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                                            खंडा (khanda)‚ दुनिया भर में गुरु ग्रंथ साहिब और गुरुद्वारों में पारंपरिक रूप से
इस्तेमाल किया जाने वाला‚ सिख धर्म के मुख्य प्रतीक या लोगो के रूप में “एक
ओंकार” है। जो एक ईश्वर में सिखों के विश्वास की पुष्टि करता है। जिसने 1930
के दशक में ‘ग़दर आंदोलन’ के दौरान अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया।
आधुनिक सिख प्रतीक या लोगो कभी भी गुरु ग्रंथ साहिब की किसी प्रति पर नहीं
लिखा जाता है। परंपरागत रूप से‚ एक गुरुद्वारे के प्रवेश द्वार के ऊपर‚ या गुरु
ग्रंथ साहिब के पहले पृष्ठ पर “एक ओंकार” देखने को मिलता है। यह तीन प्रतीकों
का मिश्रण है:
1- केंद्र में एक दोधारी तलवार (khanda)‚ यह युद्ध में प्रयुक्त एक
शक्तिशाली हथियार है। आध्यात्मिक व्याख्या में‚ यह सत्य को असत्य से
अलग करने के लिए एक शक्तिशाली साधन का प्रतीक है। खंडा को गुरु
गोबिंद सिंह जी द्वारा रखे गए मीठे पानी और लोहे के कटोरे में डालकर
अमृत तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
 यह तलवार ईश्वर की
रचनात्मक शक्ति है‚ जो पूरी सृष्टि के भाग्य को नियंत्रित करती है। यह
जीवन और मृत्यु पर सार्वभौम शक्ति है। इसका दाहिना किनारा नैतिक
तथा आध्यात्मिक मूल्यों द्वारा शासित स्वतंत्रता और अधिकार का प्रतीक
है तथा बायां किनारा दैवीय न्याय का प्रतीक है जो दुष्ट उत्पीड़कों को दंड
देता है तथा अनुशासित करता है।
2- एक चक्कर (chakram)‚ यह लोहे का एक गोलाकार आकार का हथियार है‚
जिसके बाहरी किनारे नुकीले होते हैं। इसका गोलाकार आकार ईश्वर का
प्रतीक है‚ जो अनंत है। यह किसी के जीवन‚ स्वतंत्रता और अधिकारों के
लिए संघर्ष का भी प्रतीक है।  इसीलिए भगवान कृष्ण ने महाभारत के युद्ध
में सुदर्शन चक्कर को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल किया
था।
3- दो एकधारी तलवारें‚ या कृपाण (kirpan)‚ जो नीचे की ओर से पार होकर
खंडा और चक्कर के दोनों ओर बैठती हैं। वे “मिरी-पिरी” की दोहरी
विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं‚ जो आध्यात्मिक और लौकिक संप्रभुता
के एकीकरण का संकेत देते हैं तथा उन्हें दो अलग और विशिष्ट संस्थाओं
के रूप में नहीं मानते हैं। 
मिरी और पीरी‚ यानी भक्ति और शक्ति के इस
दर्शन को गुरु हर गोबिंद साहिब जी ने उजागर किया था। उन्होंने मिरी और
पिरी का प्रतिनिधित्व करने वाले दो कृपाण पहने थे। बायीं तलवार को मिरी
और दाहिनी तलवार को पिरी कहा जाता है।
यह सिख सिद्धांत “देग तेग फतेह” को प्रतीकात्मक रूप में दर्शाता है। जिसमें चार
भाग या हथियार होते हैं‚ अर्थात एक खंडा‚ दो कृपाण और एक चक्कर। यह सिखों
का सैन्य प्रतीक है। यह “निशान साहिब” के रूपांकन का भी हिस्सा है। एक दोधारी
खंडा या तलवार को निशान साहिब के ध्वज के शीर्ष पर एक आभूषण या स्तूपिका
के रूप में रखा जाता है। निशान साहिब‚ एक सिख त्रिकोणीय झंडा है‚ जो सूती या
रेशमी कपड़े से बना होता है‚ जिसके अंत में एक लटकन होता है। “निशान साहिब”
शब्द का अर्थ है ऊंचा पताका‚ और झंडा अधिकांश गुरुद्वारों के बाहर एक ऊंचे
ध्वजदंड पर फहराया जाता है। झंडे का खंभा‚ कपड़े से ढका हुआ‚ शीर्ष पर एक
तीर के साथ समाप्त होता है। ध्वज के केंद्र में प्रतीक के रूप में खंडा को बनाया
