रामपुर के बदलते कपड़ा बाज़ार में सिंथेटिक फैब्रिक और स्पैन्डेक्स की बढ़ती अहमियत

स्पर्शः रचना व कपड़े
13-10-2025 09:22 AM
रामपुर के बदलते कपड़ा बाज़ार में सिंथेटिक फैब्रिक और स्पैन्डेक्स की बढ़ती अहमियत

रामपुरवासियो, आपने अक्सर अपने आस-पास के बाज़ारों में अलग-अलग तरह के कपड़े देखे होंगे - कभी पारंपरिक कुर्ते-शॉल, तो कभी नए डिज़ाइन वाले आधुनिक वस्त्र। समय के साथ कपड़ा उद्योग में भी बड़ा बदलाव आया है। अब केवल कपास या ऊन ही नहीं, बल्कि मानव-निर्मित कपड़े जैसे रेयॉन (Rayon), पॉलिएस्टर (Polyester), नायलॉन (Nylon) और स्पैन्डेक्स (Spandex) भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ़ फैशन (fashion) तक सीमित नहीं है, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी, खेलकूद और औद्योगिक ज़रूरतों तक फैला हुआ है। ऐसे में ज़रूरी है कि हम समझें कि सिंथेटिक (synthetic) और सेलूलोसिक फैब्रिक (Cellulosic Fabric) क्या होते हैं और भारत, खासकर रामपुर जैसे शहरों में इनकी मांग क्यों बढ़ रही है।
आज हम सबसे पहले यह जानेंगे कि सिंथेटिक और सेलूलोसिक फैब्रिक की परिभाषा क्या है और ये प्राकृतिक रेशों से किस तरह अलग हैं। इसके बाद हम भारत में बनने वाले प्रमुख सिंथेटिक फैब्रिक - रेयॉन, नायलॉन, पॉलिएस्टर और ऐक्रिलिक (Acrylic) - की विशेषताओं और उनके उपयोगों पर नज़र डालेंगे। फिर हम देखेंगे कि भारतीय स्पोर्ट्सवेयर (sportwear) उद्योग में इन आधुनिक कपड़ों की क्या भूमिका है और किस तरह पॉलिएस्टर- स्पैन्डेक्स का मिश्रण आरामदायक खेलकूद वस्त्रों का आधार बन चुका है। इसके साथ ही हम स्पैन्डेक्स के इतिहास, इसके अलग-अलग नामों और वैश्विक उत्पादन केंद्रों के बारे में भी विस्तार से चर्चा करेंगे। अंत में, भारत के स्पैन्डेक्स बाज़ार की वर्तमान स्थिति और आने वाले वर्षों में इसके भविष्य को समझेंगे।

भारत में सिंथेटिक और सेलूलोसिक फैब्रिक की परिभाषा व विशेषताएँ
कपड़ा उद्योग में रेशों की दुनिया बहुत विशाल है। इन्हें दो हिस्सों में बाँटा जाता है - प्राकृतिक रेशे और मानव-निर्मित रेशे। प्राकृतिक रेशे जैसे कपास, ऊन और रेशम सीधे पौधों या जानवरों से मिलते हैं और पीढ़ियों से हमारी परंपराओं का हिस्सा रहे हैं। लेकिन समय के साथ विज्ञान और उद्योग ने नए रास्ते खोले और प्रयोगशालाओं से ऐसे रेशे सामने आए जिन्हें इंसान ने खुद तैयार किया। इन्हें मानव-निर्मित रेशे कहा जाता है। मानव-निर्मित रेशों की भी दो श्रेणियाँ होती हैं - सेलूलोसिक और सिंथेटिक। सेलूलोसिक रेशे पौधों और लकड़ी के गूदे से तैयार किए जाते हैं, जिससे वे मुलायम और आरामदायक बनते हैं। वहीं सिंथेटिक रेशे पूरी तरह पेट्रोलियम और कच्चे तेल जैसे स्रोतों से बनाए जाते हैं। ये रेशे मज़बूत, टिकाऊ और आधुनिक फैशन की ज़रूरतों को पूरा करने वाले होते हैं। यही वजह है कि आज के समय में जहाँ प्राकृतिक कपड़े अपनी पहचान रखते हैं, वहीं मानव-निर्मित कपड़े आराम, टिकाऊपन और आधुनिकता का नया प्रतीक बन चुके हैं।

File:Rayon sample.jpg

भारत में बनने वाले प्रमुख सिंथेटिक फैब्रिक और उनके उपयोग
भारत का कपड़ा उद्योग बेहद विविधतापूर्ण है और यहाँ कई तरह के सिंथेटिक कपड़े बनाए जाते हैं। इनका उपयोग सिर्फ़ रोज़मर्रा के परिधानों तक सीमित नहीं है, बल्कि फैशन, खेलकूद और औद्योगिक ज़रूरतों तक फैला हुआ है।

