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क्या आप जानते हैं कि लखनऊ और सिंधु घाटी सभ्यता के बीच कोई सीधा ऐतिहासिक या भौगोलिक संबंध नहीं होने के बावजूद, नगर नियोजन के संदर्भ में एक दिलचस्प परोक्ष संबंध है? जी हाँ! सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नत शहर योजना, जैसे कि ग्रिड प्रणाली (grid system), जल निकासी और व्यवस्थित आवास आदि से प्रेरणा लेकर आज के आधुनिक शहरों का विकास किया जाता है। लखनऊ जैसे आधुनिक शहरों में भी इन सिद्धांतों की झलक मिलती है, जिससे इन प्राचीन सभ्यताओं की उन्नत शहरीकरण प्रथाओं का पता चलता है! लोथल को भी सिंधु घाटी सभ्यता के दौर के एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में देखा जाता है! आधुनिक गुजरात में स्थित यह शहर लगभग 2400 ईसा पूर्व में विकसित हुआ था! यह शहर अपने अनोखे डॉकयार्ड (Dockyard) के लिए प्रसिद्ध था। लोथल के डॉकयार्ड में समुद्र और नदी के ज्वार को नियंत्रित करने के लिए एक उन्नत लॉक-गेट प्रणाली का उपयोग किया जाता था, जिससे जहाज़ों को आसानी से लोड (load) और अनलोड (unload) किया जा सकता था! आज के इस लेख में हम प्राचीन भारत में व्यापार और लोथल बंदरगाह की भूमिका पर चर्चा करेंगे। इसके तहत हम देखेंगे कि समय के साथ इसका विकास कैसे हुआ। फिर, हम लोथल के डॉकयार्ड की संरचना और इसकी तकनीकी कुशलता पर नज़र डालेंगे। अंत में, हम समझेंगे कि कैसे लोथल ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और कैसे इसने भारत को वैश्विक व्यापार में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
भारत में समुद्री व्यापार का इतिहास सदियों पुराना है। जब से समुद्री व्यापार का आरंभ हुआ, तभी से भारत सम्पूर्ण दक्षिण एशियाई क्षेत्र में समुद्री व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण केन्द्रों में से एक रहा है। भारत की प्राचीन समुद्री परंपरा की जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता तक जाती हैं, जहाँ से 2900 ईसा पूर्व में भी लंबी दूरी की समुद्री यात्राओं के प्रमाण मिलते हैं। सिल्क रोड (Silk route) के विकास से बहुत पहले ही, भारतीय व्यापारियों के जहाज़ हज़ारों मील का सफ़र तय करते थे! वे हिंद महासागर और अरब सागर को पार कर पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी अफ्रीका में अपने लिए नए बाज़ार तलाशते थे। ठीक इसी तरह, इन क्षेत्रों के व्यापारी, विशेषकर अरब और चीनी, अक्सर भारतीय उपमहाद्वीप का रुख करते थे और यहाँ रेशम, मसालों, चीनी मिट्टी के बर्तनों, हाथीदांत और यहाँ तक कि दासों का भी व्यापार करते थे।
आइए अब इस व्यापार में लोथल गोदी (डॉकयार्ड) की उपयोगिता को समझते हैं:
लोथल की गोदी (डॉकयार्ड) वहां की सबसे अनूठी विशेषता है, जो इस प्राचीन स्थल के पूर्वी छोर पर स्थित है। यह गोदी लगभग 200 मीटर लंबी और करीब 35 मीटर चौड़ी है। इसे बड़ी ही चतुराई से नदी की मुख्य धारा से कुछ दूरी पर बनाया गया था, ताकि गाद जमा न होने पाए और ऊँचे ज्वार के समय भी जहाज़ों की पहुँच यहाँ तक बनी रहे। एक स्लुइस गेट और एक स्पिल चैनल की मदद से गोदी में पानी का स्तर एक जैसा बनाए रखा जाता था। साबरमती नदी के किनारे स्थिति होने के कारण लोथल, रणनीतिक रूप से सिंध और सौराष्ट्र के