जाता है। अठारहवीं शताब्दी में लगभग सभी सिख योद्धा इसे पहनते थे और आज
भी निहंग इसे पहनते हैं।
एक और प्रतीक जो खंडा के साथ भ्रमित हो सकता है‚ वह है निहंग का आद चंद
(“आधा चाँद”)‚ जो खालसा का पहला प्रतीक था‚ जिसमें एक अर्धचंद्र के बीच में
एक खंडा तलवार होती है‚ जो ऊपर की ओर बिंदुओं के साथ संरेखित होती है।
खालसा पंथ के पारंपरिक प्रतीक‚ “निशान साहिब” को दूर से भी देखा जा सकता
है‚ जो पड़ोस में खालसा की उपस्थिति को दर्शाता है। इसे हर बैसाखी ले जाया
जाता है‚ तथा एक नए झंडे के साथ बदल दिया जाता है‚ और ध्वजदंड का
नवीनीकरण किया जाता है।
गुरु हरगोबिंद के समय‚ “निशान साहिब” को सिखों की आध्यात्मिकता और उनकी
योद्धा भावना को दिखाने के लिए‚ बसंती के नाम से जाना जाने वाला पीले रंग
की छाया में बनाया गया था। खालसा के निर्माण के बाद‚ गुरु गोबिंद सिंह ने गहरे
नीले रंग का ध्वज पेश किया‚ जिसे सूरमायी कहा जाता है‚ जो अभी भी निहंग
झंडे का रंग है। पहले सिख झंडे सादे होते थे‚ लेकिन प्रतीक‚ गुरु गोबिंद सिंह
द्वारा ही पेश किए गए थे। 
पहला सिख प्रतीक‚ खंडा नहीं था‚ बल्कि तीन
हथियार: कटार‚ ढाल और कृपाण थे। बाद में इन प्रतीकों का इस्तेमाल सिख
मिस्लों और साम्राज्य द्वारा भी किया गया। जब गुलाब सिंह ने महाराजा रणजीत
सिंह को “निशान साहिब” को केसरी या गहरे नारंगी रंग में बदलने के लिए कहा
तो महाराजा ने मना कर दिया‚ लेकिन बाद में जब उन्होंने सेना को‚ पारंपरिक
अकालियों से फ्रांसीसी शैली के सैनिकों में बदल दिया तो उन्होंने हिंदू और मुस्लिम
विचारधाराओं का सम्मान करने के लिए अलग-अलग झंडे बनाए। मुस्लिम सैन्य-
दलों के लिए युद्ध के मानक शेर और सूर्य थे तथा हिंदू सैन्य-दलों के लिए
विभिन्न देवी-देवता थे। बाद में ब्रिटिश शासन के दौरान‚ यह हिंदू महंतों‚ निर्मला
और इतिहासकारों की कमी के कारण‚ बसंती और सुरमयी से केसरी और सुरमयी
हो गया। इसने सिख धर्म को बहुत प्रभावित किया और यह शीर्ष पर मोर पंख
वाला केसरी “निशान साहिब” बन गया। ‘सिंह सभा आंदोलन’ (Singh Sabha
Movement) के दौरान‚ सिखों ने सिख धर्म को उसके प्राचीन वैभव में
पुनःस्थापित करने की कोशिश की‚ इसलिए शुरुआत में यह दल खालसा का झंडा
बन गया‚ लेकिन धीरे-धीरे यह‚ खांडा प्रतीक के साथ आज के “निशान साहिब” में
बदल गया। हाल के वर्षों में‚ संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) में हुई हाई
प्रोफाइल शूटिंग के बाद‚ सिख समुदाय के भीतर एकजुटता दिखाने के लिए खंडा
का इस्तेमाल किया गया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3b0NR8T
https://bit.ly/3CiifYg
https://bit.ly/3pzWeka
चित्र संदर्भ
1. कंगा, कड़ा और कृपाण: सिख धर्म के पांच लेखों में से तीन का एक चित्रण (wikimedia)
2. खंडा को गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा रखे गए मीठे पानी और लोहे के कटोरे में डालकरअमृत तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया गया था जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. 19वीं सदी के मध्य में लाहौर से निकली निहंग पगड़ी में सजाए गए चक्कर (chakram)‚ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एकधारी तलवारें‚ या कृपाण (kirpan) का एक चित्रण (wikimedia)
5. पांरपरिक कपडे पहने निहंग सिख का एक चित्रण (flickr)