पकी हुई मिट्टी से निर्मित वो मंदिर जो आज सदियों बाद भी खड़े हैं!

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
29-08-2023 10:01 AM
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पकी हुई मिट्टी से निर्मित वो मंदिर जो आज सदियों बाद भी खड़े हैं!

प्राचीन भारत में मंदिर शिक्षा का केंद्र हुआ करते थे और सदियों में अर्जित किये गए ज्ञान का प्रसार करते थे। चूंकि, मंदिरों के पास प्रचुरता से धन उपलब्ध होता था, इसलिए मंदिरों ने जरूरतमंद लोगों के लिए बैंक के रूप में भी काम किया और आसान ऋण की पेशकश की। मंदिर के अन्न भंडार ने भूखों और उन लोगों को खाना भी खिलाया जो बीमारी के कारण कोई भी काम नहीं कर सकते थे। यहां तक कि मंदिरों में अस्पताल भी हुआ करते थे। अदालतों की तरह अनगिनत विवादों का निपटारा मंदिरों में ही किया जाता था। युद्धों के दौरान लोगों को मंदिरों में शरण मिलती थी। मंदिर लंबे समय तक समाज के केंद्र में रहे। मंदिरों की मजबूत संरचनाओं में पत्थर से लेकर टेराकोटा (Terracotta) जैसी कई सामग्रियों का प्रयोग किया गया, मंदिर के क्षेत्र के आसपास आसानी से उपलब्ध होते थे। धार्मिक और अन्य संरचनाओं के निर्माण में मिट्टी का उपयोग बहुत लंबे समय से किया जाता आ रहा है, और यह सबसे पुरानी निर्माण सामग्रियों में से एक है। आगे चलकर चीज़ों को लंबे समय तक टिकाए रखने के लिए, लोगों ने पकी हुई मिट्टी या टेराकोटा का उपयोग करना शुरू कर दिया। यह वजन में हल्की होती है और इमारतों के लिए अच्छी मानी जाती है। पश्चिम बंगाल में, टेराकोटा मंदिर 16वीं से 19वीं शताब्दी तक कृष्ण भक्ति आंदोलन के दौरान बहुत लोकप्रिय हो गए। ये मंदिर अपनी अनूठी छत शैलियों और दीवारों तथा स्तंभों पर टेराकोटा डिजाइन के लिए जाने जाते हैं। प्राचीन समय में, वास्तुकार और शिल्पकार कहानियों को बताने, मिथकों और अनुभवों को चित्रित करने के लिए पकी हुई मिट्टी की टाइलों का उपयोग करते थे।
इसके पहले पश्चिम बंगाल में अधिकांश मंदिर पत्थर के बने होते थे, लेकिन बाद में, मिट्टी अधिक लोकप्रिय हो गई, क्योंकि यह उस क्षेत्र में यह आसानी से मिल जाती है। टेराकोटा का उपयोग बर्तनों और खिलौनों जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं से शुरू हुआ और फिर 15वीं-16वीं शताब्दी के आसपास यह मंदिर बनाने में भी उपयोगी साबित हुआ। चलिए एक नजर डालते हैं, भारत के कुछ प्रसिद्ध टेराकोटा मंदिरों पर:
1) इंद्रलाथ मंदिर, रानीपुर, झरियल: ईंटों से बना यह ऊंचा मंदिर बलुआ पत्थर के आधार सहित 80 फीट ऊंचा है। अंदर, आपको एक लिंग, भगवान विष्णु, कार्तिकेय और उमा-महेश्वर की मूर्तियां मिलेंगी। यह भगवान शिव को समर्पित है, और ऐसा माना जाता है कि यहीं पर राजा इंद्र ने सबसे पहले भगवान शिव की पूजा की थी। ओडिशा के इंद्रलाथ मंदिर को भारत में टेराकोटा मंदिरों के एक उत्कृष्ट उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। यह मंदिर भारत के सबसे ऊंचे टेराकोटा मंदिरों में से एक है। मंदिर का ऊपरी भाग, आंतरिक कक्ष के ऊपर, ओडिशा की ‘रेखा देउल’ शैली में है। 2) मदन मोहन मंदिर, विष्णुपुर: 1694 ई. में राजा दुर्जन सिंह द्वारा निर्मित यह मंदिर विष्णुपुर के अन्य सभी मंदिरों से बड़ा है। इसका आधार वर्गाकार और छत बंगाली शैली की है। मुखौटे पर टेराकोटा पट्टिकाएँ महाकाव्यों और कृष्ण लीला की कहानियों को दर्शाती हैं। 3) जोर बांग्ला मंदिर, विष्णुपुर : पश्चिम बंगाल का विष्णुपुर , (जो कभी मल्ल शासकों की राजधानी हुआ करता था।), भी अपनी संस्कृति और टेराकोटा कला के लिए जाना जाता है। यहां के कृष्ण राय मंदिर को अपने निर्माण में टेराकोटा के प्रयोग के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है। यह दो झोपड़ी जैसी संरचनाओं को एक साथ जोड़कर बनाया गया है। इसकी दीवारें महाकाव्यों, कृष्ण लीला, शिकार और दैनिक जीवन के दृश्य दिखाती हैं। 