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इसी प्रकार के कुछ कार्य महामारी के संदर्भ में भी निर्मित हुए हैं। महामारी बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करती है। प्लेग (Plague), चेचक (Smallpox), इन्फ्लूएंजा (Influenza) और हैजा (Cholera) जैसे रोग अनेकों परिवारों, नगरों, शहरों आदि को नष्ट कर देते हैं तथा एक पूरी पीढ़ी पर अपने नकारात्मक प्रभाव को बनाए रखते हैं। भारत की यदि बात करें तो, यहां ऐसे अनेकों लेखक हुए जिन्होंने महामारी या अन्य प्रकार की समस्याओं से प्रभावित होकर कई उत्कृष्ट रचनाओं का निर्माण किया। रवींद्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', फकीर मोहन सेनापति आदि उन महान लेखकों में से एक हैं, जिन्होंने महामारी या रोगों के प्रकोप के कारण हुई तबाही से आहत होकर उत्कृष्ट रचनाओं (कविता, कहानी, उपन्यास आदि) को जन्म दिया। इन रचनाओं के कुछ प्रमुख उदाहरणों में टैगोर की ‘पुरातन भृत्य’ (Puratan Bhritya), अहमद अली की ‘ट्विलाइट इन दिल्ली’ (Twilight in Delhi), प्रेमचंद की ‘ईदगाह’ (Eidgah) आदि शामिल हैं। अपनी पुस्तक ‘पुरातन भृत्य’ में टैगोर चेचक के प्रकोप का वर्णन करते हैं। ‘ट्विलाइट इन दिल्ली’ में अहमद अली 1918 में फैले स्पैनिश फ़्लू (Spanish Flu) का उल्लेख करते हैं, जिसमें वे बताते हैं, कि महामारी के दौरान कफन चोरों ने कैसे कब्रों से कफन चुराए और कब्र खोदने वालों ने कैसे अपनी फीस चार गुना बढ़ा दी। इसी प्रकार मुंशी प्रेमचंद की पुस्तक ईदगाह में हैजे का उल्लेख मिलता है। कुछ लेखकों ने व्यक्तिगत रूप से भी इन दुखद घटनाओं का सामना किया, जैसे हिंदी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने 1918 के इन्फ्लूएंजा के प्रकोप में अपनी पत्नी और बेटी सहित परिवार के अन्य कई लोग खो दिए। उनके द्वारा किये गए उल्लेख के अनुसार, उस समय मृतकों की संख्या इतनी अधिक थी, कि उनके अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां भी नहीं बची थीं और गंगा नदी में लाशों का ढेर लगा हुआ था। मलयाली लेखकों ने भी संक्रामक रोगों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है। रचनाकारों ने जिस तरह से अपनी रचनाओं में महामारी का उल्लेख किया है, वह बताता है कि, कैसे महामारी ने उनके मन और मस्तिष्क को विशेष रूप से प्रभावित किया, विशेषकर 19 वीं और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में। दुनिया भर के लेखकों ने महामारियों पर अपनी रचनाएं लिखी हैं, जो कहीं न कहीं यह भी बताती हैं कि, महामारी का जन्म मानव व्यवहार से जुड़ा हुआ है। मानव जंगलों का विनाश करता है, पशुओं के आवास, भोजन आदि को नुकसान पहुंचाता है। अपनी कृतियों के माध्यम से लेखक मानव व्यवहारों के प्रति अपनी चिंता को अभिव्यक्त करते हैं, तथा समाज का ध्यान भी इस ओर खींचते हैं। इस प्रकार साहित्य की विशेष भूमिका को हम इस रूप में भी देख सकते हैं। साहित्य भले ही महामारी जैसी चीजों को दूर न कर सकें, लेकिन यह लोगों के लिए सांत्वना का स्रोत बन जाते हैं। यह उन दुखद घटनाओं का गंभीर और सबसे व्यावहारिक रिकॉर्ड (Record) प्रदान करते हैं। ये एक ऐसा तरीका बन जाते हैं, जिसके माध्यम से हम अपने मानवतावादी विचारों को साझा कर सकते हैं।
संदर्भ:
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
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