क्या राजस्थान की मशहूर ‘ब्लू पॉटरी’ फिर से अपनी नीली रौनक बिखेर पाएगी?

मिट्टी के बर्तन से काँच व आभूषण तक
19-11-2025 09:24 AM
क्या राजस्थान की मशहूर ‘ब्लू पॉटरी’ फिर से अपनी नीली रौनक बिखेर पाएगी?

रामपुरवासियों, अगर आप कभी राजस्थान की गलियों में घूमे हों, तो आपने ज़रूर उन नीले, चमकदार बर्तनों को देखा होगा जिन पर फूलों और पक्षियों के सुंदर डिज़ाइन बने होते हैं - यही है राजस्थान की प्रसिद्ध ब्लू पॉटरी (Blue Pottery)। यह कला सिर्फ़ मिट्टी और रंगों का मेल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत की एक जीवित मिसाल है। आज, जब आधुनिकता की रफ्तार बढ़ रही है, तब भी ब्लू पॉटरी अपने पारंपरिक सौंदर्य और हस्तकला की पहचान को सहेजे हुए है। भले ही इसका केंद्र जयपुर हो, लेकिन इसकी कलात्मक प्रेरणा अब रामपुर जैसे शहरों तक पहुँच रही है, जहाँ कला और संस्कृति को समझने वाले लोग इसकी शान को महसूस करते हैं। आइए, आज हम इस नीली दुनिया की खूबसूरती, संघर्ष और संभावनाओं को करीब से जानें।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि ब्लू पॉटरी की ऐतिहासिक पहचान क्या है और यह राजस्थान की संस्कृति में इतनी खास क्यों मानी जाती है। इसके बाद, हम जानेंगे कि इस कला में कौन से रंग, डिज़ाइन और प्रतीकात्मक रूपांकन उपयोग किए जाते हैं जो इसे विशिष्ट बनाते हैं। फिर, हम देखेंगे कि जयपुर और कोट जेबर गाँव में इसका उत्पादन कैसे होता है और आज इस उद्योग की स्थिति क्या है। साथ ही, हम इसके तकनीकी पहलू, कारीगरों की चुनौतियाँ, और इस कला के संरक्षण के उपायों पर भी चर्चा करेंगे, ताकि हम समझ सकें कि यह पारंपरिक हस्तकला कैसे फिर से अपनी पहचान हासिल कर सकती है।

ब्लू पॉटरी की ऐतिहासिक पहचान और विशेषता
राजस्थान की ब्लू पॉटरी सिर्फ़ एक हस्तकला नहीं, बल्कि उस मिट्टी की कहानी है जिसने शाही रंगों में जीवन की चमक भरी। इस कला का उद्भव मुग़ल काल में हुआ था, जब फारसी और तुर्की डिज़ाइन भारत आए और जयपुर के कारीगरों ने उन्हें स्थानीय सौंदर्यबोध से मिलाकर एक नई शैली में ढाल दिया। धीरे-धीरे, यह कला राजस्थान की पहचान बन गई - उसकी धूप, संस्कृति और रंगों की झलक हर नीली टाइल (Blue Tile) में झिलमिलाने लगी। इसकी सबसे अनूठी विशेषता यह है कि इसमें मिट्टी का उपयोग नहीं होता। इसके स्थान पर क्वार्ट्ज़ पाउडर (Quartz Powder), बोरेक्स (Borax), गोंद और मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग होता है, जिससे बने बर्तन न केवल हल्के और चमकदार होते हैं, बल्कि बेहद टिकाऊ भी। कोबाल्ट ऑक्साइड (Cobalt Oxide) से बने नीले और फिरोज़ी रंग इस कला में जान डालते हैं। इन रंगों में राजस्थान के आसमान और उसके लोगों की जीवंतता झलकती है। फूलदान, टाइलें, प्लेटें या सजावटी कटोरियाँ - हर वस्तु अपने भीतर शाही सुंदरता और सादगी का सम्मिश्रण समेटे हुए होती है।

ब्लू पॉटरी में उपयोग होने वाले रंग, डिज़ाइन और प्रतीकात्मक रूपांकन
ब्लू पॉटरी की असली जान उसके डिज़ाइनों और रूपांकनों में बसती है। इसमें हाथों से उकेरे गए कमल, मोर, हाथी, तोते और फूलों की बेलें केवल सजावटी नहीं होतीं - वे प्रकृति, संस्कृति और जीवन के संतुलन का प्रतीक हैं। रंगों की दृष्टि से यह कला राजस्थान की रेतली ज़मीन और नीले आसमान के बीच का सेतु है - नीला, फिरोज़ी, पीला और सफेद रंग मिलकर एक ऐसी झिलमिलाती छटा पैदा करते हैं जो देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। समय के साथ इस कला में आधुनिकता का स्पर्श भी जुड़ गया है। जहाँ पहले यह केवल प्लेटों और फूलदानों तक सीमित थी, अब चाय सेट, दीवार टाइलें, कोस्टर (coaster), नैपकिन रिंग्स (napkin rings) और गिफ्ट आइटम्स (gift items) के रूप में भी इसका स्वरूप विकसित हुआ है। इससे यह न केवल परंपरा की प्रतीक बनी रही, बल्कि आधुनिक जीवनशैली में भी अपनी जगह बना पाई है।

