समय - सीमा 261
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विल डुरंट (Will Durant) ने द स्टोरी ऑफ़ सिविलाइज़ेशन I: अवर ओरिएंटल हेरिटेज (The Story of Civilization I: Our Oriental Heritage:) में लिखा है: "उन्होंने प्राचीन भारत में कच्चा लोहा की रासायनिक उत्कृष्टता तथा गुप्त काल के उच्च औद्योगिक विकास के बारे लिखा है , जब इंपीरियल रोम (Imperial Rome) द्वारा भारत को बड़ी संभावना के रूप में देखा जा रहा था । उस समय भारत रासायनिक उद्योगों मे जैसे रंगाई, साबुन बनाना, कांच और सीमेंट के उद्पादन तथा छठी शताब्दी तक औद्योगिक रसायन विज्ञान , जिसमे कैल्सीनेशन, आसवन, उच्च बनाने की क्रिया, भाप, निर्धारण, बिना गर्मी के प्रकाश के उत्पादन में कुशलता हासिल कर चुका था। कहा जाता है कि राजा पोरस ने महान सिकंदर के सोना या चांदी नहीं, बल्कि विशेष रूप से मूल्यवान उपहार, “तीस पाउंड स्टील” चुना था। मुसलमानों ने इस हिंदू रासायनिक विज्ञान और उद्योग को समय के साथ पूर्वी और यूरोपीय देशों में फैलाया। उदाहरण के तौर पर "दमिश्क"(Damascus) ब्लेड के निर्माण के रहस्यों को भारत से फारसियों ने और फारसियों से अरबों ने जाना था। लखनऊ से 22 किमी दूर बंथरा के पास दादूपुर में खुदाई के निष्कर्षों के रेडियो कार्बन निर्धारण के बाद ताजा उत्खनन से पता चला है कि यहाँ लोहे की उपस्थिति के साथ-साथ अलग-अलग लाल बर्तन, महीन लाल बर्तन, काले फिसले हुए बर्तन और मुख्य रूप से कटोरे, व्यंजन और भंडारण जार आदि के आकार में काले और लाल बर्तन थे। यहाँ पर जली हुई हड्डियां भी बड़ी मात्रा में पाई गई थीं। बरामद ईख के निशान के साथ जले हुए टेराकोटा नोड्यूल से यह समझ आता कि यहां झोपड़ियां मवेशी और दुआब से बनी थीं। साथ ही यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ पर राख से भरा एक बड़ा ओवन था जिसकी बाहरी सीमा कंकर, नोड्यूल से मजबूत थी।
यहाँ पर धूरी कलाकृतियों के साथ-साथ नुकीले कटे निशानों और कई सींगों की मौजूदगी से यह अनुमान लगाया जा सकता है, कि इस क्षेत्र में हड्डी की कलाकृतियों के निर्माण हेतु कारखाना हो सकता था। इस उत्खनन के बाद खोजे गए अवशेष ने लखनऊ के इतिहास को कुल करीब 1500 ईसा पूर्व तक धकेल दिया। उत्तर प्रदेश में सोनभद्र और चंदौली में हुए उत्खनन से 1600 ईसा पूर्व के लोहे के अवशेष प्राप्त हुए। इन सभी अवशेषों की प्राप्ति से यह तो सिद्ध हो गया कि लखनऊ के आस पास का क्षेत्र लौह युग में सुचारू रूप से प्रचलित था।
लेकिन यहां पर लोहे की उपस्थिति पर भी विशेष ध्यान दिया गया क्यों की पश्चिमी मूल के व्यक्तियों का दृष्टिकोण था कि भारत में लोहे को पश्चिम से, ईरान अथवा अन्य देशों से लाया गया था। लेकिन पुरातत्व विभाग उत्तर प्रदेश में मिले अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है की “भारत पहले से ही किसी दूसरे महाद्वीप पर निर्भर न होकर स्वयं लोहे के उत्पादन निर्माण तथा कला में निपूर्ण था” ।