्पर्म:
- ये ऐसे पौधे हैं जो फलों या परिपक्व अंडाशय के अंदर बीज पैदा करते हैं।
- उनका एक जीवन चक्र होता है जो मौसम के साथ बदलता रहता है।
- पत्तियाँ सामान्यतः चपटी होती हैं।
- इनमें सख्त लकड़ी होती है।
- वे प्रजनन में मदद के लिए जानवरों और हवा पर निर्भर रहते हैं।
- इनके प्रजनन अंग फूलों में होते हैं.
एंजियोस्पर्म के कुछ उदाहरण आम, सेब, केला जैसे फलों के पेड़ और गुलाब, लिली और कई अन्य फूल हैं। यहां तक कि चावल, मक्का और गेहूं जैसे अनाज भी एंजियोस्पर्म समूह में गिने जाते हैं।
जिम्नोस्पर्म:
- ये ऐसे पौधे हैं जो बिना ढके बीज बनाते हैं।
- ये पौंधे सदाबहार होते हैं।
- इनकी पत्तियाँ तराजू या सुई की तरह हो सकती हैं।
- इनके तने नरम लकड़ी के होते है।
- वे प्रजनन के लिए मुख्य रूप से हवा का उपयोग करते हैं।
- इनके प्रजनन अंग शंकु में होते हैं।
जिम्नोस्पर्म के कुछ उदाहरण देवदार के पेड़, स्प्रूस और साइकैड्स (Pine Trees, Spruce And Cycads) हो सकते हैं। हमारे आसपास जिम्नोस्पर्म समूह के पौंधों की संख्या कम होती है, जिसका प्रमुख कारण यह है कि उनके बीजों को सुरक्षा नहीं मिलती है। गिरने के बाद उन्हें तुरंत जमीन में समा जाना पड़ता है, अन्यथा जानवरों या खराब मौसम के कारण ये खराब हो जाते हैं। हालांकि जिम्नोस्पर्म न केवल अपने स्वरूप के लिए दिलचस्प हैं, बल्कि वे मनुष्यों के लिए भी उपयोगी हैं। हम उनका उपयोग लकड़ी, लकड़ी के गूदे, राल और यहां तक कि भोजन और दवा के रूप में भी करते हैं। 
2019 में, भारत में 18,600 से अधिक प्रकार के एंजियोस्पर्म की खोज की गई थी। यह संख्या 2013 के बाद से काफी बढ़ी है। इनमें से  4,000 से अधिक पौधे केवल भारत में पाए जाते हैं, और हम उन्हें "स्थानिक प्रजातियाँ" कहते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि इनमें से एक हजार से अधिक पौधे खतरे में हैं, जिसका मतलब है कि अगर हम उनकी देखभाल नहीं करेंगे तो वे लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाएंगे।
संदर्भ 
https://tinyurl.com/bddy64c7
https://tinyurl.com/4ynyda9j
https://tinyurl.com/3xam2xme
https://tinyurl.com/2v48thf4
https://tinyurl.com/r2ncmzvk
https://tinyurl.com/j2yf6ne4
चित्र संदर्भ
1. जंगल में पेड़ों को दर्शाता चित्रण (Unsplash)
2. अलग-अलग पेड़ों और उनके रंगो को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
3. डाइकोटाइलडॉन और मोनोकोटाइलडॉन को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
4. एंजियोस्पर्म को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
5. जिम्नोस्पर्म को दर्शाता चित्रण (PICRYL)