ब्लू पॉटरी उद्योग की वर्तमान स्थिति और उत्पादन केंद्र
आज जयपुर और आसपास के क्षेत्रों - विशेषकर कोट जेबर गाँव - में ब्लू पॉटरी की लगभग 25 से 30 उत्पादन इकाइयाँ हैं। यह गाँव इस कला की आत्मा है, जहाँ पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ इस परंपरा को अपने हाथों से सँवार रही हैं। इस कला की विरासत मुख्यतः खारवाल, कुंभार, बहैरवा और नट जातियों के कारीगरों ने सँभाली है। वे हर टुकड़े में न केवल मेहनत, बल्कि भावनाएँ भी गढ़ते हैं। हालाँकि, पिछले दो दशकों में इस उद्योग की रफ़्तार धीमी हुई है। पहले जहाँ सैकड़ों कारीगर कार्यरत थे, अब गिने-चुने लोग ही बचे हैं। वजह है - उच्च लागत, सीमित बाज़ार और सस्ते सिरेमिक उत्पादों की प्रतिस्पर्धा। फिर भी, जयपुर के कुछ कारीगर आज भी उम्मीद की लौ जलाए हुए हैं - उनका विश्वास है कि यदि सही बाज़ार और सरकारी सहयोग मिले, तो यह कला फिर से राजस्थान की आर्थिक रीढ़ बन सकती है।

ब्लू पॉटरी बनाने की जटिल प्रक्रिया और तकनीकी पहलू
ब्लू पॉटरी बनाना एक साधना की तरह है - यह कला धैर्य, सटीकता और सूक्ष्मता की माँग करती है। इसकी पूरी प्रक्रिया 8 से 10 दिन तक चलती है और हर चरण में कला और विज्ञान का संतुलन दिखाई देता है। पहले चरण में क्वार्ट्ज़ पाउडर, बोरेक्स, गोंद, मुल्तानी मिट्टी और ग्लास पाउडर (glass powder) को मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है। इसे बेलकर पतली चादरों के रूप में ढाला जाता है, फिर साँचों में जमाया जाता है। इसके बाद हाथ से डिज़ाइन बनते हैं, रंग भरे जाते हैं, और उस पर ग्लेज़िंग (glazing) की परत चढ़ाई जाती है - ताकि वह चमकदार और टिकाऊ बन सके। अंत में इसे भट्टी में पकाया जाता है, जहाँ सही तापमान का संतुलन बहुत ज़रूरी होता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक छोटी-सी गलती भी कई दिनों की मेहनत को मिटा सकती है। यही कारण है कि इसे “धैर्य की कला” कहा जाता है - क्योंकि हर सफल बर्तन के पीछे कारीगर की अनगिनत असफल कोशिशें छिपी होती हैं।

कला के विलुप्त होने के कारण और कारीगरों की चुनौतियाँ
बीते कुछ वर्षों में ब्लू पॉटरी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। सस्ते चीनी सिरेमिक (ceramic) और मशीन-निर्मित उत्पादों ने इस हस्तकला को बाज़ार में पीछे धकेल दिया है। इस कला की उत्पादन प्रक्रिया समयसाध्य और महँगी है - एक टुकड़ा तैयार करने में कई दिन लगते हैं, जबकि उसका लाभ बहुत सीमित होता है। ऊपर से 12% जीएसटी (GST) ने इसे और कमज़ोर कर दिया है। करीब एक दशक पहले जहाँ 500 से अधिक कारीगर सक्रिय थे, वहीं आज यह संख्या 50 के आसपास सिमट गई है। युवा पीढ़ी इसमें भविष्य नहीं देखती और रोज़गार के अन्य विकल्पों की ओर मुड़ जाती है। अगर यही रुझान जारी रहा, तो यह अनमोल शिल्प आने वाले वर्षों में सिर्फ़ संग्रहालयों और यादों में रह जाएगा।

संरक्षण के उपाय और भविष्य की संभावनाएँ
अब वक्त है कि इस कला को केवल “संस्कृति का हिस्सा” मानने की बजाय आर्थिक अवसर के रूप में देखा जाए। सबसे पहले, सरकार को इस पर जीएसटी में राहत और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने वाली योजनाओं में प्राथमिकता देनी चाहिए। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियाँ, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स (e-commerce platform) और डिजिटल प्रमोशन (digital promotion) के माध्यम से इस कला को दुनिया भर में नए ग्राहक मिल सकते हैं। इसके अलावा, राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम (RSLDC) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (NID) जैसी संस्थाएँ कारीगरों को आधुनिक तकनीक, डिज़ाइन और मार्केटिंग की ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना सकती हैं। यदि युवाओं को इसमें करियर की संभावना दिखाई दे, तो यह कला फिर से अपने सुनहरे दौर में लौट सकती है। कला का भविष्य तब ही सुरक्षित है जब परंपरा और आधुनिकता साथ चलें - और ब्लू पॉटरी इसका जीता-जागता उदाहरण बन सकती है।

संदर्भ: 
https://bit.ly/3qpbyNw 
https://bit.ly/3efuEmT 
https://bit.ly/3qmQffC 
https://bit.ly/3l0JvTC 
https://tinyurl.com/4kwdvsfh 



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