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भारत के इत्र की राजधानी कन्नौज का इत्र भारत ही नहीं वरन विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। ब्रिटेन, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान, इराक, सिंगापुर, फ्रांस, ओमान, कतर आदि जैसे देशों में भी इसका आयात किया जाता हैं। इस पारंपरिक इत्र को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) भी प्रदान किया गया है। यह कला यहां कुछ वर्ष नहीं वरन हज़ारों वर्ष पुरानी है। इतिहास में कन्नौज का व्यापार मध्य पूर्वी हिस्सों तक था। माना जाता है कि इन्होंने लगभग 300 साल तक मुगल साम्राज्य के लिए इत्र की आपूर्ति की। मुगल शासक कन्नौज के इत्र और सुगंधित तेल के शौकीन थे। अबुल फज़ल ने अपनी ऐतिहासिक रचना ऐन-ए-अकबरी में कन्नौज के इत्र के व्यवसाय का उल्लेख किया है।
कन्नौज के इत्र बनाने की प्रक्रिया में पीढ़ी दर पीढ़ी नये-नये संशोधन किये जा रहे हैं। यह इत्र प्राकृतिक संसाधनों जैसे पुष्प, कस्तूरी, कपूर, केसर, सफेद चमेली, मिट्टी आदि से तैयार किया जाता है। इस पारंपरिक इत्र में किसी प्रकार के अल्कोहॉल (Alcohol) और रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी एक छोटी बोतल के उत्पादन में ही 15 दिन का समय लग जाता है। कन्नौज के इत्र विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनमें से एक है ‘इत्र-ऐ-खाकि’ या ‘मिट्टी इत्र’। इसे मानसून की पहली सौंधी सुगंध को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।
यह इत्र आज भी कन्नौज में परंपरागत रूप से तैयार किया जाता है, जिसे तैयार करने की प्रक्रिया को देग भापका (Deg bhapka) कहा जाता है, जो काफी कठिन, धीमी और लम्बी प्रक्रिया है। देग का अर्थ है तांबे का बर्तन (चन्दन के तेल से भरा) जिसको भट्टी पर रखा जाता है तथा इसके पानी का स्त्रोत भी इसके पास ही बनाया जाता है। इसमें एक भापका जुड़ा होता है, जिससे आसवन के बाद सुगंधित तरल प्राप्त किया जाता है। इनके द्वारा चंदन के तेल को चमड़े (ऊंट, भैंस आदि के) की शीशियों या ‘कुप्पियों’ में रखा जाता है। इन कुप्पियों को वाष्पन हेतु सूर्य के प्रकाश में छोड़ दिया जाता है, जिससे वास्तविक इत्र प्राप्त होता है।
कन्नौज में अभी लगभग 4,000 लोग इत्र के इस व्यवसाय में लगे हैं। इनका योगदान कई रूपों में हो सकता है जैसे किसानी करने में, 400 के करीब मौजूद इत्र कारखानों में, दुकानदारों के रूप में, आदि। विश्व स्तर पर सुगंध और स्वाद के बाज़ार में भारत का 10% योगदान है। कन्नौज के इत्र का उपयोग खाद्य उद्योगों और गुटखा, तंबाकू और पान मसाला के निर्माताओं द्वारा भी किया जाता है। किंतु वर्तमान समय में लोग रसायनों से निर्मित तीक्ष्ण सुगंध वाले इत्र की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिस कारण कन्नौज के पुष्पों के इत्र की सुगंध विश्व बाज़ार में कम जा रही है। वहीं जीएसटी ने भी कन्नौज के इत्र व्यापार पर प्रभाव डाला है। एक आंकलन के अनुसार कन्नौज का एक कारखाना प्रत्येक माह लगभग 2,000 लीटर इत्र और सुगंधित तेल तैयार करता है, जिसका 20 फीसदी हिस्सा निर्यात कर दिया जाता है। औद्योगिकी के विकास ने भले ही बड़े-बड़े शहरों की कार्य प्रणाली या क्षेत्र को बदल दिया हो किंतु कन्नौज में आज भी हर दूसरे घर में इत्र का उत्पादन किया जा रहा है तथा इन्होंने सदियों से चले आ रहे अपने पारंपरिक व्यवसाय को जीवित रखा है।
आज इस उद्योग द्वारा झेली जाने वाली कुछ मुसीबतें हैं:
1. कन्नौज में बनने वाला 95% इत्र खाद्य उद्योग को बेचा जाता था, परन्तु अब कई राज्यों में गुटखे और पान मसाले के प्रतिबन्ध ने इसपर फर्क डाला है।
2. दूसरी परेशानी है कच्चे माल की बढती कीमत, जैसे चन्दन का तेल।
3. साथ ही लोगों की मानसिकता में भी बदलाव आया है। जहाँ पहले लोग इत्र अपने लिए खरीदते थे, वहीं आज वे दूसरों तक अपनी तीव्र सुगंध पहुँचाने के लिए इसे खरीदते हैं और इसलिए केमिकल (Chemical) वाले परफ्यूम (Perfume) खरीदना पसंद करते हैं।
कन्नौज में सुगंध और सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) की स्थापना वर्ष 1991 में यू.एन.आई.डी.ओ., भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से हुई थी। सुगंध और सुरस विकास केंद्र (एफ.एफ.डी.सी.) का उद्देश्य कृषि-प्रौद्योगिकी और रासायनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आवश्यक तेल, सुगंध और स्वाद उद्योग और आर एंड डी (R&D, Research & Development) संस्थानों के बीच एक सूत्र के रूप में कार्य करना है। सुगंधित खेती और इसकी प्रसंस्करण में लगे किसानों और उद्योगों की स्थिति को ठीक बनाए रखना, बेहतर करना तथा उनकी सहायता करना केंद्र का मुख्य उद्देश्य है ताकि उन्हें स्थानीय और वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सके।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Kannauj_Perfume
2.https://www.thebetterindia.com/59606/scent-rain-mitti-attar-kannauj/
3.https://bit.ly/2PPQZaJ
4.http://www.ffdcindia.org/aboutus.asp