समय - सीमा 263
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1065
मानव और उनके आविष्कार 837
भूगोल 249
जीव-जंतु 311
लखनऊवासियों, आज हम एक ऐसी वैश्विक पर्यावरणीय समस्या के बारे में बात करेंगे, जिसका प्रभाव दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है - और वह है ध्रुवीय भालुओं के प्राकृतिक आवास का तेज़ी से घटता क्षेत्र। ध्रुवीय भालू मुख्य रूप से आर्कटिक (Arctic) की बर्फीली भूमि में रहते हैं, जहाँ समुद्री बर्फ उनके लिए भोजन, शिकार और जीवन-चक्र का आधार होती है। लेकिन बढ़ते जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण यह बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे इन भालुओं का पूरा अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यद्यपि यह विषय हमारी सीधी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ा हुआ नहीं लगता, लेकिन सच यह है कि पृथ्वी की हर प्रजाति और हर पर्यावरणीय तंत्र आपस में जुड़े हुए हैं। जब किसी क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता टूटती है, तो उसका असर वैश्विक जलवायु पर पड़ता है - और वही बदलती जलवायु अंततः हम सभी के जीवन, मौसम और भविष्य को प्रभावित करती है। इसलिए ध्रुवीय भालुओं की स्थिति को समझना केवल उनके संरक्षण का विषय नहीं है, बल्कि धरती के पर्यावरणीय संतुलन को बचाने की एक सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
आज के इस लेख में, हम ध्रुवीय भालुओं से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को सरल भाषा में समझेंगे। सबसे पहले, हम ध्रुवीय भालुओं के प्राकृतिक आवास और उसके तेजी से सिकुड़ने के कारणों को जानेंगे। उसके बाद, हम ग्रीनलैंड में खोजी गई नए वातावरण के अनुकूल हो चुकी ध्रुवीय भालुओं की विशेष जनसंख्या के बारे में पढ़ेंगे। फिर, हम समझेंगे कि समुद्री बर्फ और ग्लेशियर (glacier) बर्फ में क्या अंतर है और यह अंतर भालुओं की जीवन-रक्षा रणनीति को कैसे प्रभावित करता है। अंत में, हम जलवायु परिवर्तन द्वारा बढ़ते खतरों और वैश्विक संरक्षण की आवश्यकता पर चर्चा करेंगे, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि इस प्रजाति को बचाने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए।

ध्रुवीय भालुओं का प्राकृतिक आवास और उसका सिकुड़ना
ध्रुवीय भालू मुख्य रूप से आर्कटिक क्षेत्र के ठंडे और विशाल बर्फीले विस्तार में रहते हैं। उनका अधिकांश जीवन समुद्री बर्फ पर बीतता है, जिसे वे अपने शिकार स्थल और आराम स्थल दोनों के रूप में उपयोग करते हैं। वे विशेष रूप से सील का शिकार करते हैं, जिसके लिए उन्हें समुद्री बर्फ के तैरते हुए प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकता होती है। इसीलिए कहा जाता है -
बर्फ नहीं → शिकार नहीं → भोजन नहीं → जीवन नहीं।
लेकिन आज जलवायु परिवर्तन आर्कटिक में तापमान को इतनी तेजी से बढ़ा रहा है कि समुद्री बर्फ पहले से कहीं अधिक तेज़ी से पिघल रही है। गर्मियों के मौसम में बर्फ इतनी पतली हो जाती है कि वह भालुओं का भार नहीं सह पाती, और कई क्षेत्रों में तो पूरी तरह गायब हो जाती है। परिणामस्वरूप ध्रुवीय भालू:
इनकी एक विशिष्ट जैविक क्षमता है कि ये साल में 100-180 दिन तक भोजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं। लेकिन तापमान में तेज़ बदलाव इस उपवास अवधि को खतरनाक सीमा तक बढ़ा रहा है। यदि समुद्री बर्फ का यह क्षय इसी तरह जारी रहा, तो आने वाले समय में ध्रुवीय भालुओं का प्राकृतिक अस्तित्व संकट में पड़ सकता है।

ग्रीनलैंड में खोजी गई नई अनुकूलित ध्रुवीय भालुओं की जनसंख्या
हाल ही में वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड के दक्षिण-पूर्वी भाग में ध्रुवीय भालुओं की एक अद्वितीय और छिपी हुई जनसंख्या की खोज की है। यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह क्षेत्र समुद्री बर्फ के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था, और इसीलिए वैज्ञानिक मानते थे कि यहां ध्रुवीय भालू जीवित नहीं रह सकते। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, इन भालुओं ने फ्योर्डस (Fjords) नामक भौगोलिक संरचनाओं में अपना आश्रय बना लिया है। फ्योर्डस वे लंबे, संकरे समुद्री मार्ग होते हैं, जिनके दोनों ओर खड़ी पहाड़ियाँ होती हैं। यहाँ मौजूद ग्लेशियर समय-समय पर टूटकर बर्फ के विशाल टुकड़ों को समुद्र में छोड़ते हैं। यही बर्फ अब इन भालुओं के लिए शिकार का नया मंच बन गई है। इस नई जनसंख्या का अस्तित्व यह दर्शाता है कि:
यह खोज एक छोटी उम्मीद जगाती है कि प्रकृति के पास अभी भी कुछ आत्म-रक्षा तंत्र बचे हुए हैं, हालांकि यह सभी भालुओं के लिए समाधान नहीं है।

