समय - सीमा 277
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1034
मानव और उनके आविष्कार 813
भूगोल 249
जीव-जंतु 303
| Post Viewership from Post Date to 16- Oct-2023 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2347 | 472 | 0 | 2819 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
                                             प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस का प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है। हमारे देश में देवी-देवताओं और मनुष्य को तो छोड़िए, पशु पक्षियों के साथ-साथ पेड़-पौंधों को भी पूजनीय माना जाता है। ऐसा ही एक वृक्ष जिसे हिंदू और बौद्ध, दोनों धर्मों में बेहद पवित्र माना जाता है, वह है शिव लिंग वृक्ष। इस वृक्ष को भारत के कई शिव मंदिरों में आसानी से देखा जा सकता है। यह वृक्ष श्रीलंका (Sri Lanka) और थाईलैंड (Thailand) के बौद्ध मठों में भी पाया जाता है। शिवलिंग वृक्ष को नागलिंग वृक्ष भी कहा जाता है। 
हिंदू धर्म में नागलिंग को एक पवित्र वृक्ष के रूप में पूजा जाता है  क्योंकि इस वृक्ष पर लगने वाले फूलों की पंखुड़ियाँ नाग के फन के आकार जैसी होती हैं जो शिव लिंगम की रक्षा करता है। 
शिव लिंग के फूल  को हिंदी में शिव कमल या कैलाशपति भी कहा जाता है। इसी तरह तमिल में इसे नागलिंगम, कन्नड़ में नागलिंग पुष्प और तेलुगु में नागमल्ली या मल्लिकार्जुन फूल के नाम से जाना जाता है। शैव समुदाय के बीच इस वृक्ष के फूल अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। इन्हें “महादेव के पुष्प” भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इस वृक्ष को ‘कैननबॉल ट्री’ (Cannonball tree) के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके फल तोप के गोले के आकार के होते हैं। 
कैननबॉल पेड़ का वैज्ञानिक नाम कौरोपिटा गियानेंसिस (Cauropita guianensis) है। यह मूलतः मध्य और दक्षिण अमेरिका (America) के उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाया जाता है। अपने सुंदर, सुगंधित फूलों और बड़े ही दिलचस्प फलों के कारण, दुनिया भर के कई अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसकी खेती भी की जाती है। कौरोपिटा गियानेंसिस का कई देशो में औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है। नागलिंगम के पेड़ में एंटीबायोटिक (Antibiotic), एंटीफंगल (antifungal), एंटीसेप्टिक (antiseptic) और एनाल्जेसिक (analgesic) गुण होते हैं। 
इसका उपयोग उच्च रक्तचाप, ट्यूमर, दर्द और सूजन, सामान्य सर्दी, पेट दर्द, त्वचा रोग और घाव, मलेरिया और दांत दर्द के इलाज के लिए किया जाता है।
कौरोपिटा गियानेंसिस का पेड़ 35 मीटर (110फुट) तक की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। इसकी पत्तियाँ शाखाओं के सिरों पर गुच्छों के रूप में होती हैं, आमतौर पर यह 8 से 31 सेंटीमीटर (Centimeter) तक लंबी होती हैं, लेकिन कभी-कभी इनकी लंबाई 57 सेंटीमीटर तक भी पहुँच सकती हैं। इसके फूल लंबे गुच्छों में उगते हैं।  इनका व्यास 6 सेंटीमीटर तक होता है, और इनमें छह पंखुड़ियाँ होती हैं। कुछ पेड़ों पर प्रचुर मात्रा में फूल उगते हैं और एक पेड़ पर प्रतिदिन 1000 से अधिक फूल उग सकते हैं। इन फूलों की सुगंध तीव्र होती है। यह सुगंध रात में बढ़ जाती है और सुबह होने तक बनी रहती है।  प्रत्येक फूल में ६ पंखुड़ियां होती हैं ।
 ये फूल चमकीले रंग के होते हैं और उनकी पंखुड़ियाँ आधार के पास गुलाबी और लाल रंग से लेकर सिरों की ओर पीले रंग की होती हैं। वहीं इस पेड़ पर उगने वाले फल गोलाकार होते हैं और 25 सेंटीमीटर तक के व्यास के होते हैं। इन्ही फलों के कारण इस प्रजाति को “कैननबॉल ट्री" के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इन फलों को खाया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर लोग इन्हें खाने से बचते हैं, क्योंकि इसके सुगंधित फूलों के विपरीत, इसके फलों की गंध अप्रिय होती है।
इसके अलावा, इसकी पत्तियों के रस का उपयोग बालों के विकास और बालों को झड़ने से रोकने के लिए भी किया जाता है। वैज्ञानिकों ने भी यह प्रमाणित किया है कि इस पेड़ में रोगाणुरोधी गुण भी होते हैं। इसकी पत्तियों से बने रस का उपयोग त्वचा रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है, तो वहीं इसके फल, शरीर पर लगे घावों को कीटाणुरहित कर सकते हैं। चूंकि इसके फलों की गंध अप्रिय होती है,  इसलिए इसे त्वचा या कपड़ों पर रगड़कर, कीट प्रतिरोधी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
कौरोपिटा गियानेंसिस के पौधे को अच्छी तरह से उगने के लिए गर्म, आर्द्र वातावरण की आवश्यकता होती है। इसके सही विकास के लिए दिन में कम से कम छह घंटे से अधिक समय तक धूप उपलब्ध होनी चाहिए। इसके उगने के लिए आवश्यक तापमान 25 से 35°C के बीच होना चाहिए। यह पेड़ 6.0 से 7.0 पीएच (pH) और जैविक सामग्री से भरपूर नम मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगता है। गर्मियों में पौधे को प्रचुर पानी की आवश्यकता पड़ती है, तो वहीं सर्दियों और बरसात के मौसम में इसे कम पानी की  आवश्यकता पड़ती है।
 इसके फलों को पकने या पूरी तरह से परिपक्व होने में एक वर्ष का समय लगता है। हालाँकि, कुछ जगहों पर इसमें 18 महीने तक का समय लग सकता है। इसे उगाने के लिए इसके बीजों को रोपित किया जा सकता है। हालांकि, इसके बीजों का जीवनकाल और व्यवहार्यता कम होता है, इसलिए यह विधि अधिक लोकप्रिय नहीं है। वहीं इसको उगाने के लिए इसकी दूसरी और अधिक प्रभावी विधि के रूप में आप पौधे के ताज़े तने को काटकर एक कंटेनर (container) में उगा सकते हैं। आप इसकी कटिंग को सीधे मिट्टी में भी लगा सकते हैं। यह दूसरी विधि काफी लोकप्रिय है और विशेषज्ञों द्वारा प्रमाणित भी है।
संदर्भ 
https://tinyurl.com/3rphxuat
https://tinyurl.com/325ymjeh
https://tinyurl.com/u7m27xwy
चित्र संदर्भ 
1. शिव लिंग वृक्ष के फूल को दर्शाता एक चित्रण (pxfuel)
2. फूलों से सजे कैननबॉल ट्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कैननबॉल ट्री के फलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शिव लिंग वृक्ष के खिले हुए फूलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. शिव लिंग पर चढ़े हुए फूलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ऊँचे कैननबॉल ट्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)