  • रेयॉन: यह कपड़ा अपनी मुलायम बनावट और पानी सोखने की क्षमता के लिए जाना जाता है। इसे अक्सर कॉटन (cotton) या ऊन के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खासियत है कि यह आरामदायक होता है और आसानी से रंगा जा सकता है।
  • नायलॉन: पानी, कोयले और हवा से तैयार यह कपड़ा हल्का, मज़बूत और चमकदार होता है। इसका इस्तेमाल पैंटीहोज़ (pantyhose), रस्सियों और स्पोर्ट्सवेयर जैसे कपड़ों में खूब किया जाता है। इसकी साफ-सफाई आसान होने से यह रोज़मर्रा की ज़िंदगी में और भी लोकप्रिय है।
  • पॉलिएस्टर: टिकाऊ और लंबे समय तक नया दिखने वाला यह कपड़ा धोने में आसान होता है। पॉलिएस्टर का उपयोग न केवल कपड़ों में बल्कि प्लास्टिक बोतलों, बर्तनों और तारों में भी होता है।
  • ऐक्रिलिक: ऊन का सस्ता विकल्प माने जाने वाले ऐक्रिलिक में रंगों की चमक और टिकाऊपन दोनों होते हैं। यही वजह है कि यह कंबल, कालीन और निटिंग (knitting) के कामों में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है।

इन कपड़ों की बढ़ती लोकप्रियता भारत के कपड़ा बाज़ार में नए अवसर पैदा कर रही है।

भारतीय स्पोर्ट्सवेयर उद्योग में सिंथेटिक कपड़ों की भूमिका
भारतीय समाज में खेलकूद और फिटनेस (fitness) की संस्कृति अब लगातार मजबूत हो रही है। पहले खेलकूद के कपड़े आम कपड़ों से ही बनाए जाते थे, लेकिन आज विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए स्पोर्ट्सवेयर की मांग बढ़ चुकी है। इसमें सिंथेटिक कपड़े एक बड़ा योगदान दे रहे हैं।

  • पॉलिएस्टर और स्पैन्डेक्स का मिश्रण: यह संयोजन हल्का और खिंचावदार होता है, जो व्यायाम या खेल के दौरान शरीर के साथ आसानी से फिट बैठता है। यही वजह है कि लेगिंग्स (leggings), योगा पैंट (yoga pants) और स्पोर्ट्स ब्रा (sports bra) जैसी चीजों में इसका उपयोग सबसे अधिक होता है।
  • नायलॉन: इसकी मजबूती और लचक इसे साइक्लिंग शॉर्ट्स (cycling shorts) और स्विमवीयर (swimwear) के लिए आदर्श बनाती है। पानी के संपर्क में भी यह अपनी गुणवत्ता बनाए रखता है।
  • मेरिनो ऊन: हालाँकि यह एक प्राकृतिक रेशा है, लेकिन आधुनिक स्पोर्ट्सवेयर उद्योग में इसका भी खास स्थान है। इसकी नमी सोखने की क्षमता और मुलायम बनावट इसे बेस लेयर्स और शरीर से चिपकने वाले कपड़ों के लिए उपयुक्त बनाती है।

इससे स्पष्ट है कि सिंथेटिक और मिश्रित कपड़ों ने भारतीय स्पोर्ट्सवेयर उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

स्पैन्डेक्स का इतिहास और इसके अलग-अलग नाम
स्पैन्डेक्स वस्त्र उद्योग की उन खोजों में से है जिसने आधुनिक कपड़ों की परिभाषा ही बदल दी। इसे 1958 में अमेरिकी वैज्ञानिक जोसेफ शिवर्स (Joseph Shivers) ने ड्यूपॉन्ट (DuPont) कंपनी की प्रयोगशाला में विकसित किया था। उस समय कपड़ा उद्योग कपास, ऊन और रेशम जैसे पारंपरिक रेशों या फिर नायलॉन और पॉलिएस्टर जैसे शुरुआती सिंथेटिक विकल्पों पर ही निर्भर था। ऐसे में स्पैन्डेक्स एक क्रांतिकारी खोज साबित हुआ। इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी - बेहद ज़्यादा लचीलापन और खिंचने के बाद तुरंत अपनी पुरानी आकृति में लौट आने की क्षमता। यह गुण किसी और रेशे में उस समय मौजूद नहीं था। यही वजह है कि इसे जल्दी ही टाइट-फिटिंग (tight-fitting) कपड़ों से लेकर मेडिकल उपयोग तक हर जगह अपनाया जाने लगा। नामों की बात करें तो यूरोप में इसे इलास्टेन (Elastane) कहा जाता है। भारत और अमेरिका में यह ज़्यादातर स्पैन्डेक्स और लाइक्रा (Lycra) नामों से जाना जाता है। “लाइक्रा” असल में एक ब्रांड नेम (brand name) है, लेकिन लोगों की ज़ुबान पर इतना चढ़ गया कि कई जगह यह आम नाम की तरह इस्तेमाल होने लगा। आज स्पैन्डेक्स का उपयोग सिर्फ़ स्पोर्ट्सवेयर तक सीमित नहीं है, बल्कि फैशन इंडस्ट्री (fashion industry), योगा पैंट, जीन्स (jeans), लेगिंग्स, स्पोर्ट्स ब्रा, स्विमसूट (swimsuit) और यहाँ तक कि मेडिकल सपोर्ट वियर जैसे नी-ब्रेस (knee-brace) और कंप्रेशन स्टॉकिंग्स (compression stockings) में भी होने लगा है। इस रेशे ने यह साबित कर दिया कि कपड़े सिर्फ़ सुंदरता का साधन नहीं, बल्कि आराम और कार्यक्षमता का भी हिस्सा हैं।

