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सन 1857 में आजादी के क्रन्तिसंग्राम की कहानी मेरठ से शुरू हुई थी। 10 मई 1857 को इस आज़ादी की ज्वाला को प्र्वजलित करने वाला पहला तिनका जल उठा था। यह संग्राम ब्रितानी शासकों ने दबाया तो जरुर लेकिन भारतीय नागरिकों के मन में आजादी की चाह और उसे पाने के लिए मर मिटने का जूनून बस चूका था। यह भारत के नागरिकों का आजादी की तरफ बढनेवाला एक निर्णायक कदम था।
प्रस्तुत चित्र मेरठ के स्वातंत्र्य संग्राम संग्रहालय में मौजूद हैं जो निशब्द होते हुए भी उन विरात्मों के शौर्य की गाथा कथन कर रहे हैं जिन्होंने भारत माता की आज़ादी में अपने प्राणों की आहुति दी और हर भारतीय के मन में इसे पाने की दहेकती आस उत्पन्न की!
चित्र 1: बेगम हज़रत महल- यह एक आला और बहुत ही निडर तथा दिलेर इंसान थी। लड़ाई में खुद उन्होंने हाथी के ऊपर से आदेश दिए हैं। बेगम की संगठनात्मक क्षमता और उनका नेतृत्व अनुकरणीय था। इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया के भारत पर राज करने की घोषणा पर उन्होंने प्रति-घोषणा कर पूछा “रानी साहिबा हमारा देश हमे क्यूँ वापस नहीं कर रहीं जब भारत के नागरिकों की यही चाह है? अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानी नागरिकों के लिए रास्ता बनाना और नहार-नाले खोदने के अलावा भी कोई रोजगार सोचा नहीं है। लोग ठिकसे देख नहीं पा रहे की इसका मतलब इनके लिए क्या है, उन्हें कोई मदद नहीं कर सकता। यह गदर धर्म के नाम पर शुरू हुई थी और इस के लिए करोड़ों लोग मारे गए हैं। बेहतर होगा अगर हम लोगों को धोके में ना रखे।"
चित्र 2: मौलवी फैज़ाबाद-अहमदुल्ला शाह – हिन्दू और मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग इनकी इज्ज़त करते थे। वे अलग अलग जगह जा कर लड़ते थे एवं क्रान्ति की सूचनाएं और मार्गदर्शन फैलाने का काम करते थे। बेगुम हज़रत महल, तांत्या टोपे आदि क्रांतिकारियों के साथ उन्होंने आजादी की जंग लड़ी मात्र जब वे मोहम्दी गए तब पोंबाया के राजा ने विश्वासघात से उन्हें मार दिया।
चित्र 3: अज़िमुल्लाह खान- ये नाना साहिब पेशवा के सचिव और सलाहकार थे और साथ ही 1857 के क्रन्तिसंग्राम वे प्रमुख रचनाकार और संघटक भी। फ्रांसीसी और रुसी देशों के साथ शास्रार्थ करके उन्होंने संग्राम के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल किया था।
चित्र 4: नाना साहिब- इनका असल नाम गोविन्द था मात्र सब उन्हें आदर से नाना बुलाते थे। वे इस महासंग्राम के प्रधान नेताओं में से एक थे। मान्यता है की मेरठ के बिल्वेश्वर नाथ मंदिर और औघढ़नाथ मंदिर में साधु के भेस में वे क्रान्तिसंग्राम का कार्य करते थे जैसे जनजागृति और सूचनाएं पहुँचाना।
1. द हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया: जॉन एफ. रिड्डीक
2. म्युटिनी ऐट द मार्जिन्स- न्यू पर्सपेक्टिव्स ओन द इंडियन अपराइजिंग ऑफ़ 1857: क्रिस्पिन बटेस
3. डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर ऑफ़ द यूनाइटेड प्रोविन्सेस ऑफ़ आग्रा एंड औध: हेन्री रिवेन नेविल, 1904