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  आपने महाभारत में वर्णित “सावित्री” से जुड़ी किवदंती अवश्य सुनी होगी। इस कहानी में सावित्री, मृत्यु के देवता ‘यमराज’ को अपने मृत पति के प्राण वापस लौटाने पर विवश कर देती । लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह किवदंती भारत के अलावा यहां से सुदूर बसे अमेरिका (America) और यूरोप (Europe) में भी ओपेरा (Opera) के रूप में प्रचलित है।  
दरअसल, पश्चिम में गुस्ताव होल्स्ट (Gustav Holst) द्वारा रचित ‘सावित्री' नामक एक लघु ओपेरा बहुत प्रचलित है। यह ओपेरा पूरी तरह से महाभारत में वर्णित सावित्री से जुड़ी किंवदंती पर आधारित है। इसे पहली बार 1916 में  वेलिंग्टन हॉल, लंदन (Wellington Hall, London) में प्रदर्शित किया गया था। इसे मुख्यतः तीन गायकों और 12 संगीतकारों के साथ एक चैम्बर ऑर्केस्ट्रा टीम (Chamber Orchestra Team) द्वारा प्रदर्शित किया गया था। गुस्ताव होल्स्ट एक अंग्रेजी संगीतकार और शिक्षक थे।
 वह अपनी आर्केस्ट्रा रचना “द प्लैनेट्स” (The Planets) के निर्माण के लिए भी खूब चर्चा में रहे थे। हालाँकि, उन्होंने विभिन्न शैलियों में कई अन्य रचनाएँ भी लिखीं। उनका संगीत रिचर्ड वैगनर (Richard Wagner),  रिचर्ड स्ट्रॉस (Richard Strauss) और मौरिस रवेल (Maurice Ravel) जैसे आधुनिक संगीतकारों के साथ-साथ अंग्रेजी लोक गीतों से भी प्रभावित नजर आता है। होल्स्ट ने “सावित्री” से पहले भी कई ओपेरा लिखे थे, लेकिन इसे उनका सबसे प्रसिद्ध ओपेरा माना जाता है। सावित्री को पहली बार शौकिया प्रदर्शन के तौर पर प्रदर्शित किया गया था। वहीं इसका पेशेवर प्रदर्शन पहली बार 23 जून 1921 को लन्दन के लिरिक थिएटर (Lyric Theatre), हैमरस्मिथ (Hammersmith) में किया गया था जिसका संचालन ‘आर्थर ब्लिस’ (Arthur Bliss) द्वारा किया गया था। होल्स्ट द्वारा सावित्री को ओपेरा के रूप में चुने जाने के कई कारण हो सकते हैं। 
सावित्री की कहानी को प्रतीकात्मक रूप से “आत्मा की अमरता की यात्रा की कहानी के रूप में दर्शाया जा सकता है।” क्योंकि सावित्री दिव्य चेतना का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि सत्यवान मानव आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। यम मृत्यु या अज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आत्मा को उसके दिव्य स्रोत से अलग करते हैं। यम पर सावित्री की विजय मृत्यु पर आत्मा की विजय और उसकी अमरता की प्राप्ति का प्रतिनिधित्व करती है। सावित्री की कहानी हमें आशा की किरण और परिवर्तन का संदेश देती है। यह दर्शाती है कि मृत्यु के सामने भी जीत और नवीनीकरण की संभावना हमेशा बनी रहती है। यह कहानी हमें प्रेम, भक्ति और दृढ़ता का महत्व भी सिखाती है।
 सावित्री ओपेरा को इसके सुंदर संगीत और प्रेम, मृत्यु तथा मानव आत्मा जैसे विषयों की खोज के लिए खूब सराहा जाता है। सावित्री के मंत्रमुग्ध कर देने वाले ओपेरा मंचन को आप नीचे दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके  भी देख सकते हैं:
चूंकि होल्स्ट एक पेशेवर संगीतकार परिवार में ही जन्मे थे, इसलिए उन्होंने छोटी उम्र में ही संगीत का अध्ययन करना शुरू कर दिया था। वह एक पियानोवादक बनना चाहते थे, लेकिन होल्स्ट के स्वास्थ्य ने उनके संगीत भविष्य में निर्णायक भूमिका निभाई, अपने अस्थमा और खराब दृष्टि के अलावा वह न्यूरिटिस (neuritis) से पीड़ित थे, जिसके कारण उनका यह सपना अधूरा रह गया। इसके बाद उन्होंने संगीत की रचना की ओर रुख किया और लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक (Royal College Of Music, London) में संगीत का अध्ययन किया। स्नातक होने के बाद, होल्स्ट ने पेशेवर रूप से ट्रॉम्बोन (Trombone) बजाना और पढ़ाना भी शुरू कर दिया। वह एक महान शिक्षक बने और उन्होंने कई संगीत समारोहों में भी हिस्सा लिया ।
