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भारतीय लोक रंगमंच सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज की आत्मा की आवाज़ है।इसमें संगीत, नृत्य, अभिनय, लोककथा, चित्रकला, धार्मिक विश्वास और ग्राम्य जीवन की सहजता का सुंदर मेल होता है। इसमें गाँव की ज़िंदगी, लोककथाएँ, संगीत और आस्था – सब कुछ एक साथ झलकता है। यह मंच हँसी-ख़ुशी से लेकर गहरी संवेदनाओं और सामाजिक सवालों तक, हर पहलू को छूता है। यही वजह है कि लोक रंगमंच आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है।
नीचे दिए गए वीडियो में हम उत्तर भारत की लोक-नाट्य शैली 'नौटंकी' की झलक देखेंगे।
उत्तर भारत की समृद्ध लोक परंपरा में नौटंकी एक ऐसा रंग है जो न केवल दर्शकों का मनोरंजन करता है, बल्कि उनकी संस्कृति, बोली और संवेदनाओं को भी मंच पर जीवंत करता है। यह लोकनाट्य शैली विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बेहद लोकप्रिय रही है, जहाँ इसकी जड़ें सीधे आम जनजीवन से जुड़ती हैं। माना जाता है कि नौटंकी की शुरुआत उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुई थी, लेकिन इसकी आत्मा उससे भी कहीं पहले की लोक विधाओं – जैसे स्वांग, सांगीत और भगत – से उपजी मानी जाती है। दिलचस्प बात यह है कि ‘सांगीत रानी नौटंकी का’ नामक एक प्रसिद्ध नाटक के कारण इस पूरी रंगमंचीय शैली को ही 'नौटंकी' कहा जाने लगा। यह नाम अपने आप में दर्शाता है कि लोक के दिल में यह शैली कितनी गहरे पैठ चुकी थी। नौटंकी का मंच कोई आलीशान थिएटर नहीं होता—बल्कि यह गाँव की चौपाल, मंदिर का आँगन या फिर स्कूल का मैदान हो सकता है, जहाँ मिट्टी की गंध और लोगों की उपस्थिति मंच का हिस्सा बन जाती है। मंच सजाने के लिए स्थानीय लोग ही चारपाइयाँ जोड़कर अस्थायी रंगमंच बनाते थे, और रोशनी के लिए लालटेन या पेट्रोमैक्स की मद्धिम रौशनी में रंग और भावनाएँ सजती थीं। इन प्रस्तुतियों का खास आकर्षण था उनका लगातार चलना—अक्सर देर रात से शुरू होकर भोर तक चलने वाली नौटंकी, बिना पर्दे के, खुले मंच पर, सीधे दर्शकों की आँखों से जुड़ती थी।
नीचे दिए गए वीडियो लिंक में हम गुलाब बाई के बारे में जानेंगे।
नौटंकी की पारंपरिक कथाएँ कभी लोककथाओं, पौराणिक प्रसंगों और ऐतिहासिक चरित्रों की ज़मीन पर खड़ी होती थीं। ‘भक्त मोरध्वज’, ‘सत्य हरिश्चंद्र’, ‘इंदल हरण’ और ‘पुरनमल’ जैसी कहानियाँ लोगों को सिर्फ़ मनोरंजन नहीं देती थीं, बल्कि नैतिकता, वीरता और त्याग जैसे मूल्यों की गहराई से पहचान कराती थीं। ये कथाएँ मंच से निकलकर सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचती थीं। लेकिन वक़्त के साथ नौटंकी ने भी समय की नब्ज़ पकड़ी और अपनी दिशा बदली। अब इसके मंच पर दहेज प्रथा, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य जागरूकता, शिक्षा की ज़रूरत और जातीय भेदभाव जैसे ज्वलंत मुद्दे भी सामने लाए जाते हैं। यह बदलाव सिर्फ़ कथानक का नहीं, सोच का भी संकेत है—कि नौटंकी अब केवल रास-लीला नहीं, बल्कि समाज के सवालों का आईना बन चुकी है। नौटंकी आज भी गाँव की मिट्टी में रची-बसी वही सजीव लोक-आत्मा है, जो ढोलक की थाप के साथ लोगों के संघर्ष, सपनों और सच्चाइयों को गा कर सुनाती है।
नीचे दिए गए वीडियो में हम नौटंकी की एक झलक देखेंगे।
संदर्भ-
https://shorturl.at/CBfcA
https://shorturl.at/xyLPF
https://tinyurl.com/4uu2xah7
https://short-link.me/15Hb4
https://short-link.me/1a3T7
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