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लखनऊ में वास्तुकला के विभिन्न उदाहरण देखने को मिलते हैं, जिनमें से शास्त्रीय शैली में बनी तारे वाली कोठी भी एक है। तारे वाली कोठी, एक वेधशाला थी, जिसे 1832 में अवध के राजा नासिर-उद-दीन हैदर शाह (Nasir-ud-Din Haidar Shah) के आदेश पर बनाया गया था। इस शाही वेधशाला की स्थापना का प्रस्ताव नवाब नसीर-उद-दीन हैदर ने 1831 में यह उल्लेखित करते हुए दिया, कि यह वेधशाला जहां अंतरिक्ष संबंधी अवलोकन में मदद करेगी वहीं युवा दरबारियों को खगोल विज्ञान और सामान्य भौतिकी की कुछ शिक्षा देने में भी सहायक होगी। नवाब की यह भावना कैप्टन जेम्स हर्बर्ट (Captain James Herbert) जो कि, वेधशाला के निर्माण के लिए खगोलविद और अधीक्षक के रूप में नियुक्त किये गये थे, की डायरी में भी उल्लेखित है। हालांकि, 1835 में वेधशाला की प्रगति से असंतुष्टि दिखाते हुए नवाब ने गवर्नर जनरल (Governor General) से नए खगोलविद को भेजने का अनुरोध किया, जिसके बाद लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विलकोक्स (Lieutenant Colonel Richard Wilcox) को नियुक्त किया गया। वेधशाला का निर्माण जब चल ही रहा था, तब उसी बीच जुलाई 1837 में नवाब की मृत्यु हो गयी। इसके बाद अंग्रेजों ने मोहम्मद एएम (Mohammed AM), जो नवाब के चाचा के रूप में जाने जाते थे, को नए राजा के रूप में नियुक्त किया। प्रारंभ में, नवाब ने इस परियोजना का खर्च उठाने में असमर्थता दिखायी, किंतु बाद में उनके शासनकाल में ही इस परियोजना को 1841 के अंत में पूरा किया गया। भवन और वेधशाला को स्थापित करने में लगभग 19 लाख से भी अधिक रुपये खर्च किए गये थे।  
जमीन की सतह से कुछ ऊपर बनायी गयी तारे वाली कोठी, तहखानों के साथ दो मंजिला इमारत थी, जिसके केंद्र पर दो बड़े हॉल (Hall) बनाये गये थे। अवलोकन के लिए एक छोटा गोलाकार कमरा शीर्ष पर बनाया गया था। इसे धातु के एक गोलार्ध गुंबद का रूप प्रदान किया गया था, जिसे एक पहिया और चरखी प्रणाली की मदद से किसी भी वांछित स्थिति में घुमाया जा सकता था। गुंबद में गतिशील किवाड़ भी लगाए गये थे, जिन्हें तारों और ग्रहों के अवलोकन के लिए, खोलने या बंद करने के लिए उपयोग किया जा सकता था। यह वेधशाला इंग्लैंड (England) के ग्रीनविच (Greenwich) वेधशाला के डिज़ाइन (Design) से प्रेरित थी और इसलिए जैसे उपकरण वहां मौजद थे वैसे ही उपकरण लखनऊ की इस वेधशाला में भी रखवाए गए। इन उपकरणों में चार टेलीस्कोप (Telescope) के साथ बैरोमीटर (Barometers), मैग्नेटोमीटर (Magnetometers), लॉस्टस्टोन (Lodestones), थर्मामीटर (Thermometers) और स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी गैल्वनिक डिवाइस (Static Electricity Galvanic Devices) शामिल थे। इनमें से मुख्य टेलीस्कोप को 20 मीटर ऊंचे स्तंभ पर रखा गया था।
नवाब के आदेश पर निर्मित इस शाही वेधशाला को 1849 में अवध के पांचवें और अंतिम नवाब वाजिद अली शाह (Wajid Ali Shah) द्वारा बंद करने का आदेश दिया गया। यह आदेश इसलिए दिया गया था, क्यों कि, वेधशाला में कार्य करने वाले एक अनुवादक कमल-उद-दीन (Kamal-ud-din) हैदर ने अपनी किताब सावन-ए-सलातीन-ए-अवध (Sawan-e-Salatin-e-Awadh) में अवध के शासकों के जीवन का उल्लेख किया, जिसमें उनका उल्लेख नकारात्मक रूप से किया गया था।	
माना जाता है कि, 1857-1858 के स्वतंत्रता संग्राम में तारे वाली कोठी ने एक अहम भूमिका निभाई। ऐसा कहा जाता है कि, यह वो स्थान था जहां, मौलवी अहमद-उल्ला (Ahmed-Ulla) शाह अपनी अस्थायी सभाएं किया करते थे। मौलवी अहमद-उल्ला शाह उन नेताओं में से एक थे, जो 1857-1858 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ थे। वेधशाला को कलकत्ता से प्रकाशित लखनऊ पंचांग और अंग्रेजी पुस्तकों और खगोल विज्ञान से जुड़ी पत्रिकाओं के अनुवाद का श्रेय भी दिया जाता है।
 ये अनुवाद शाही छापाखाने, रॉयल प्रिंटिंग प्रेस (Royal printing Press) में प्रकाशित किए गए थे, जो 1819 में लखनऊ में स्थापित किया गया था। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, यह वो कोठी थी, जहां अवध के राजा और तालुकदार 2 नवंबर, 1857 को एकत्रित हुए और उन्होंने बेगम हजरत महल (Hazrat Mahal) और प्रिंस बिरजिस क़ादर (Prince Birjis Qadr) के समर्थन में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ने और अंत तक लड़ने की घोषणा पर हस्ताक्षर किए। 1858 में जब ब्रिटिश (British) सेनाओं का लखनऊ पर फिर से कब्जा हुआ, तब तारे वाली कोठी को संघर्ष में व्यापक क्षति हुई। वर्तमान में, यह कोठी, भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) द्वारा अपने प्रधान कार्यालय के हिस्से के रूप में उपयोग की जा रही है।