ग्लेशियर बर्फ बनाम समुद्री बर्फ: जीवन रक्षा की नई रणनीति
परंपरागत रूप से, ध्रुवीय भालू समुद्री बर्फ पर ही सील का शिकार करते थे। समुद्री बर्फ उनकी जीवन प्रणाली का केंद्र रही है। लेकिन ग्रीनलैंड वाली नई जनसंख्या ने ग्लेशियर बर्फ को शिकार के लिए एक नए "मंच" की तरह उपयोग करना सीख लिया है। यह अनुकूलन असाधारण है, क्योंकि:
| विशेषता | समुद्री बर्फ | ग्लेशियर बर्फ |
|---|---|---|
| उत्पत्ति | समुद्र के सतह पर जमने से | पहाड़ी हिमनदों के टूटने से |
| उपलब्धता | तेजी से कम होती जा रही | कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में मौजूद |
| वन्य जीवन में भूमिका | मुख्य शिकार और विश्राम स्थल | वैकल्पिक शिकार क्षेत्र |
यह अनुकूलन बताता है कि ध्रुवीय भालू मौसम परिवर्तन के बावजूद जीवित रहने की रणनीतियों को बदल सकते हैं। लेकिन समस्या यह है कि ऐसी ग्लेशियर स्थितियाँ बहुत सीमित क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। इसका मतलब यह है कि यह रणनीति सभी ध्रुवीय भालुओं को नहीं बचा सकती, बल्कि केवल कुछ विशेष आबादी तक सीमित है।

ध्रुवीय भालुओं के लिए जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा
आईयूसीएन (IUCN - अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ) की रेड लिस्ट (Red List) में ध्रुवीय भालुओं को असुरक्षित, यानी संवेदनशील प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। विश्व में इनकी अनुमानित संख्या आज सिर्फ 22,000–36,000 रह गई है।
गंभीर खतरे:
यह स्थिति केवल एक प्राकृतिक संकट नहीं, बल्कि एक मानव-निर्मित आपदा है।
नई खोज के संरक्षण के प्रयासों में संभावित संकेत
ग्रीनलैंड के फ्योर्डस में मिली ध्रुवीय भालुओं की नई आबादी हमें एक महत्वपूर्ण संकेत देती है - पर्यावरण के बदलते हालातों में अनुकूलन संभव है, लेकिन इसकी सीमाएँ हैं। यह खोज दर्शाती है कि कुछ ध्रुवीय भालू समुद्री बर्फ के अभाव में भी ग्लेशियरों से टूटने वाली बर्फ पर शिकार कर जीवित रहने की नई रणनीति विकसित कर रहे हैं। लेकिन यह समाधान सार्वभौमिक नहीं है, क्योंकि ऐसी ग्लेशियर स्थितियाँ पूरे आर्कटिक क्षेत्र में नहीं पाई जातीं। साथ ही, भौगोलिक दूरी और कठोर भू-भाग के कारण अधिकांश ध्रुवीय भालू इन क्षेत्रों तक पहुँच भी नहीं सकते। इसका अर्थ है कि यदि समुद्री बर्फ लगातार घटती रही तो यह नया अनुकूलन भी केवल अस्थायी राहत प्रदान करेगा, स्थायी समाधान नहीं। इसलिए, यह खोज एक ओर आशा की झलक दिखाती है, वहीं दूसरी ओर यह चेतावनी भी देती है कि यदि पृथ्वी का तापमान इसी गति से बढ़ता रहा, तो ध्रुवीय भालुओं का भविष्य गंभीर संकट में पड़ जाएगा।

वैश्विक संरक्षण के लिए आवश्यक नीतियाँ और मानव की ज़िम्मेदारी
ध्रुवीय भालुओं का भविष्य केवल उनकी अनुकूलन क्षमता पर नहीं, बल्कि मानवता द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन सीधे-सीधे मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम है - बढ़ता औद्योगीकरण, कार्बन उत्सर्जन, जंगलों की कटाई और संसाधनों का अनियंत्रित दोहन। इसलिए समाधान भी हमें ही ढूँढना होगा। इसके लिए वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कमी, आर्कटिक क्षेत्रों में तेल और गैस खनन पर नियंत्रण, और सौर एवं पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार आवश्यक है। साथ ही, प्रकृति और वन्यजीव संरक्षण के लिए क़ानूनों को सख़्ती से लागू करने और जनता को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की आवश्यकता है। यदि हम आज निर्णायक कदम नहीं उठाते, तो आने वाली पीढ़ियाँ ध्रुवीय भालुओं को केवल कहानियों, तस्वीरों और दस्तावेज़ों में ही देख पाएंगी। यह समय केवल चेतावनी का नहीं, बल्कि मानव जिम्मेदारी और कार्रवाई का है।
संदर्भ-
https://bit.ly/3Ouw4bW
https://bit.ly/3OuTj5N
https://tinyurl.com/rb2y85d3
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.