हालांकि, होल्स्ट ने 20वीं सदी की शुरुआत में ही संगीत की दुनिया में कदम रख दिया था, लेकिन उन्हें वास्तविक लोकप्रियता प्रथम विश्व युद्ध के बाद मिली जब उनकी ऑर्केस्ट्रा रचना “द प्लैनेट्स" ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही बटोरनी शुरू की। हालांकि, बाद के वर्षों में, होल्स्ट का संगीत कम लोकप्रिय हो गया। कई संगीत प्रेमियों द्वारा उनकी संगीत शैली को बहुत ही संयमित माना जाता था।  
गुस्ताव होल्स्ट द्वारा रचित चैम्बर ओपेरा “सावित्री", प्रेम की मृत्यु पर विजय जैसे विषय पर आधारित अपने आप में सबसे अनूठा मंचन माना जाता है। इस ओपेरा की मुख्य पात्र ‘सावित्री’ एक महिला है, जो मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को वापिस मांगकर उन्हें उसके पति को फिर से जीवित करने पर मजबूर कर देती है। यह पूरा ओपेरा तीन पात्रों (सावित्री, सत्यवान और मृत्यु) पर केन्द्रित है। होल्स्ट, जो अपनी ज्योतिषीय स्वर कविताओं “द प्लैनेट्स" के लिए जाने जाते हैं, ने “सावित्री" में भारतीय संगीत की नकल करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उन्होंने इस ओपेरा का संगीत विक्टोरियन शैली (Victorian Style) में रचा है। उनके ओपेरा कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति से प्रभावित रचनाएं भी प्रस्तुत की गईं थी। इस ओपेरा के दौरान अंधेरे सभागार के पीछे से मृत्यु द्वारा गाए जा रहे आरंभिक कोरस (Chorus) शब्द हर किसी को चौकन्ना कर देते हैं: 
“सावित्री, सावित्री, मैं मृत्यु हूं। मैं वह कानून हूं जिसे कोई भी व्यक्ति नहीं तोड़ सकता... मैं वह द्वार हूं जो सभी के लिए खुलता है।" इस ओपेरा को आलोचकों द्वारा भी खूब सराहा गया।
गुस्ताव होल्स्ट अध्यात्मविद्या (Theosophy) में भी काफी रुचि रखते थे। अध्यात्मविद्या एक ऐसा दर्शन है, जो धर्म, दर्शन और विज्ञान के तत्वों को आपस में जोड़ता है। क्लिफोर्ड बैक्स (Clifford Bax), जी.आर.एस. मीड (G. R. S. Mead) और ज्योतिषी एलन लियो (Alan Leo) जैसे कई अध्यात्मविद्यावादी उनके मित्र थे और उनका संगीत भी अध्यात्मविद्या से संबंधित विषयों में उनकी रुचि को दर्शाता है। होल्स्ट की कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ, जैसे कि सावित्री, कोरल हिम्स फ्रॉम द ऋग्वेद  (Choral Hymns from the Rig Veda),  द हिम ऑफ जीसस (The Hymn Of Jesus) और द प्लैनेट्स (The Planets) भी अध्यात्मविद्या से संबंधित विषयों पर ही आधारित हैं। उनके अलावा गुस्ताव महलर और जीन सिबेलियस जैसे अन्य 
संगीतकार भी अध्यात्मविद्या से प्रभावित थे। ये संगीतकार भी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। 
 
 
संदर्भ  
https://tinyurl.com/4zbsas3z 
https://tinyurl.com/2s3myc8f 
https://tinyurl.com/5b2uwjjd 
https://tinyurl.com/37ywajcv 
https://tinyurl.com/4uymtfav 
https://tinyurl.com/3ujm5zwv 
 
चित्र संदर्भ 
1. गुस्ताव होल्स्ट और सावित्री की किवदंती को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel, wikimedia) 
2. चेल्टेनहम में गुस्ताव होल्स्ट की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia) 
3. सावित्री के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (Youtube) 
4. सावित्री की किवदंती को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia) 
5. गुस्ताव होल्स्ट की "मार्स, द ब्रिंगर ऑफ वॉर" और ईएलपी की "एक्वाटार्कस" से लयबद्ध डिजाइन की तुलना को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)