स्पैन्डेक्स के वैश्विक उत्पादन और व्यापारिक केंद्र
स्पैन्डेक्स का महत्व आज किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व की वस्त्र और फैशन अर्थव्यवस्था का अहम स्तंभ बन चुका है। इसका उत्पादन, व्यापार और उपभोग एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की तरह काम करता है। सबसे पहले चीन की बात करें तो यह आज दुनिया का सबसे बड़ा स्पैन्डेक्स उत्पादक और निर्यातक देश है। चीन की औद्योगिक क्षमता, कम उत्पादन लागत और विशाल निर्यात नेटवर्क ने इसे इस उद्योग में शीर्ष पर पहुँचा दिया है।
इसके बाद भारत, अमेरिका और ब्राज़ील (Brazil) आते हैं, जो वैश्विक स्तर पर उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भारत में स्पैन्डेक्स उत्पादन बढ़ते स्पोर्ट्सवेयर और एक्टिववेयर (Activewear) बाज़ार के कारण तेज़ी से विस्तार पा रहा है। वहीं अमेरिका और ब्राज़ील की फैशन और फिटनेस संस्कृति ने इसे एक बड़ा बाज़ार प्रदान किया है। उपभोक्ता बाज़ार की बात करें तो अमेरिका और यूरोप स्पैन्डेक्स के सबसे बड़े आयातक और उपभोक्ता हैं। अमेरिका में स्पोर्ट्सवेयर और फिटनेस इंडस्ट्री लगातार बढ़ रही है, जबकि यूरोप में फैशन डिज़ाइन और एक्टिववेयर संस्कृति इसकी मांग को बढ़ावा देती है। स्पैन्डेक्स का यह वैश्विक व्यापार दिखाता है कि कैसे एक छोटा सा रेशा पूरी दुनिया की जीवनशैली, फैशन और स्वास्थ्य संस्कृति को प्रभावित कर सकता है। यह केवल कपड़े बनाने का साधन नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का हिस्सा बन चुका है।

भारत में स्पैन्डेक्स बाज़ार की वर्तमान स्थिति और भविष्य
भारत आज स्पैन्डेक्स उद्योग का अहम खिलाड़ी है। देश का इस वैश्विक उद्योग में लगभग 15.6% हिस्सा है। यह आँकड़ा बताता है कि भारत अब केवल कपास और रेशम तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आधुनिक रेशों में भी अग्रणी बन रहा है। 2023 से 2033 के बीच भारतीय स्पैन्डेक्स उद्योग में जबरदस्त वृद्धि की संभावना है। इसके पीछे कई कारण हैं—

  • तेज़ी से हो रहा शहरीकरण और बदलती जीवनशैली: शहरों में लोग आरामदायक और स्टाइलिश कपड़ों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • विदेशी निवेश और कम उत्पादन लागत: भारत में उत्पादन अपेक्षाकृत सस्ता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ भी निवेश कर रही हैं।
  • फिटनेस और स्पोर्ट्स कल्चर (sports culture) का उभार: जिम, योग और आउटडोर खेलों की लोकप्रियता ने स्पोर्ट्सवेयर की मांग को कई गुना बढ़ा दिया है।

आज भारत केवल फैशन उद्योग की ज़रूरतें नहीं पूरी कर रहा, बल्कि स्वास्थ्य और तकनीकी क्षेत्रों में भी स्पैन्डेक्स का उपयोग बढ़ रहा है। यही वजह है कि आने वाले वर्षों में भारत का स्पैन्डेक्स उद्योग और भी सशक्त और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनेगा।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/3v9bzznj  



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