लखनऊवासियो, जानिए भोजन से कोशिकाओं तक ऊर्जा पहुंचाने की अद्भुत जैविक यात्रा

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लखनऊवासियो, जानिए भोजन से कोशिकाओं तक ऊर्जा पहुंचाने की अद्भुत जैविक यात्रा

लखनऊवासियो, हमारे शरीर के भीतर हर क्षण एक ऐसी अदृश्य लेकिन चमत्कारिक प्रक्रिया चल रही है, जो हमारी जिंदगी को हर पल ऊर्जा देती है, ऊर्जा उत्पादन। जैसे लखनऊ की गलियां, बाजार और घर रोशनी और बिजली से जगमगाते रहते हैं, वैसे ही हमारी हर कोशिका ऊर्जा से जीवित और सक्रिय रहती है। यह ऊर्जा हमें भोजन से मिलती है, लेकिन यह सीधे हमारे काम नहीं आती; इसके पीछे एक लंबा, जटिल और बेहद सटीक जैव-रासायनिक सफर होता है। इस सफर में सबसे अहम भूमिका निभाता है चयापचय (Metabolism), एक ऐसी प्रक्रिया जो हमारे खाने को छोटे-छोटे अणुओं में तोड़कर उन्हें ऊर्जा में बदल देती है, और फिर उसी ऊर्जा से हमारी मांसपेशियां चलती हैं, दिमाग सोचता है, दिल धड़कता है और अंग सुचारू रूप से काम करते हैं। इसे यूं समझिए, जैसे एक रसोई में कच्ची सामग्री को पकाकर स्वादिष्ट और पोषक भोजन तैयार किया जाता है, बस, यहां ‘रसोई’ हमारी कोशिका है और ‘भोजन’ से बनने वाला ‘ऊर्जा व्यंजन’ है एटीपी (ATP), जो हमें जीवित और सक्रिय रखता है।
इस लेख में हम ऊर्जा उत्पादन की उस अद्भुत प्रक्रिया को समझेंगे, जो हमारी हर कोशिका में चलती है। शुरुआत करेंगे यह जानने से कि कोशिकाओं को ऊर्जा क्यों चाहिए और इसमें चयापचय (Metabolism) की क्या भूमिका है। फिर समझेंगे शर्करा, प्रोटीन (protein) और अमीनो एसिड (amino acid) का महत्व, और भोजन से ऊर्जा पाने की पाचन प्रक्रिया। इसके बाद देखेंगे ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) से पाइरूवेट (Pyruvate) निर्माण तक के चरण, माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) में साइट्रिक एसिड (citric acid) चक्र से एटीपी उत्पादन का रहस्य, और अंत में ऑक्सीजन (Oxygen) व किण्वन की भूमिका।

मानव कोशिकाओं में ऊर्जा की आवश्यकता और चयापचय की भूमिका
हमारे शरीर की हर कोशिका दिन-रात काम में लगी रहती है, दिल की धड़कन बनाए रखना, सांस लेना, मांसपेशियों को चलाना, दिमाग को विचार और यादों के लिए सक्रिय रखना, यहां तक कि सोते समय भी शरीर के अंदर लाखों सूक्ष्म प्रक्रियाएं चलती रहती हैं। इन सभी कार्यों के लिए ऊर्जा की लगातार जरूरत होती है। यह ऊर्जा हमें चयापचय (Metabolism) नामक प्रक्रिया से मिलती है, जो दो हिस्सों में बंटी है, कैटोबोलिक (Catabolic) प्रतिक्रियाएं, जिनमें बड़े अणुओं को तोड़कर ऊर्जा मुक्त की जाती है, और एनाबॉलिक (Anabolic) प्रतिक्रियाएं, जिनमें ऊर्जा का इस्तेमाल करके नई संरचनाएं और अणु बनाए जाते हैं। यह कुछ वैसा ही है जैसे एक फैक्ट्री में पुराने हिस्सों को पिघलाकर नया सामान बनाया जाए, एक संतुलित व्यवस्था जो हमें ज़िंदा, स्वस्थ और सक्रिय रखती है।

शर्करा, प्रोटीन और अमीनो एसिड का महत्व
हमारे शरीर के लिए शर्करा (कार्बोहाइड्रेट - Carbohydrates) सबसे तेज़ और आसान ऊर्जा स्रोत है, जैसे कार के लिए पेट्रोल। ग्लूकोज, जो एक सरल शर्करा है, तुरंत ऊर्जा में बदलकर हमें दौड़ने, सोचने, बोलने, यहां तक कि पलक झपकाने की भी शक्ति देता है। प्रोटीन (protein) हमारे शरीर की इमारत के ईंट-पत्थर हैं, ये हमारी मांसपेशियों, त्वचा, बाल, नाखून से लेकर हार्मोन (hormone) और एंजाइम (enzyme) तक का निर्माण करते हैं। एंजाइम, जो प्रोटीन से ही बनते हैं, हमारे शरीर के रासायनिक कारखाने के मैनेजर की तरह हैं, जो हर प्रक्रिया को समय पर और सही तरीके से होने में मदद करते हैं। अमीनो एसिड (amino acid), जिन्हें प्रोटीन के निर्माण खंड कहा जाता है, न सिर्फ संरचना देते हैं बल्कि हार्मोन, न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitters) और प्रतिरक्षा से जुड़े अणुओं के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बिना इनके शरीर का न तो विकास हो सकता है, न मरम्मत।

भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया और पाचन
हम जो खाना खाते हैं, वह सीधे ऊर्जा में नहीं बदलता, पहले उसे छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ा जाता है ताकि कोशिकाएं उसे आसानी से इस्तेमाल कर सकें। यह सफर मुंह से शुरू होता है, जहां लार में मौजूद एंजाइम कार्बोहाइड्रेट को तोड़ना शुरू कर देते हैं। फिर खाना पाचन तंत्र में पहुंचकर विभिन्न एंजाइमों की मदद से ग्लूकोज, अमीनो एसिड और फैटी एसिड (Fatty Acid) जैसे मोनोमर अणुओं में बदल जाता है। इसके बाद ये रक्त के जरिए हमारी कोशिकाओं तक पहुंचते हैं, जहां साइटोसोल (Cytosol) और माइटोकॉन्ड्रिया में प्रवेश करके ऊर्जा उत्पादन की असली प्रक्रिया शुरू होती है। यह कुछ वैसा ही है जैसे कच्चे माल को फैक्ट्री तक पहुंचाकर मशीनों में डालना, जहां से तैयार प्रोडक्ट (ऊर्जा) निकलती है।

ग्लाइकोलाइसिस और पाइरूवेट का निर्माण
ऊर्जा उत्पादन का पहला बड़ा चरण है ग्लाइकोलाइसिस, जो कोशिका के साइटोसोल में होता है। इसमें एक ग्लूकोज अणु दो पाइरूवेट अणुओं में टूट जाता है, और साथ ही थोड़ी मात्रा में एटीपी (शरीर की ऊर्जा मुद्रा) और एनएडीएच (इलेक्ट्रॉन कैरियर) (NADH - Electron Career) बनते हैं। यह प्रक्रिया खास इसलिए है क्योंकि इसे ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती, यानी यह अवायवीय परिस्थितियों में भी ऊर्जा दे सकती है। हालांकि, इस चरण से बहुत ज्यादा ऊर्जा नहीं मिलती, लेकिन यह शरीर को तुरंत, आपातकालीन ऊर्जा उपलब्ध कराने का बेहतरीन तरीका है। एथलीट (athlete), तेज दौड़ने वाले खिलाड़ी या भारी वजन उठाने वाले लोग अपने मांसपेशियों में इसी त्वरित ऊर्जा प्रणाली पर निर्भर रहते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया में साइट्रिक एसिड चक्र और एटीपी उत्पादन
ग्लाइकोलाइसिस से बने पाइरूवेट माइटोकॉन्ड्रिया में पहुंचते हैं, जिन्हें कोशिका का "पावरहाउस" (powerhouse) कहा जाता है। यहां साइट्रिक एसिड चक्र (Krebs Cycle) चलता है, जिसमें पाइरूवेट से एनएडीएच और एफ़एडीएच₂ (FADH₂) जैसे ऊर्जा-समृद्ध अणु बनते हैं। ये अणु इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला में जाकर ऑक्सीजन की मदद से बड़ी मात्रा में एटीपी बनाते हैं, एक ग्लूकोज अणु से लगभग 36 एटीपी तक! यह प्रक्रिया बेहद कुशल है और तभी संभव है जब ऑक्सीजन मौजूद हो। यही वजह है कि गहरी और स्थिर सांसें लेना, खासकर व्यायाम के दौरान, ऊर्जा उत्पादन के लिए जरूरी है।

ऊर्जा उत्पादन में ऑक्सीजन और किण्वन की भूमिका
जब ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होती, तो कोशिकाएं एटीपी बनाने के लिए किण्वन का सहारा लेती हैं। इसमें पाइरूवेट लैक्टिक एसिड (pyruvate lactic acid) (पशु कोशिकाओं में) या एथेनॉल (ethanol) और सीओ₂ (CO₂) (कुछ सूक्ष्मजीवों में) में बदल जाता है। यह प्रक्रिया एटीपी की बहुत कम मात्रा बनाती है, लेकिन आपातकाल में शरीर के लिए जीवनरक्षक साबित होती है। उदाहरण के तौर पर, जब हम अचानक तेज़ दौड़ लगाते हैं और सांस फूलने लगती है, तो हमारी मांसपेशियां ऑक्सीजन की कमी के बावजूद किण्वन के जरिए ऊर्जा बनाती रहती हैं। हालांकि, इसके साथ बनने वाला लैक्टिक एसिड मांसपेशियों में जलन और थकान का कारण बनता है, जिससे हमें आराम लेने की जरूरत महसूस होती है।


संदर्भ-

https://shorturl.at/86IDY