4) लालजी मंदिर, कालना: 1739 ई. में निर्मित यह मंदिर अपने चमकीले पीले "गरुड़" और इसके आधार पर चित्रित पुराणों के दृश्यों के लिए जाना जाता है। पश्चिम बंगाल के कालना में 18वीं शताब्दी का लालजी मंदिर भले ही बहुत प्रसिद्ध नहीं है लेकिन इसमें 25 मीनारें और विस्तृत टेराकोटा पैनलों का प्रयोग किया गया है। 5) निबिया खेड़ा मंदिर, भदवाड़ा: 9वीं-10वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर "पंचायतन" शैली का अनुसरण करता है। यहां के केंद्रीय मंदिर में एक शिवलिंग है, और सहायक मंदिरों की डिजाइन भी अद्वितीय हैं। 6) श्याम राय मंदिर, विष्णुपुर: 1643 ई. में निर्मित यह मंदिर एक अद्वितीय छत वाले चबूतरे पर खड़ा है। इसकी दीवारें कृष्ण लीला, रामायण, महाभारत और दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाने वाली टेराकोटा की मूर्तियों से भरी पड़ी हैं।
इसके अलावा हमारे मेरठ से केवल 8 घंटे की दूरी पर कानपुर के भीतरगांव को भी एक पुराने हिंदू मंदिर के लिए जाना जाता है, जो गुप्त साम्राज्य के समय में बना भारत का सबसे बड़ा ईंट मंदिर है। इसे लगभग 5वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था। भीतरगांव मंदिर एक ईंट की इमारत है जिसमें सीढ़ियाँ हैं और सामने एक टेराकोटा का पैनल है। इसका निर्माण गुप्त काल के दौरान 5वीं शताब्दी के आसपास हुआ था, और यह ईंट और टेराकोटा से बना सबसे पुराना हिंदू मंदिर है। हमारे मेरठ में भी कई मंदिर हैं, जो प्राचीन भारतीय निर्माण शैली और भारत की समृद्ध ऐतिहासिकता का प्रदर्शन करते हैं:
1. काली पलटन मंदिर: औघड़नाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाने वाला यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि यहां का शिवलिंग स्वयंभू है यानि कि स्वयं ही उभरा है, किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया गया है।
पता: औघड़नाथ मंदिर, मेरठ छावनी, मेरठ-250001
2. मनसा देवी मंदिर: लगभग 40 साल पहले बना यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। यह नवरात्रि के दौरान एक लोकप्रिय स्थान बन जाता है। पता: मनसा देवी मंदिर, जागृति विहार, खेरखौदा, मेरठ
3. देवी महामाया मंदिर: मोदीनगर के सीकरी खुर्द में स्थित यह एक प्राचीन मंदिर हैं। इसने 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका निभाई थी। नवरात्रि के दौरान एक वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है।
पता: देवी महामाया मंदिर, सीकरी खुर्द, मोदीनगर, मेरठ
4.शिव दुर्गा मंदिर: 1981 में नव उद्घाटित किया गया यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है।
पता: शिव दुर्गा मंदिर, ब्रह्मपुरी मेरठ-250002
5. लक्ष्मी नारायण मंदिर: मोदीनगर में 15 एकड़ में फैला यह मंदिर भगवान लक्ष्मी नारायण को समर्पित है। पता: लक्ष्मी नारायण मंदिर, मोदीनगर, मेरठ-201204

संदर्भ
https://tinyurl.com/2p8hy4hp
https://tinyurl.com/47ws2h24
https://tinyurl.com/3ddb7fb8
https://tinyurl.com/yxcthvhc
https://tinyurl.com/yxcthvhc
https://tinyurl.com/p5j953jk
https://tinyurl.com/37r3xpp4

चित्र संदर्भ
1. जोर-बांग्ला मंदिर, बिष्णुपुर को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. बिष्णुपुर में टेराकोटा के मंदिरों के समूह को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. इंद्रलाथ मंदिर, रानीपुर, झरियल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. मदन मोहन मंदिर, विष्णुपुर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. जोर बांग्ला मंदिर, विष्णुपुर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. लालजी मंदिर, कालना को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. निबिया खेड़ा मंदिर, भदवाड़ा को दर्शाता चित्रण (youtube)
8. श्याम राय मंदिर, विष्णुपुर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
9. उत्तर प्रदेश के भीतरगांव में हिंदू मंदिर में टेराकोटा के शिखर को दर्शाता चित्रण (worldhistory)