हड़प्पा कालीन शहरों को जोड़ने वाला एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन गया था। लोथल का स्थान गोदी के निर्माण के लिए एकदम उपयुक्त था, क्योंकि खंभात की खाड़ी के ऊँचे ज्वार-भाटे और नदी के मुहाने का प्रवाह, जहाज़ों की आवाजाही के लिए बेहद अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करते थे। सामान को कुशलता से चढ़ाने-उतारने के लिए, गोदी से गोदाम तक सीधी पहुँच प्रदान करने वाला एक रैंप भी मौजूद था।
लोथल को दुनिया के सबसे पुराने बंदरगाह शहरों में से एक माना जाता है। यह शहर सिंधु घाटी सभ्यता का एक अभिन्न हिस्सा हुआ करता था, जिसका इतिहास लगभग 2400 ईसा पूर्व तक फैला हुआ है।
आज के गुजरात में स्थित, लोथल उस समय एक विकसित शहरी बस्ती हुआ करती थी, जहाँ एक सुनियोजित बंदरगाह (डॉकयार्ड), बड़े गोदाम और पानी निकासी की एक जटिल व्यवस्था मौजूद थी। खंभात की खाड़ी के पास होने के कारण यह शहर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया! मेसोपोटामिया और अन्य प्राचीन सभ्यताओं के साथ इसके गहरे व्यापारिक संबंध थे। लोथल से मिले पुरातात्विक सबूत, जैसे कि मुहरें, मनके और मिट्टी के बर्तन, इस बात की गवाही देते हैं कि यह शहर हाथीदांत, तांबे और कीमती पत्थरों का बी निर्यात करता था, जो एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में इसके महत्व को रेखांकित करता है।
सिंधु घाटी सभ्यता का यह प्राचीन बंदरगाह शहर, उस महान सभ्यता की शहरी योजना, इंजीनियरिंग कौशल और समुद्री व्यापार को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। लोथल ने हड़प्पा सभ्यता में एक खास भूमिका निभाई। यहाँ की ज़मीन उपजाऊ थी जहाँ कपास और चावल उगाए जाते थे, साथ ही यहाँ का फलता-फूलता मनका बनाने का उद्योग भी बेहद अहम था। लोथल अपने उत्कृष्ट मनकों और अर्ध-कीमती पत्थरों के लिए दूर-दूर तक मशहूर था, जो यहाँ के कारीगरों की अद्भुत शिल्पकला का प्रमाण है। पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि लोथल में बने मनके मेसोपोटामिया (Mesopotamia) जैसे दूर-दराज के इलाकों तक पहुँचते थे! यह शहर के मज़बूत व्यापार नेटवर्क और प्राचीन विश्व की अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
लोथल और रंगपुर में हुई पुरातात्विक खुदाई से दक्षिण एशिया में चावल की खेती के सबसे पुराने सबूत मिले हैं, जिनका संबंध हड़प्पा सभ्यता के बाद के काल से है। लोथल की सबसे प्रसिद्ध खुदाई इसकी ज्वारीय गोदी (Tidal Dockyard) है। यह दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात कृत्रिम गोदी मानी जाती है, जो सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नत समुद्री तकनीक का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है। यहाँ मिली अग्नि वेदियों की उपस्थिति, जहाँ जानवरों और मवेशियों की बलि दी जाती थी, अग्नि देवता की पूजा की पुष्टि करती है। सोने के पेंडेंट, टेराकोटा केक, मिट्टी के बर्तनों की जली हुई राख, मवेशियों के अवशेष, मनके और अन्य चिन्हों की खोज प्राचीन वैदिक धर्म से जुड़े 'गवमयन यज्ञ' जैसी प्रथाओं के संकेत देती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में लोथल का स्रोत : Wikimedia
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